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Tsunami During 2004 Disaster: 2004 में आए भयंकर सुनामी के दौरान नमिता रॉय ने अपने बेटे 'सुनामी' को एक सांपों से भरे जंगल में जन्म दिया. यह घटना उस समय की थी जब विशाल लहरों ने अंडमान और निकोबार के हुत बे आईलैंड को तबाह कर दिया था. उस दिन के बारे में नमिता कहती हैं, "मैं उस काले दिन को याद नहीं करना चाहती." उनका गला भर आता है. नमिता रॉय ने PTI से बातचीत में उस भयानक दिन को याद करते हुए बताया, "समुद्र के अचानक उफनने से पहले एक अजीब सी खामोशी थी. फिर एक भयंकर पानी की दीवार और कंपन के साथ लहरें आईं."
इस दौरान लोग अपनी जान बचाने के लिए पहाड़ी की ओर दौड़े, लेकिन उन्हीं में से एक थीं नमिता, जो उस उथल-पुथल में बेहोश हो गईं और घंटों बाद जंगल में होश में आईं. इस दौरान उनका पति और बड़ा बेटा सुरक्षित थे, लेकिन उनके घर और आईलैंड की तबाही ने उन्हें गहरे सदमे में डाल दिया.
अस्पताल से दूर जंगल में दिया बेटे को जन्म
उस रात नमिता को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई, लेकिन उनके पास कोई चिकित्सा सहायता नहीं थी. जंगल में उन्होंने कुछ अन्य महिलाओं की मदद से एक पत्थर पर अपने बेटे 'सुनामी' को जन्म दिया. इस दौरान वे सांपों से घिरी हुई थीं. नमिता कहती हैं, "भोजन नहीं था, और समुद्र के डर से हम जंगल में छिपे हुए थे. मैं किसी तरह अपने प्रीमैच्योर बच्चे को खिला रही थी, जबकि मेरी हालत खून की कमी के कारण बिगड़ती जा रही थी."
चार रातों तक जंगल में रहे, फिर मिली मदद
परिवार ने चार रातें जंगल में बिताईं. इसके बाद रक्षा कर्मियों द्वारा उनकी मदद की गई और उन्हें पोर्ट ब्लेयर के अस्पताल में इलाज के लिए भेजा गया. आज नमिता अपने बेटों, सौरभ और सुनामी के साथ पश्चिम बंगाल के हुगली में रहती हैं. आज नमिता का बेटा 'सुनामी' अंडमान प्रशासन की सेवा करने के लिए महासागरविज्ञानी बनने का सपना देखता है. नमिता की बड़ी बहादुरी की कहानी पर उनके बेटे सौरभ ने कहा, "मेरी मां मेरे लिए सबसे मजबूत इंसान हैं. जब मेरे पिता महामारी के दौरान गुजर गए, तो उन्होंने दिन-रात काम किया और 'सुनामी किचन' नामक एक फूड डिलीवरी सेवा शुरू की."
2004 के भयानक सुनामी के बाद की स्थिति
2004 में आई सुनामी से हुई तबाही को देखा जाए तो यह महसूस होता है कि अगर उस समय एक चेतावनी प्रणाली होती, तो काफी जानें बचाई जा सकती थीं. आज, दुनिया भर में 1,400 से अधिक चेतावनी स्टेशनों की स्थापना की गई है, जो ऐसे आपदाओं से निपटने के लिए बेहतर तैयारी सुनिश्चित करते हैं. नमिता रॉय की यह कहानी न केवल एक मां की संघर्षपूर्ण यात्रा है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी उम्मीद और साहस से जीने का नाम है.