तमिलनाडु के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल, राजीव गांधी गवर्नमेंट जनरल हॉस्पिटल में स्वस्थ रहने के प्रतीक के तौर पर सिर्फ मरीज नहीं, बल्कि एक 77 साल पुराना वाशिंग मशीन भी मौजूद है.
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तमिलनाडु के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल, राजीव गांधी गवर्नमेंट जनरल हॉस्पिटल में स्वस्थ रहने के प्रतीक के तौर पर सिर्फ मरीज नहीं, बल्कि एक 77 साल पुराना वाशिंग मशीन भी मौजूद है. भारत की आजादी के कुछ ही महीनों बाद ब्रिटेन से इम्पोर्ट किया गया यह पीतल का मशीन आज भी अस्पताल के गंदे कपड़ों को धो रहा है. जहां कई आधुनिक मशीनें खराब हो चुकी हैं, वहीं यह मशीन धमाचौक काम कर रहा है.
मशीन भले ही पुराना दिखता है और उसका रंग उड़ चुका है, लेकिन यहां काम करने वाले कर्मचारी इसकी कसम खाते हैं कि यह आज भी नए मशीनों से बेहतर काम करता है. यहां और तीन ब्रिटिश इम्पोर्ट की गई मशीनें हैं जो खराब हो चुकी हैं, लेकिन कर्मचारी चाहते हैं कि उन्हें भी ठीक करवाया जाए. यह अस्पताल 1664 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा स्थापित किया गया था. लेकिन इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि इस मशीन को किसने जे डब्ल्यू लाइटबर्न एंड सन्स, नॉटिंघम से मंगवाया था.
नहीं पता किसने मंगाई थी मशीनें
अस्पताल प्रशासन के पास इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि किसने मशीन को मंगवाया था, लेकिन उनका मानना है कि उस समय के एडमिनिस्ट्रेटर्स ने ऐसा इसलिए किया होगा क्योंकि आजादी से पहले के तीन अन्य मशीन, जो लिस्टर ब्रो लिमिटेड द्वारा बनाए गए थे, जोकि अस्पताल के बेडस्प्रेड, सर्जिकल स्क्रब और एप्रन को धोने का अच्छा काम करते थे. अब ये मशीनें अब खराब हो चुकी हैं और अस्पताल के डीन डॉ. ई थेरानिराजन ने इंजीनियरिंग कॉलेजों से इन्हें एक विशेष प्रोजेक्ट के रूप में ठीक करने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा कि मैकेनिक हमें बताते हैं कि उन्हें स्पेयर पार्ट्स नहीं मिल रहे हैं. अगर उन्हें ठीक करने का मौका है, तो हम उस मौके को नहीं छोड़ेंगे.
कैसे काम करते है ये वाशिंग मशीन?
यह वाशिंग मशीन अभी भी एक रोलर की तरह काम करता है और कपड़े धोने वाले कर्मचारियों को इसे खोलने और बंद करने के लिए एक लीवर को धक्का देना पड़ता है और एक पहिया घुमाना पड़ता है. लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि इसमें 150 बेडशीट रखने के लिए चार डिब्बे हैं, जिन्हें धोने के बाद आसानी से निकाला जा सकता है. उनका कहना है कि आधुनिक वाशिंग मशीन में केवल एक चैंबर होता है जिसमें 200 बेड शीटे आती हैं, हालांकि इन्हें धोने के बाद बाहर निकालना काफी मुश्किल होता है.
श्रमिकों की आवाजों से गूंज उठता है लॉन्ड्री रूम
हर दिन सुबह होने पर, अस्पताल के कपड़े धोने का कमरा कपड़े धोने वाले लोगों की आवाजों से गूंज उठता है. अगर मशीन ऑपरेटर गुनासेकरन ड्यूटी पर हैं, तो वे ब्रिटिश-निर्मित मशीन की ओर दौड़ते हैं. उनका कहना है, "ये मशीनें तेज, आसानी से और कम लागत में काम करती हैं. गुनासेकरन बताते हैं कि कपड़े 80 डिग्री सेल्सियस गर्म पानी में मशीन के अंदर भिगोते हैं, हर एक चक्र में 30 मिनट की कठोर धुलाई होती है. फिर चादरों को एक ड्रम जैसा डिब्बे में डाला जाता है, जो एक्स्ट्रा पानी को बाहर निकाल देता है. 15 मिनट बाद, इन कपड़ों को धूप में सुखाने के लिए बाहर निकाल लिया जाता है."
चार साल भी नहीं चली नई मशीनें
लॉन्ड्री रूम की इंचार्ज ग्रेड-2 नर्स माला ने बताया कि ब्रिटेन से इम्पोर्ट की गई अन्य तीन मशीनों के काम करना बंद करने के बाद, अस्पताल ने चार साल पहले तमिलनाडु मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन के माध्यम से तीन नई कपड़े धोने की मशीनें खरीदीं. उनमें से दो पहले ही खराब हो चुके हैं. नई मशीनें अधिक आकर्षक और सस्ती हैं. लेकिन पुरानी मशीनें अधिक प्रभावी साबित हुई हैं. उन्होंने आगे कहा कि नई मशीनें एक बार में 200 शीट तक रखती हैं, लेकिन उनमें अलग-अलग कम्पार्टमेंट नहीं होते हैं. इसलिए सभी कपड़े एक ही रोलर में धोए जाते हैं. श्रमिकों को उन्हें बाहर निकालने में कठिनाई होती है. नई मशीनों का उपयोग करने वाले श्रमिक अक्सर पीठ दर्द की शिकायत करते हैं.