नई दिल्लीः सनातन धर्म की परंपरा का जब विस्तार होता है तो इससे अलग कई मत और पंथ सामने आते हैं. जब-जब धर्म के वास्तविक और सच्चे स्वरूप को समझना कठिन होने लगा और मानव समाज इन्हें भूलने लगा तो इसकी मूल शिक्षाओं को फिर से जन-जन के बीच लाने के लिए कई महापुरुष और सिद्धपुरुष सामने आए.
इस परंपरा में अक्सर ब्राह्मण या साधु समाज के लोगों का नाम सामने आया, लेकिन वीर भूमि भारत में क्षत्रिय कुल से निकले दो राजकुमार अमर हैं. इन्होंने क्षमादान में सच्ची वीरता देखी, युद्ध जीतने में ही बल्कि प्राणियों का हृदय जीतना सबसे कठिन माना और हर किसी के कष्ट को सच्ची प्रजासेवा समझा. महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी यही दो जगविजेता हैं, जिनकी मानवता की सेवा की शिक्षाएं अमर हैं. महावीर जयंती के मौके पर जैन धर्म के तीर्थंकर महावीर स्वामी की बात-
जैन धर्म का प्रमुख पर्व है महावीर जयंती
जैन धर्म का सबसे प्रमुख पर्व महावीर जयंती धूम-धाम से मनाया जाता है. महावीर जयंती का पर्व स्वामी महावीर के जन्मदिन चैत्र शुक्ल त्रयोदशी में मनाया जाता है. इस बार यह तिथि सोमवार को है. स्वामी महावीर जैन धर्म के 24 वें तीर्थकार थे.
जैन धर्म के अनुयायी जैन मंदिरों में जाकर जिन यानी विजेता की अर्चना व उनका अभिषेक करते हैं. उनकी शिक्षाओं का प्रसार करते हैं. लोगों को हिंसा त्यागने और अहिंसा को अपनाने की शिक्षा याद दिलाते हैं.
बिहार से है महावीर स्वामी का नाता
जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार स्वामी महावीर का जन्म बिहार के कुंडिनपुर के राज परिवार में हुआ था. बचपन में इन्हें वर्धमान नाम से पुकारा जाता था. बचपन से ही उनका झुकाव आध्यात्म की ओर था. हम उम्र किशोरों के साथ खेलते-खेलते अचानक ही वह ध्यान अवस्था में चले जाते थे.
एक बार वह ऐसी ही एक वृक्ष के नीचे बैठ गए. एक सर्प आया और उन पर रेंगते हुए चला गया, लेकिन वर्धमान विचलित नहीं हुए. यह देखकर साथी बालक सहम गए और माता-पिता भी आश्चर्य से भर गए. राजगुरू ने तभी भविष्यवाणी की, यह बालक आगे जगत प्रकाशक बनेगा. महावीर 30 साल के थे जब उन्होंने घर छोड़ दिया और दीक्षा लेने चले गए थे. इसी तरह उन्होंने एक नगर में मानव जाति के शत्रु बने नाग को अहिंसा का पाठ पढ़ाया, जिससे वह विषधर स्वर्ग का अधिकारी बना.
यह हैं स्वामी महावीर के सिद्धांत
दीक्षा लेने के बाद महावीर ने 12 साल तक तपस्या की. कहा जाता है कि भगवान महावीर के दर्शन के लिए भक्तों को उनके सिद्धांतों का पालन करना जरूरी होता है. स्वामी महावीर स्वामी सबसे बड़ा सिद्धांत अहिंसा है. अहिंसा के साथ, सत्य, अचौर्य, बह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करना आवश्यक होता है.
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हर मनुष्य बन सकता है जितेंद्रिय
उनका मानना था कि किसी से मांग कर, प्रार्थना करके या हाथ जोड़कर धर्म नहीं पाया जा सकता है. महावीर मानते थे कि धर्म कोई वस्तु नहीं जो मांगने से मिलेगी इसे खुद धारण करना होता है. धर्म जीतने से मिलता है, जिसके लिए संघर्ष बेहद जरूरी है. महावीर भक्ति में नहीं ज्ञान और कर्म में भरोसा रखते थे.
स्वामी महावीर के अनुयायी ऐसा मानते हैं कि आत्मा की दुष्प्रभावों को अगर निकाल दे तो किसी को जीतने में अधिक कठिनाई नहीं आएगी. सबसे पहले खुद को महान बनाए जिसके लिए अंतर्मन के दुष्प्रभावों से जीतना बहुत जरूरी है.
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