नई दिल्लीः देश का एक सबसे अहम सूबा है, उत्तर प्रदेश. धार्मिक, क्रांतिकारी, तहजीब, संस्कृति और कला के साथ शानो शौकत की अनूठी जमीन है यह सूबा. इसी सूबे में एक जगह है, एक शहर है रामपुर. बहुत आम सा नाम है और अभी इसकी पहचान केवल इतनी भर है कि सपा के कद्दावर नेता आजमखान का क्षेत्र है और आजम खान आजकल, बकरी-पायल चोरी से लेकर कई बड़े-बड़े मामलों में फंसे हैं और अदालतों के चक्कर काट रहे हैं.
लेकिन आपको चक्कर एक और बात पर आ सकता है कि यह रामपुर कभी ऐसी नवाबियत के लिए मशहूर रहा है, जो कि चांदी के पलंग पर सोता था, चांदी का हुक्का गुड़गुड़ाता था, दस्तरखान पर चांदी के बरतनों में खाता था, चांदी की तश्तरी में पान रखता था और थूकता भी चांदी के उगलपान में था. कहने का मतलब यह कि नवाबियत रहते यहां के नवाबों ने अरबों की चांदी काटी है और आज जब इसी संपत्ति का बंटवारा होने वाला है तो इस खानदान से जुड़े लोगों की चांदी-चांदी होने वाली है.
रामपुर के नवाब खानदान का परिचय ले लेते हैं
इतिहास के पन्ने गवाही देते हैं कि रामपुर की रियासत आजादी से तकरीबन 200 साल पुरानी है. 15 अगस्त 1947 को देश तो आजाद हो गया, लेकिन रामपुर की रियासत ने 15 मई 1949 को गणतंत्र भारत में शामिल होना मंजूर किया. इस समय नवाब रजा अली खान गद्दीनशीं थे और विलय की शर्तों के मुताबिक उन्हें ही सर्वाधिकार प्राप्त हुए थे.
नवाब खानदान या यूं कहें कि रामपुर रियासत को बसाया था फ़ैजुल्लाह ख़ान ने. वही इस रियासत के पहले नवाब भी हुए थे. वह 15 सितंबर 1748 को गद्दी पर बैठे थे. इसके बाद नवाबियत पीढ़ी दर पीढ़ी एक-दूसरे को मिलती गई और आजादी आते-आते रियासती महत्व खत्म हो गया, लेकिन नवाब की नवाबियत पर कोई असर नहीं पड़ा.
फिर उठा संपत्ति का मामला
अंतिम गद्दीनशीं नवाब रजा अली खां की साल 1966 में मृत्यु हो गई. इसके बाद उनके बेटे मुर्तजा को उत्तराधिकार मिला. इस दौर तक नवाब, राजा-रानी जैसी व्यवस्था खत्म हो चुकी थी, लेकिन खान खानदान के पास माल-असबाब की कमी नहीं थी, लिहाजा अब लड़ाई संपत्ति की हो गई. मुर्तजा के भाई जुल्फिकार अली ने 1966 में केवल उन्हें सर्वाधिकार दिए जाने के खिलाफ चुनौती दी और संपत्ति में बराबर का हिस्सा मांगा.
बस यहीं से इसी साल यह मसला कोर्ट-कचहरी में घूमता रहा. दीवानी अदालत से होते हुए यह मामला 47 सालों तक सुप्रीम कोर्ट में चलता रहा.
कैसे हो बंटवारा, इस पर रही रार
रामपुर से जुड़े मामले में मूल मुद्दा यह था कि संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत होगा या शाही परिवारों के अपनाए जाने वाले गद्दी कानून के तहत. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2002 में गद्दी कानून के तहत मुर्तजा अली खान के पक्ष में फैसला दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया.
ऐसा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आखिरी नवाब के बाद जिसे गद्दी सौंपी गई थी सिर्फ उसे ही नहीं बल्कि नवाब के सभी वंशजों के बीच संपत्ति का विभाजन होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा-केवल नाम के राजा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा, ‘ये राजा सिर्फ नाम के राजा हैं. इनका न कोई साम्राज्य रहा और न कोई प्रजा. विलय के बाद इन रजवाड़ों के राजा, राजा नहीं रहे इसलिए उनकी निजी संपत्तियां सामान्य उत्तराधिकार कानून के तहत तमाम उत्तराधिकारियों के बीच साझा होंगी.’
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब रजा परिवार की बेटियों को भी इस संपत्ति में हिस्सा मिलना तय है. यानी कि अब यह संपत्ति मुर्तजा अली, उन्हें कानूनी चुनौती देने वाले जुल्फिकार अली और उनकी छह बहनों के वारिसों के बीच बंटेगी. सुप्रीम कोर्ट का फैसला 31 जुलाई 2019 को आया था.
साल के अंत तक होना है बंटवारा
बंटवारे की जिम्मेदारी जिला जज को सौंपी गई है, इसके लिए कमिश्नर नियुक्त हुए हैं. कैमरे की देखरेख में संपत्ति के सर्वे और उसकी गणना का काम चल रहा है. कोर्ट ने छह महीने पहले इस संपत्ति के बंटवारे का आदेश दिया था. शरीयत के अनुसार बंटवारा दिसंबर 2020 तक होना है. काम जोरों पर है और इसी के साथ हर दिन नए-नए राज और आंखें चौंधिया देने वाली बातें सामने आ रही हैं. अभी तक क्या-क्या मिला है, पढ़िए आगे.