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नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को केन्द्र सरकार से कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत देय पारिश्रमिक विभिन्न राज्यों में दिए जाने वाले न्यूनतम वेतन के बराबर लाया जाए।
न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय और न्यायमूर्ति एस ए बोबड़े की खंडपीठ ने केन्द्र को निर्देश दिया कि इस योजना के तहत देय पारिश्रमिक राज्य सरकार द्वारा खेतिहर मजदूरों के लिये निर्धारित न्यूनतम पारिश्रमिक से कम नहीं हो सकता।
केन्द्र सरकार ने न्यायालय को सूचित किया कि उसने पहले ही राज्य सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी के बराबर पारिश्रमिक देने के बारे में अधिसूचना जारी कर दी है। न्यायालय कर्नाटक उच्च न्यायालय के 23 सितंबर, 2011 के आदेश के खिलाफ केन्द्र सरकार की अपील पर सुनवाई कर रहा है।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि मनरेगा के तहत देय पारिश्रमिक न्यूनतम मजदूरी से कम नहीं हो सकता। न्यायालय ने यह भी कहा था कि केन्द्र सरकार को उन श्रमिकों को बकाया राशि का भुगतान करना चाहिए जिन्हें कम पारिश्रमिक दिया गया था।
एक श्रमिक यूनियन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वी के बीजू ने पारिश्रमिक में अंतर को न्यायोचित ठहराने की केन्द्र सरकार की दलील का पुरजोर विरोध किया था। इससे पहले, शीर्ष अदालत ने कम पारिश्रमिक देने पर केन्द्र सरकार से जवाब मांगा था।
केन्द्रीय रोजगार योजना के तहत राज्यों में 118 रुपए से 181 रुपए के बीच पारिश्रमिक दिया जाता है। यह पारिश्रमिक छह राज्यों में निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम है जबकि 16 राज्यों में मनरेगा के तहत श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी से अधिक दिया जाता है।