दूल्हा घोड़ी पर नहीं बैठना चाहिए... धमकी मिलने पर दलित दूल्हे ने पुलिस की सेक्युरिटी पूरी की शादी की रस्म
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दूल्हा घोड़ी पर नहीं बैठना चाहिए... धमकी मिलने पर दलित दूल्हे ने पुलिस की सेक्युरिटी पूरी की शादी की रस्म

Bundelkhand Wedding Ceremony: मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में एक बार फिर सामंती मानसिकता और सामाजिक भेदभाव का मामला सामने आया है. टीकमगढ़ जिले के हटा गांव में 17 नवंबर 2024 को जितेन्द्र अहिरवार नामक दलित युवक की शादी थी, लेकिन दूल्हे को घोड़ी पर बैठाने की परंपरा को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ.

 

दूल्हा घोड़ी पर नहीं बैठना चाहिए... धमकी मिलने पर दलित दूल्हे ने पुलिस की सेक्युरिटी पूरी की शादी की रस्म

Wedding News: मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में एक बार फिर सामंती मानसिकता और सामाजिक भेदभाव का मामला सामने आया है. टीकमगढ़ जिले के हटा गांव में 17 नवंबर 2024 को जितेन्द्र अहिरवार नामक दलित युवक की शादी थी, लेकिन दूल्हे को घोड़ी पर बैठाने की परंपरा को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ. गांव के कुछ सामंती प्रवृत्तियों वाले लोगों ने आपत्ति जताई कि दलित दूल्हे को घोड़ी पर नहीं चढ़ने दिया जाए, जो एक आम सामाजिक प्रथा है.

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बुंदेलखंड में अभी भी कई गांवों में सामंती सोच की जड़ें मजबूत हैं, जिसके कारण निचले जातियों के लोग अक्सर सामाजिक सम्मान की साधारण रस्मों का पालन नहीं कर पाते. यही स्थिति जितेन्द्र अहिरवार के विवाह के समय भी देखने को मिली. विवाह से पूर्व होने वाली "रछवाई" या "राछ फिरने" की रस्म में दूल्हा घोड़ी पर बैठकर पूरे गांव में घूमता है, जहां रिश्तेदार और परिवार के लोग उसे सम्मान देने के लिए टीका करते हैं और उपहार प्रदान करते हैं.

हालांकि, हटा गांव में इस रस्म को लेकर पूर्व में विवाद हो चुका था, जब दलित दूल्हे को घोड़ी पर बैठने की अनुमति नहीं दी गई थी. इस बार भी कुछ स्थानीय दबंगों ने जितेन्द्र के घोड़ी पर चढ़ने का विरोध किया, जिससे वह डर गए. लेकिन उन्होंने इस घटना से सबक लेते हुए पुलिस से सुरक्षा की मांग की. बल्देवगढ़ थाना क्षेत्र के अधिकारियों ने इस मामले को गंभीरता से लिया और दूल्हे के विवाह के दिन सुरक्षा के इंतजाम किए.

पुलिस ने गांव में पहले जाकर लोगों को समझाया और सुनिश्चित किया कि कोई अप्रिय घटना न हो. पुलिस की सुरक्षा के तहत जितेन्द्र को घोड़ी पर बिठाया गया और उसके साथ आधा दर्जन पुलिसकर्मी थे. इस पूरी प्रक्रिया में पुलिस ने यह सुनिश्चित किया कि रछवाई की रस्म शांति से संपन्न हो और दूल्हे को पूरी सुरक्षा मिले.

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जितेन्द्र अहिरवार की शादी का यह मामला सामाजिक बदलाव की ओर एक कदम साबित हुआ है, जहां दलित समुदाय के लोग भी समान अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं.यह घटना बताती है कि आजादी के 77 साल बाद भी कई जगहों पर सामंती मानसिकता का प्रभाव बना हुआ है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में.

यह घटना बुंदेलखंड में पहले भी कई बार देखी जा चुकी है, जहां निचली जाति के दूल्हे को घोड़ी पर चढ़ने से रोका गया है, लेकिन पुलिस की मदद से ये रस्में पूरी हो सकी हैं. हालांकि, यह बदलाव धीरे-धीरे आ रहा है, लेकिन अब भी कई स्थानों पर ऐसी कुप्रथाओं का सामना करना पड़ता है.

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