लोकसभा चुनाव 2019: गोरखपुर के बुनकर बदहाल, पर राजनीतिक विमर्श में जगह नहीं
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लोकसभा चुनाव 2019: गोरखपुर के बुनकर बदहाल, पर राजनीतिक विमर्श में जगह नहीं

हालांकि प्रशासन का कहना है कि केंद्र एवं राज्य सरकार की सभी संबन्धित योजनाओं का लाभ गोरखपुर के बुनकरों तक पहुंचाया गया है.

गोरखपुर के बुनकरों का हाल. फाइल फोटो

गोरखपुर : राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण गोरखपुर लोकसभा सीट पर राष्ट्रवाद, जातीय समीकरण और 'बाहरी बनाम स्थानीय' के राजनीतिक विमर्श में बुनकर समाज एक ऐसा वर्ग है जिसकी 'बदहाली' की कहीं चर्चा नहीं है.

हथकरघा और पावरलूम उद्योग से जुड़े जिले के हजारों कामगारों को कम मजदूरी, रॉ मटेरियल की कीमत अधिक होना, विपणन की सही व्यवस्था नहीं होना और बीमारियां होने जैसी कई समस्याओं का लंबे समय से सामना करना पड़ रहा है. हालांकि प्रशासन का कहना है कि केंद्र एवं राज्य सरकार की सभी संबन्धित योजनाओं का लाभ गोरखपुर के बुनकरों तक पहुंचाया गया है.

'उत्तर प्रदेश बुनकर सभा' से जुड़े मौलाना ओबैदुर्रहमान ने 'पीटीआई-भाषा' को बताया, 'बुनकरों की बदहाली का यह आलम है कि उन्हें 20 साल पहले की दर से ही मजदूरी मिल रही है. 20 साल पहले भी उन्हें पांच रुपये प्रति मीटर की दर से पैसा मिलता था और आज भी तकरीबन यही स्थिति है.' गोरखनाथ मंदिर के आसपास के इलाके यानी पुराना गोरखपुर में ही सैकडों पावरलूम चल रहे हैं जिनमें कई हजार बुनकर काम करते हैं.

 

ओबैदुर्रहमान के मुताबिक गोरखपुर में करीब 30-40 हजार लोग हथकरघा या पावरलूम उद्योग से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं. बुनकरों को मजदूरी कम मिलने और उनके तैयार कपड़ों के लिए बाजार के सिकुड़ने का सिलसिला 1990 के दशक के आखिर से शुरू हुआ था और आगे यह बढ़ता ही गया.

हथकरघा उद्योग से जुड़े इमामुद्दीन कहते हैं, ' कभी पुराने गोरखपुर इलाके में तीन लाख से अधिक बुनकर हुआ करते थे. लेकिन संकट करीब 20-22 साल पहले उस वक्त शुरू हुआ जब चीन के लिए बाज़ार खोल दिया गया और उसने हमारे बाज़ार में घुसकर सस्ता सामान ठूंस दिया.' उन्होंने कहा, ' अब जो कपड़ा हम सौ रुपये की लागत से तैयार करते हैं, वही कपड़ा चीन 80 रुपये में बेच रहा है. हमारी लागत ज़्यादा है. सरकार ने हमें अपने हाल पर मरने के लिए छोड़ दिया है.'

बुनकरों की आवाज उठा रहे सामाजिक कार्यकर्ता अशफाक अहमद का कहना है, 'सभी प्रमुख पार्टियों ने बुनकरों की बेहतरी का वादा किया और सत्ता में अपने वादे भूल गईं. अगर इस बार राजनीतिक दलों द्वारा बुनकरों की बात नहीं हो रही है तो इसमें चौंकने वाली बात नहीं है क्योंकि हथकरघा उद्योग में काम करने वालों की संख्या कम होने से आज इनकी आवाज भी कमजोर हो गयी है.' उन्होंने कहा, 'बहुत सारे मजदूरों को बीमारियां खासकर सांस से जुड़ी बीमारियां हो रही हैं, लेकिन उन्हें उचित स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पातीं.'

गोरखपुर में बुनकरों की स्थिति के बारे में पूछे जाने पर भाजपा उम्मीदवार रवि किशन ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार में बहुत प्रयास हुए हैं जिनसे इस वर्ग की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है. केंद्र और राज्य दोनों सरकारें इनकी बेहतरी के लिए काम कर रही हैं.

उधर, सपा के जिलाध्यक्ष प्रह्लाद यादव ने कहा, 'सपा की सरकार ने बुनकर समाज के कल्याण के लिए जनेश्वर मिश्र पावरलूम उद्योग विकास योजना और जनेश्वर मिश्र राज्य हथकरघा पुरस्कार शुरू की थी, लेकिन योगी सरकार ने इस पर गंभीरता से काम नहीं किया.' बुनकरों की समस्याओं के बारे में पूछे जाने पर उप निदेशक(हथकरघा विभाग) राम बढ़ाई कहते हैं, 'बुनकरों के तीन प्रमुख मुद्दे- मजदूरी, रॉ मटेरियल और विपणन हैं. वैसे, हमने सरकारी योजनाओं को पूरी ईमानदारी से उन तक पहुंचाया है.' उन्होंने कहा, 'बुनकरों द्वारा तैयार कपड़ों के लिए विपणन की उचित व्यवस्था से ही उनकी समस्याओं का स्थायी समाधान हो सकता है.'

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