इमरान की 'गुगली' से PAK में बवाल, क्‍या राष्‍ट्रपति और डिप्‍टी स्‍पीकर ने सही किया?
Advertisement
trendingNow11142358

इमरान की 'गुगली' से PAK में बवाल, क्‍या राष्‍ट्रपति और डिप्‍टी स्‍पीकर ने सही किया?

इमरान खान ने अपनी PM की कुर्सी बचाने के लिए 'गुगली' फेंकी. हालांकि, कुर्सी तो नहीं बची लेकिन मुल्क में बवाल मच गया है. यह बहस भी शुरू हो गई है कि इमरान की मांग पर जिस तरह से अमल हुआ और डिप्टी स्पीकर ने जो रुख अपनाया क्या वो सही है?

फाइल फोटो

इस्लामाबाद: पाकिस्तान (Pakistan) के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) ने विपक्ष के चक्रव्यूह को भेदने के लिए जो तिकड़म लगाई उसे लेकर मुल्क में चर्चा का दौर शुरू हो गया है. हालांकि, इसके बावजूद खान अपनी PM की कुर्सी बचाने में नाकाम रहे, लेकिन उन्होंने इस बहस को जन्म जरूर दे दिया है कि क्या राष्ट्रपति (PAK President) और डिप्टी स्पीकर (Deputy Speaker) ने सही किया? बता दें कि इमरान के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए राष्ट्रपति डॉ आरिफ अल्वी (Arif Alvi) ने नेशनल असेंबली को भंग कर दिया है. 

  1. पाकिस्तान का राजनीतिक घटनाक्रम चरम पर
  2. इमरान खान के कहने पर नेशनल असेंबली भंग
  3. इमरान ने विपक्ष के प्रस्ताव का नहीं किया सामना

प्रस्ताव पर डिप्टी स्पीकर ने दिया ये तर्क 

इमरान खान (Imran Khan) ने हैरान करने वाला कदम उठाते हुए राष्ट्रपति को संसद भंग करने की सलाह दी थी. वहीं, खान के खिलाफ वोटिंग से पहले ही नेशनल एसेंबली के डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी ने अविश्वास प्रस्ताव को असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया. सूरी ने कहा कि ये अविश्वास प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 5 के खिलाफ है. पाकिस्तान के राष्ट्रपति के कार्यालय से जारी बयान में कहा गया है कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति डॉ आरिफ अल्वी ने प्रधानमंत्री इमरान खान की नेशनल असेंबली भंग करने की सलाह को मंजूरी दे दी है. ऐसा पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 58 (1) और 48 (1) के तहत किया गया है.

ये भी पढ़ें -इमरान खान से छिना पाकिस्तान का प्रधानमंत्री पद, जानें अब किसके हाथ में देश की कमान

भड़के विपक्ष ने बताया राजद्रोह

विपक्ष इस ताजा राजनीतिक घटनाक्रम से नाराज है. शहबाज शरीफ ने असेंबली भंग करने के प्रस्ताव को लेकर इमरान खान पर राजद्रोह का आरोप लगाया है. गौरतलब है कि खान का आरोप है कि उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटाने के लिए विपक्ष अमेरिका के साथ मिल साजिश रच रहा है. उन्होंने इस बारे में एक रैली में कथित चिट्ठी दिखाकर उसे सबूत बताया था. हालांकि, अमेरिका ने इन आरोपों से इनकार किया. वहीं, इमरान सरकार के एक पूर्व मंत्री के मुताबिक, चुनाव अगले 90 दिनों में होंगे.

संविधान के जानकार भी हैरान

इमरान खान और डिप्टी स्पीकर के कदम से पाकिस्तान के संविधान के जानकार (Constitution Experts) भी हैरान हैं. इस बारे में बीबीसी से बात करते हुए पूर्व पेशावर हाईकोर्ट जज शेर मोहम्मद खान ने कहा, ये बिल्कुल गैर-संवैधानिक कदम है और ये मुल्क के लिए बहुत ज्यादा नुकसानदेह होगा. उन्होंने कहा, ‘सवाल ये है कि अगर इनको ये पता था कि इन्हें ये चिट्ठी सात मार्च को मिली थी, तो इतने समय तक उन्होंने इसे सार्वजनिक क्यों नहीं किया? जिस मुल्क पर इमरान आरोप लगा रहे हैं, उसने साफतौर पर इससे इनकार किया है. ये बिल्कुल बेहूदा किस्म की हरकत है जिससे इस पाकिस्तान को फायदे की जगह बहुत नुकसान पहुंचेगा.

