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कैसे बना था दुनिया का पहला रिमोट, क्या है इसके बनने की कहानी, जानें सबकुछ

Remote History: आज के समय मार्केट में आने वाली टीवी के साथ रिमोट भी आता है, जिससे आप टीवी को आसानी से कंट्रोल कर सकते हैं. आपको चैनल चेंज करना हो, वॉल्यूम कम या ज्यादा करना हो, म्यूट करना हो या कोई और सेटिंग करनी हो, सबकुछ रिमोट की मदद से आसानी से हो जाता है. ऐसा कहा जा सकता है कि रिमोट की मदद से टीवी देखना काफी आसान हो गया है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि दुनिया का पहला रिमोट कब बना था. इसका अविष्कार कैसे हुआ. आइए आपको इसके बनने की कहानी बताते हैं. 

उठकर दबानी पड़ती थी बटन

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उठकर दबानी पड़ती थी बटन

भारत में टीवी तो कई दशक पहले आ गया था. लेकिन, तब टीवी के साथ रिमोट नहीं आता था. उस समय लोगों को टीवी पर चैनल बदलने या आवाज कम या ज्यादा करने के लिए उठकर टीवी के पास जाना होता था और बटन दबाना होता था. इसमें लोगों का ज्यादा समय लगता था. 

 

लोगों को परेशानी

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लोगों को परेशानी

यह काफी टाइम टेकिंग प्रोसेस होता था. साथ ही बार-बार उठने से कई बार लोग परेशान भी हो जाते थे. लेकिन, आज ऐसा नहीं है. आज लोग अपनी जगह पर बैठे-बैठे टीवी को आसानी से कंट्रोल कर सकते हैं. यह सब टीवी के रिमोट की मदद से होता है. शुरुआता में टीवी के साथ रिमोट नहीं आता था, तो फिर रिमोट की शुरूआत कब से हुई. आइए आपको बताते हैं. 

 

मशीन

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मशीन

सबसे पहले एक ऐसी मशीन बनाई गई थी, जिसकी मदद से टीवी से चैनल बदला जा सकता था. लेकिन, इस मशीन को टीवी से जोड़ना पड़ता था. लेकिन, यह लोगों को पसंद नहीं आई. 1950 के दशक में अमेरिकी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी के प्रमुख ने यूजीन एफ मैक्डॉनल्ड ने कंपनी के इंजीनियरों को ऐसा यंत्र बनाने के लिए कहा जिससे बैठ-बैठे चैनल बदला जा सके. 

 

फ्लैशमैटिक

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फ्लैशमैटिक

यूजीन की इच्छा पर 1955 में जेनिथ कंपनी ने एक उपकरण बनाया जिसे "फ्लैशमैटिक" कहा जाता था. इसे रिमोट नहीं बल्कि फ्लैशमैटिक कहा जाता था क्योंकि यह रोशनी का इस्तेमाल करके टीवी को कंट्रोल करता था. इस उपकरण को जेनिथ कंपनी के इंजीनियर यूजीन पॉले ने बनाया था. 

 

कैसे काम करता था

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कैसे काम करता था

फ्लैशमैटिक में कुछ बटन होते थे. जब कोई व्यक्ति इस पर बटन दबाता था, तो उससे एक रोशनी निकलती थी, जो टीवी पर लगे एक सेंसर पर पड़ती थी. इस तरह से टीवी के को कंट्रोल किया जाता था. लेकिन, फ्लैशमैटिक में बहुत कम बटन होते थे, जिससे केवल कुछ ही फंक्शन को कंट्रोल किया जा सकता था. 

 

कीमत ज्यादा

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कीमत ज्यादा

लेकिन, इसका एक नुकसान भी था. फ्लैशमैटिक रोशनी से काम करता था. इसलिए कभी-कभी टीवी पर सूरज की किरण पड़ने पर वह अपने आप चालू हो जाता था और बंद भी होज जाता था. साथ ही इसकी कीमत भी काफी ज्यादा होती थी. फ्लैशमैटिक को खरीदने के लिए लोगों को उस समय 100 डॉलर खर्च करने पड़ते थे.

 

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