बहुत काम का है ये जहर वाला पौधा, जान लेने के साथ बीमारियों को भी करता है ठीक
Advertisement

बहुत काम का है ये जहर वाला पौधा, जान लेने के साथ बीमारियों को भी करता है ठीक

भारत में पाया जाने वाले इस पौधे को रत्ती या गुंजा का पौधा भी कहा जाता है. इस पौधे के बीज से सांप के जहर जैसा ही खतरनाक और जहरीला पदार्थ निकलता है.

बहुत काम का है ये जहर वाला पौधा, जान लेने के साथ बीमारियों को भी करता है ठीक

मध्य प्रदेश के भिंड में 7 साल के एक बच्चे की मौत का हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है. इस बच्चे के लक्षण ऐसे थे जैसे इसे सांप ने काट लिया हो. शरीर में जहर भी ऐसा ही था जैसे सांप के काटने पर होता है. लेकिन ये बच्चा सांप का नहीं, बल्कि एक पौधे का शिकार हुआ. आपको शायद यकीन ना हो लेकिन कुछ इसी तरह दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के डॉक्टरों को भी पहले यकीन नहीं हुआ था.

दरअसल, भारत में पाया जाने वाला एक खास तरह का पौधा जिसे रत्ती या गुंजा का पौधा भी कहा जाता है, उस पौधे के बीजों की वजह से ये बच्चा बीमार हुआ. इस पौधे के बीज से सांप के जहर जैसा ही खतरनाक और जहरीला पदार्थ निकलता है. इस पौधे को विज्ञान की भाषा में Abrus Precatorius कहा जाता है और इससे निकलने वाले जहर का नाम Abrin है. ये जहर उतना ही घातक और जानलेवा हो सकता है जितना सांप का जहर.  

भिंड के गांव में तीन बच्चे खेत से जा रहे थे, वहीं पर रत्ती का पौधा भी लगा था. उस समय पौधा और उसके बीज थोड़े मुलायम थे. दो बच्चों ने इस पौधे को फल समझकर खा लिया, जिसके बाद इनकी हालत बिगड़ गई.

कैसे हुआ पौधे के जहर का इलाज?
बच्चे को जब दिल्ली के अस्पताल में इमरजेंसी में लाया गया तो बच्चा बेहोश था, उसके दिमाग में सूजन आ चुकी थी और और उसका पल्स रेट बहुत ज्यादा हो गया था. बच्चे को इस बीज से मिले जहर का शिकार हुए 24 घंटे बीत चुके थे. अगर जहर का शिकार होने के बाद के एक घंटे में अस्पताल पहुंचा जा सके तो उस जहर की काट यानी एंटीडॉट दी जा सकती है. लेकिन इस बच्चे के मामले में वो वक्त बीत चुका था और अब antidote देने से कोई फायदा नहीं होने वाला था.

आमतौर पर ऐसे जानलेवा जहर के संपर्क में आने पर 2 घंटे के अंदर मरीज का पेट मेडिकल तरीके से पूरी तरह साफ किया जा सकता है और उसे चारकोल थेरेपी दी जाती है. हालांकि इस Abrin नाम के जहर का कोई Antidote मौजूद नहीं है. ऐसे में शरीर में जा चुके इस जहर को बाहर निकालने के अलावा कोई और चारा नहीं बचता. 

इसके अलावा मरीज को जहर से होने वाले दूसरे साइड इफेक्ट्स से बचाने के लिए उसे सपोर्टिव ट्रीटमेंट दिया जाता है. जैसे अगर मरीज ने सांस के जरिए जहर को निगल लिया है तो उसे सांस लेने में दिक्कत होगी. उसके लिए ऑक्सीजन देना होगा. इसी तरह बीपी कंट्रोल करने के लिए दवाएं दी जाती हैं.

उसके अलावा एक्टिवेटिड चारकोल थेरेपी दी जाती है. चारकोल जहर को एब्जॉर्ब कर लेता है और जहर शरीर में नहीं फैलता. इसके अलावा आंखों और पेट को मेडिकल तरीके से साफ किया जाता है.

अस्पताल के पीडियाट्रिक एमरजेंसी केयर के एक्सपर्ट डॉ धीरेन गुप्ता के मुताबिक इस बच्चे को अस्पताल में भर्ती करके चार दिनों तक इलाज किया गया. एमपी के इस बच्चे को तो बचा लिया गया, लेकिन इस लड़के का एक 5 साल का छोटा भाई भी था. उसने भी गलती से ये जहर निगल लिया था. 24 घंटे के अंदर ही इस बच्चे की हालत बिगड़ गई. उसे दौरे पड़े, वो कोमा में चला गया और उसकी मौत हो गई. इसलिए ये ऐसी बीमारी है जिसके इलाज के लिए जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचना जरूरी होता है. 

क्या होता है रत्ती का पौधा?
गुंजा या रत्ती के पौधे से बहुत सी दवाईयां बनाई जाती हैं. आयुर्वेद में इस पौधे का बहुत महत्व है. गुंजा के पौधे से बनी दवाओं से टिटनेस, ल्यूकोडर्मा(स्किन इंफेक्शन) और सांप के काटने का इलाज भी होता है. इसे वात और पित्त की बीमारियों के इलाज में कारगर माना जाता है.

इस पौधे को कितना अहम माना जाता है ये आप इस बात से समझ सकते हैं कि पुराने समय में सुनार कीमती रत्नों और सोने को तौलने के लिए गुंजा के पौधे के बीज यानी रत्ती का इस्तेमाल करते थे. एक रत्ती के बीज का वजन 125 मिलीग्राम माना जाता था. अब इसे 105 मिलीग्राम माना जाता है.

अब अगर कोई आपसे कहे कि उसे “रत्ती” भर भी यकीन नहीं है, तो अब आप इस मुहावरे का मतलब आसानी से समझ सकते हैं. वैसे रत्ती में कुछ जादुई गुण भी पाए जाते हैं.

पाठकों की पहली पसंद Zeenews.com/Hindi - अब किसी और की ज़रूरत नहीं. 

Trending news