UP Lok Sabha Election BJP: बीजेपी ने यूपी के 50 उम्मीदवारों के नाम फाइनल करने के साथ ही सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग पर भी मुहर लगा दी है. तड़के सवा तीन बजे तक पीएम नरेंद्र मोदी ने भाजपा के केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक की. सूत्रों के मुताबिक यूपी की 80 में से 6 सीटें सहयोगी दलों को देने पर सहमति बनी है. राष्ट्रीय लोकदल को दो, अपना दल (सोनेलाल) को दो और सुभासपा और निषाद पार्टी को 1-1 सीट दी जा सकती है.
दरअसल, भाजपा ने सहयोगी दलों के साथ डील कुछ इस तरह से की है कि उन्हें यूपी मंत्रिमंडल में भी शामिल किया जाएगा. अगले 3 दिन में यूपी में मंत्रिमंडल विस्तार (UP Cabinet Expansion) हो सकता है. इसमें रालोद के दो विधायकों, सुभासपा अध्यक्ष और एक भाजपा विधायक को जगह मिल सकती है. आइए जानते हैं वो छह सीटें कौन सी हैं और भाजपा वहां सहयोगियों पर भरोसा क्यों कर रही है?
जी हां, भाजपा ने पश्चिमी यूपी में असरदार राष्ट्रीय लोक दल को बिजनौर लोकसभा सीट देने का मन बना लिया है. बिजनौर से 2009 में रालोद को जीत मिली थी. 2014 की मोदी लहर में भाजपा ने अपना परचम लहराया. बाद में 2019 में बसपा के मलूक नागर जीत गए. पिछली बार सपा और बसपा के साथ आने से 22 फीसदी दलितों ने जीत में बड़ी भूमिका निभाई थी. हिंदू और मुस्लिम आबादी यहां लगभग बराबर है. जाटों का काफी प्रभाव है. मुस्लिम-दलित गठजोड़ से बसपा जीतती रही थी तो आरएलडी-सपा का गठबंधन मुस्लिम-जाटों को साधता था. ऐसे में भाजपा को उम्मीद है कि रालोद यहां सफल हो सकती है. इस इलाके में गन्ने की खेती खूब होती है.
गाजियाबाद और मेरठ का कुछ क्षेत्र भी इस लोकसभा सीट में शामिल है. अभी भाजपा के डॉ. सत्यपाल सिंह यहां से सांसद हैं. पिछले चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी उनसे हार गए थे. बागपत में जाट और गुर्जर वोटर ज्यादा हैं. SC वोटरों का भी अहम रोल होता है. भाजपा को उम्मीद है कि उसके अपने वोटर बेस के साथ-साथ आरएलडी जाट, यादव, गुर्जर, त्यागी और राजपूतों को भी साध सकेगी. यह सीट चौधरी परिवार का गढ़ मानी जाती रही है. इस बार चुनाव से पहले पूर्व पीएम चौधरी चौरण सिंह को 'भारत रत्न' देने की घोषणा से माहौल भाजपा के फेवर में है. साथ ही किसान आंदोलन वाली नाराजगी RLD को आगे करने से यहां बेअसर हो सकती है.
अपना दल (सोनेलाल) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल अभी मिर्जापुर से ही सांसद हैं. वह तीसरी बार यहां से चुनाव मैदान में उतर सकती हैं. वह मोदी सरकार में मंत्री भी हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने दो लाख वोटों से ज्यादा के अंतर से सपा कैंडिडेट को हराया था. अपना दल (एस) की नेता अनुप्रिया पटेल के सहारे भाजपा पूर्वांचल के पिछड़ा वोटों को साधती रही है. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल से ही अनुप्रिया की पार्टी भाजपा के साथ है.
दूसरी रॉबर्ट्सगंज सीट भी अपना दल (एस) के पास है. यहां से पिछली बार पकौड़ी लाल चुनाव जीते थे. पूर्वांचल का पटेल वोट अपना दल की ताकत रही है. इन दोनों सीटों पर जातीय समीकरण और अनुप्रिया पटेल की अपनी छवि पार्टी को जीत दिलाती रही है. यही सोचकर भाजपा ने समीकरण में कोई फेरबदल नहीं किया.
भाजपा की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को भाजपा घोसी लोकसभा सीट दे सकती है. ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के लिए यहां जातीय समीकरण पक्ष में है. यहां सबसे ज्यादा अनुसूचित वोटर 5 लाख, मुस्लिम साढ़े तीन लाख हैं. इसके बाद यादव, चौहान और राजभर ढाई-ढाई लाख हैं. वैश्य, मौर्य और ब्राह्मण 1-1 लाख के करीब हैं. निषाद और भूमिहार की भी अच्छी खासी संख्या है. पिछली बार यहां से बसपा के अतुल राय जीते थे. हालांकि वह जेल में ही रहे.
NDA में शामिल निषाद पार्टी का संत कबीरनगर और आसपास के क्षेत्र में अच्छा खासा प्रभाव है. वह निचले तबके के लोगों की राजनीति करती है. निषाद समुदाय में प्रमुख रूप से मछुआरे आते हैं. पीएम मोदी रैलियों में निषादराज की चर्चा करते रहे हैं. 'भोजन वाली थाली' इनका चुनाव चिन्ह है. पिछली बार प्रवीण निषाद भाजपा के सिंबल पर सांसद बने थे. पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद यूपी सरकार में मंत्री हैं. उनका दावा है कि यूपी की 37 लोकसभा सीटों पर निषाद वोटरों की तादद साढ़े तीन लाख से ज्यादा है. संत कबीरनगर सीट भाजपा उन्हें दे सकती है.
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