नई दिल्ली. अगर ऐसा हो गया तो क्या कहने ! लेकिन ऐसा होना इतना भी आसान नहीं है. दिल्ली चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को मिलने वाली हैं चालीस सीटें और इस आधार पर दिल्ली में बनने वाली है भाजपा की सरकार - ये अनुमान है एक हालिया चुनावी सर्वेक्षण का जो भारतीय जनता पार्टी ने कराया है.
दिल्ली चुनावों में मुकाबला तीन तरफ़ा है नहीं
दिल्ली में कायदे से केवल दो पार्टियां ही चुनाव लड़ रही हैं, एक - भाजपा और दूसरी - आम आदमी पार्टी. कांग्रेस चुनावी दौड़ में हो कर भी कहीं नहीं है. दिल्ली में एक तरफ तो विकास पुरुष मोदी की पार्टी चुनाव लड़ रही है तो दूसरी तरफ फ्री-पुरुष केजरीवाल की पार्टी. केजरीवाल को फ्री का फायदा मिल रहा है इसलिए अगर वे चुनाव प्रचार में अधिक श्रम न भी करें तो भी फायदे में वही हैं. वैसे भी केजरीवाल ने दिल्ली में अपने 'आदमियों' के माध्यम से बाई वर्ड ऑफ माउथ माहौल ये बना रखा है कि केजरीवाल जीत रहे हैं. एक मुंह से दूसरे कान तक और दूसरे मुंह से तीसरे कान तक कुल मिला कर आम आदमी के आदमी एक ही बात फैला रहे हैं - केजरीवाल जीत रहा है!
भाजपा के दो ही कर्णधार
दिल्ली चुनावों में देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी और उनके रणनीतिकार अमित शाह ही भाजपा की तरफ से पार्टी के सूत्रधार हैं. पार्टी का जो भी भला होगा, बस इन दोनों नेताओं की दम पर ही होगा. बाकी दिल्ली के नेता अपनी पीठ ठोंक लें और गाल बजा लें तो ये उनकी अपनी ख़ुशी से अधिक कुछ भी नहीं.
भाजपा ने नहीं दिखाया अपना सीएम चेहरा
भारतीय जनता पार्टी ने अपने मुख्यमंत्री का चेहरा सामने नहीं रखा तो भी मनोज तिवारी बहुत खुश हैं क्योंकि उनको लगता है कि पूर्वांचली वोटों के लिए वे चुंबक वाले खम्भे हैं. लेकिन सच ये भी है कि चुंबक वाले और भी कई खम्भे इस बार दिल्ली में हैं जो अलग-अलग पार्टियों के तम्बुओं में तने हुए हैं. ऐसी दशा में पूर्वांचली वोट टुकड़े-टुकड़े टूट कर टक्कर तो सबको देंगे लेकिन फायदा किसी को नहीं दे पाएंगे. दिल्ली में मनोज तिवारी ने वैसे भी केजरीवाल को कोसने के अलावा कोई खास काम नहीं किया है.
कांग्रेस डूबती नाव में पहिये लगा रही है
दिल्ली के राजनीतिक तालाब में कांग्रेस की नैया पहले ही डूब रही है. ऐसे में पार्टी दिल्ली में अपनी नाव पर कागज के पहिये लगा कर उम्मीद कर रही है कि नाव चल जायेगी. डूबती नाव न चलती है न तैरती है. नाव को सड़क पर भी चला देने की दम-खम रखने वाला कांग्रेसी मल्लाह याने शीला दीक्षित अब नहीं रही. शीला दीक्षित के नाम और उनके दिल्ली में किये गए काम - दोनों को भुनाने में है नाकाम कांग्रेस पार्टी. इससे फायदा आम आदमी पार्टी को ही पहुंचेगा क्योंकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी और भाजपा दोनों के अपने कैडर वोट हैं जो उनकी चुनावी शक्ति का आधार बनने वाले हैं. ऐसे में नॉन-कैडर वाली कांग्रेस पार्टी के टूटे हुए वोट भाजपा की तरफ जाने की बजाये केजरीवाल की तरफ लुढ़क जाएंगे.