नई दिल्ली: चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में प्राचीन काल में भारत ने जो उपलब्धियां हासिल की थीं, उन्हें जानकर हर भारतीय को गर्व होगा. इस बात के अनगिनत प्रमाण उपलब्ध हैं कि जब दुनिया भर की सभ्यताएं अपने शैशवकाल दौर में थीं, तब हिन्दुस्तान सर्जरी समेत मेडिकल साइंस के तमाम क्षेत्रों में अनगिनत शोध कर चुका था.
ईसा से 600 साल पहले से है भारत में सर्जरी की तकनीक
600 ईस्वी पूर्व यानी आज से करीब 2600 साल पहले से ही भारत चिकित्सा विज्ञान में बड़ी उपलब्धियां हासिल कर चुका था. इस काल में लिखी गई एक चिकित्सा संहिता में शल्य चिकित्सा यानी सर्जरी की जो विधियां बताई गई हैं, वो अत्याधुनिक विधियों से भी ज्यादा परिष्कृत हैं.
क्या आप यकीन करेंगे कि दुनिया भर में शल्य चिकित्सा के पितामह माने जाने वाले सुश्रुत नाम के भारतीय मनीषी सर्जरी के लिए 125 तरह के उपकरणों का इस्तेमाल करते थे. सुश्रुत ने ही 300 तरह की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की खोज की थी. वह इतने निपुण सर्जन थे कि कॉस्मेटिक सर्जरी, सिजेरियन डिलीवरी से लेकर आंखों तक के जटिल ऑपरेशन करते थे. इन ऑपरेशनों से पहले सर्जरी के उपकरणों को बैक्टीरिया मुक्त करने के लिए आधुनिक युग की तरह सैनेटाइज भी किया जाता था.
इस तरह की शल्य चिकित्सा(ऑपरेशन) से पहले मरीजों को एनिस्थिसिया देकर बेहोश करने की भी प्रक्रिया पूरी की जाती थी. जिससे मरीजों को दर्द की अनुभूति नहीं हो. यही नहीं आधुनिक काल की ही तरह अलग अलग कार्यों के लिए अलग अलग तरह के मेडिकल उपकरण तैयार किए जाते थे. प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों में 74 तरह के सर्जिकल उपकरणों का वर्णन मिलता है. जिसमें छुरियां, संडसियां, चिमटियां वगैरह जैसे उपकरण शामिल हैं.
अनुपम था चिकित्सा विज्ञान के महारथी सुश्रुत का ज्ञान
आज शरीर के अलग-अलग हिस्से की सर्जरी के अलग-अलग विशेषज्ञ होते हैं. लेकिन तकरीबन 2600 साल पहले चिकित्सा विज्ञान के आदि पुरुष सुश्रुत प्लास्टिक सर्जरी भी करते थे और आंखों का ऑपरेशन भी.
यही नहीं वह बिना एक्सरे किए ही टूटी हुई हड्डियों की स्थिति का सही अंदाजा भी लगा लेते थे और ऑपरेशन के जरिए उसे शानदार ढंग से जोड़ भी देते थे.
महर्षि सुश्रुत ने लिखा शल्य चिकित्सा पर अद्वितीय ग्रंथ
सर्जरी के प्राचीन महारथी सुश्रुत ने अपने ज्ञान के आधार पर सुश्रुत संहिता नाम का अमर ग्रंथ लिखा है. जिसके दो भाग हैं- पूर्व तंत्र और उत्तर तंत्र
सुश्रुत ने अपनी पुस्तक में शल्य चिकित्सा की आठ प्रक्रियाओं का उल्लेख किया है. ये हैं-
1. छेद्य (छेदन हेतु)
2. भेद्य (भेदन हेतु)
3. लेख्य (अलग करने हेतु)
4. वेध्य (शरीर में हानिकारक द्रव्य निकालने के लिए)
5. ऐष्य (नाड़ी में घाव ढूंढने के लिए)
6. अहार्य (हानिकारक उत्पत्तियों को निकालने के लिए)
7. विश्रव्य (द्रव निकालने के लिए)
8. सीव्य (घाव सिलने के लिए)
सुश्रुत संहिता के पहले हिस्से यानी पूर्व तंत्र में पांच हिस्से हैं. जिन्हें 'सूत्रस्थान', 'निदानस्थान', 'शरीरस्थान', 'कल्पस्थान' तथा 'चिकित्सास्थान' के नाम से लिखा गया है. इसके 120 अध्याय हैं, जिनमें आयुर्वेद के 4 प्राथमिक अंगों 'शल्यतंत्र', 'अगदतंत्र', 'रसायनतंत्र', 'वाजीकरण' के बारे में विस्तार से बताया गया है.
महर्षि सुश्रुत की पुस्तक का दूसरा हिस्सा यानी उत्तर तंत्र को 64 अध्यायों में बांटा है. जिसमें आयुर्वेद के बाकी के 4 अंगों 'शालाक्य', 'कौमार्यभृत्य', 'कायचिकित्सा' तथा 'भूतविद्या' के बारे में बताया गया है.
इस अध्याय में सर्जरी के साइड इफेक्ट यानी ऑपरेशन के बाद होने वाली परेशानियों के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है. जैसे ज्वर, पेचिस, हिचकी, खांसी, कृमिरोग, पाण्डु (पीलिया), कमला आदि.
उत्तरतंत्र के एक हिस्से 'शालाक्यतंत्र' में ENT यानी जिसमें आँख, कान, नाक और सिर के रोगों का वर्णन किया गया है.
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