ये भी पढ़ें- एक जैसा दिख रहा इमरान खान और सिद्धू का हाल! राजनीति में दोनों की हुई ऐसी हालत

‘मुल्क को पहुंचेगा काफी नुकसान’

शेर मोहम्मद ने कहा कि पाकिस्तान के 75 साल के इतिहास में आज तक ऐसा कदम नहीं लिया गया.  इमरान को यकीन था कि उन्हें असेंबली का कॉन्फ़िडेंस नहीं है, तो इस वजह से उन्होंने वो कदम उठाया जो एक आम आदमी भी नहीं उठाता. पूरी दुनिया के साथ हमारे रिश्ते हैं,  अब उस पर इसका असर पड़ेगा. ये एक यूनिक तरह का कदम है. जिन मुल्कों में लोकतंत्र है, संविधान का जोर है, ऐसे मुल्कों में मैंने इस तरह की बात नहीं सुनी. मुझे यकीन है कि सुप्रीम कोर्ट इस कदम को गैर-संवैधानिक करार दे देगा. अगर ऐसा न हुआ तो आम लोग सड़कों पर निकलेंगे जिससे इस मुल्क को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचेगा.  

डिप्टी स्पीकर का कदम गैर-संवैधानिक

वहीं, पाकिस्तान बार काउंसिल के पूर्व वाइस चेयरमैन आबिद साकी कहते हैं कि डिप्टी स्पीकर का कदम पूरी तरह से गैर-संवैधानिक है. उसकी जरूरत नहीं थी और वो अन्यायपूर्ण है. ये कदम लोकतंत्र के सभी कायदों के खिलाफ है. इस कदम से इमरान ने देश को संवैधानिक संकट में डाल दिया है. प्रधानमंत्री ने असेंबली को भंग किए जाने की सलाह दे थी, लेकिन आर्टिकल 58 के तहत वो ऐसी सलाह नहीं दे सकते क्योंकि उनके खिलाफ़ नो-कॉन्फिडेंस की मोशन मूव हो चुका था.

इस फैसले ने खड़े किए कई सवाल

इस्लामाबाद बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहम्मद शोएब शाहीन ने कहा कि अब चूंकि संवैधानिक संकट खड़ा हो चुका है, सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट की ओर होंगी. उन्होंने कहा कि एक तरफ स्पीकर की रूलिंग है, उसमें आमतौर पर हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को जुडिशियल रिव्यू का अख्तियार हासिल है. जहां भी ऐसी स्थिति हो, आखिरी फैसला सुप्रीम कोर्ट का होता है. सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या नो-कॉन्फ़िडेंस मोशन लाने के बाद, क्या वो असेंबली को भंग करने की सलाह दे सकते हैं? दूसरा सवाल ये कि जब नो-कॉन्फ़िडेंस मोशन पर वोटिंग होने वाली थी, उस स्टेज पर बिनी किसी वजह के या किसी और बुनियाद के क्या तहरीर को खत्म किया जा सकता था? 

'कोई संवैधानिक आधार नहीं'

शाहीन के मुताबिक, सैद्धांतिक तौर पर, जो इमरान खान ने किया, उसका कोई भी संवैधानिक आधार नहीं है. जब नो-कॉन्फ़िडेंस मोशन का प्रोसेस शुरू हो जाए, तो उसे अपने अंजाम तक पहुंचने देना चाहिए था. इसी तरह, लंदन में रहने वालीं लेखिका आएशा सिद्दीका का भी मानना है कि इमरान ने जो किया वो संवैधानिक तौर पर गलत है. विपक्ष सुप्रीम कोर्ट गया है और कोर्ट को फैसला लेना है. उन्होंने आगे कहा, ‘मामला संवैधानिक तौर पर संगीन है. क्या डिप्टी स्पीकर नो-कॉन्फ़िडेंस वोट को इस तरह निरस्त कर सकते हैं या नहीं, मेरे ख्याल से ये मामला सुलझना चाहिए. जो बात समझ में आ रही है वो ये है कि असेंबली स्पीकर ने कहा कि ये नहीं होना चाहिए, तो उन्होंने ये सेशन डिप्टी-स्पीकर से करवाया. इमरान खान चाह रहे हैं कि स्थिति का फायदा उठाकर चुनाव में जाएं. वो इतना संकट पैदा कर चुके हैं कि उन्हें उम्मीद बढ़ गई है कि लोग उन्हें वोट करेंगे और मुझे ऐसा लगता है कि उनके इस प्रोपोगैंडा का थोड़ा कुछ असर पड़ेगा’.

 

Trending news