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लंदन : भारतीय दंत चिकित्सक सविता हलप्पनवार की आयरलैंड के एक अस्पताल में हुई मौत के मामले की एक आधिकारिक जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि कई खमियों और गर्भपात कानून को लेकर अनिश्चितता की वजह से सविता की दुखद मौत हुई।
प्रो. सबरत्नम अरुलकुमारन की अध्यक्षता में गठित स्वास्थ्य सेवा कार्यपालक (एचएसई) जांच दल की रिपोर्ट में कहा गया है कि झिल्लियां फटने के बाद सेप्सिस और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है और सविता की मौत का सबसे बड़ा कारण संक्रमण हो सकता है। आयरिश टाइम्स की खबर में कहा गया है, ‘कई खामियों और गर्भपात कानून को लेकर अस्पष्टता की वजह से सविता की मौत हुई।’
पिछले साल अक्तूबर में 31 वर्षीय सविता की सेप्टीसेमिया के कारण यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल गैलवे में मौत हो गई थी। तब उनके पेट में 17 सप्ताह का गर्भ था। मामले की न्यायिक जांच अप्रैल में हुई जिसमें कहा गया कि अपरिहार्य परिस्थिति में मां की जान बचाने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण गर्भपात से इसलिए इनकार किया गया क्योंकि आयरलैंड एक ‘कैथोलिक देश’ है और यहां गर्भपात की इजाजत नहीं है।
सविता के पति प्रवीण हलप्पनवार ने कहा कि उनकी पत्नी ने बार-बार गर्भपात के लिए कहा लेकिन उसे इसलिए मना कर दिया गया क्योंकि भ्रूण का दिल धड़क रहा था। एचएसई की रिपोर्ट में कहा गया है कि गैलवे हॉस्पिटल के कर्मचारी सविता की स्थिति का सही अनुमान लगाने में या मौत के समीप पहुंच रही महिला की हालत की निगरानी करने में नाकाम रहे। रिपोर्ट के अनुसार, स्थिति की गंभीरता बढ़ रही थी, लेकिन प्रतीत होता है कि उसे समझा नहीं गया और न ही समुचित कार्रवाई की गई।
इसमें कहा गया, ‘कानूनी तरीके से गर्भपात संबंधी कानून की व्याख्या और खासतौर पर स्पष्ट चिकित्सकीय निर्देशों और प्रशिक्षण के अभाव को इस मामले में मुख्य कारक समझा गया।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात पर ज्यादा जोर दिया गया कि जब तक भ्रूण की हृदय गति रूक नहीं जाती तब तक हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है। भ्रूण पर लगातार नजर रखना और संक्रमण को रोकना जरूरी नहीं समझा गया।
प्रो. अरूलकुमारन ने कहा कि अगर सविता ब्रिटेन में उनकी मरीज होतीं तो वह सेप्सिस के खतरे से बचने के लिए पहले ही उनका गर्भपात करा देते। प्रसूति और स्त्रीरोग विज्ञान के प्रो. सर सबरत्नम अरूलकुमारन ने कहा कि सविता के मामले में योजना में ‘घटनाओं का इंतजार’ शामिल था। यह तब तक उचित था जब तक इसमें मां या अजन्मे बच्चे को कोई खतरा नहीं था।
उन्होंने कहा कि मां की हालत इतनी नहीं बिगड़ने दी जानी चाहिए कि वह गंभीर रूप से बीमार हो जाए और ‘मौत के दरवाजे’ पर पहुंच जाए। इस मामले को लेकर पूरी दुनिया में आक्रोश की लहर दौड़ गई थी और आयरलैंड के पेचीदा गर्भपात निरोधक कानूनों को दोबारा पारिभाषित करने की मांग की जाने लगी। (एजेंसी)