दुनिया का सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाला कशेरुकी जीव ग्रीनलैंड शार्क के बारे में अभी बहुत कम जानकारी है. ये मछली कनाडा से नॉर्वे तक और स्कॉटलैंड के तट से दूर ठंडे अटलांटिक महासागर में रहती है. डेनमार्क की कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को एक ऐसा ग्रीनलैंड शार्क मिला है जो इतना बूढ़ा है कि वो 1624 में पैदा हुआ था. ये वो साल था जब इंग्लैंड ने स्पेन पर युद्ध की घोषणा की थी और अपनी पहली कैरिबियाई कॉलोनी की स्थापना की थी.
ये विशाल मछली लंदन की आग, इंग्लैंड और अमेरिका के गृह युद्ध और पिछली सदी के दोनों विश्व युद्धों को भी देख चुकी है. ये ग्रीनलैंड शार्क 23 फीट तक लंबे हो सकते हैं और इन्हें ध्रुवीय भालू तक खाते हुए देखा गया है. ये ज्यादातर आर्कटिक के बर्फ के 600 मीटर नीचे रहते हैं, इसलिए इन्हें देखना बहुत मुश्किल होता है.
अब वैज्ञानिकों के नए शोध से पता चला है कि ग्रीनलैंड शार्क की इतनी लंबी उम्र का राज शायद उनकी मांसपेशियों में होने वाली क्रिया (मांसपेशी उपापचय) है. ये नई खोज दिल की सेहत को सुधारने और जलवायु परिवर्तन से जूझने में दूसरी प्रजातियों की मदद करने के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है. ग्रीनलैंड शार्क इतनी लंबी उम्र कैसे जी लेते हैं, ये वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्य है. इनके बारे में और जानने के लिए मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के एक शोध छात्र इवान कैम्पलिसन ने एक अध्ययन किया.
प्राग में हुए सोसायटी फॉर एक्सपेरिमेंटल बायोलॉजी के सालाना सम्मेलन में इवान ने अपने अध्ययन के नतीजे पेश किए. उनके शोध के मुताबिक, ग्रीनलैंड शार्क की उम्र बढ़ने के साथ उनके शरीर में होने वाली क्रियाओं (Metabolism) की रफ्तार कम नहीं होती. ये बात उन्हें दूसरी जीवों से अलग बनाती है. स्टडी में वैज्ञानिकों ने मरे हुए ग्रीनलैंड शार्क की मांसपेशियों के टुकड़ों का इस्तेमाल किया. इन टुकड़ों पर एंजाइम टेस्ट किए गए ताकि ये पता लगाया जा सके कि उनकी मांसपेशियों में कितनी तेजी से क्रिया हो रही है.
अध्ययन में पाया गया कि अलग-अलग उम्र के ग्रीनलैंड शार्क की मांसपेशियों में मेटाबॉलिज्म की रफ्तार में कोई खास अंतर नहीं है. इसका मतलब है कि इनकी उम्र बढ़ने के साथ उनके शरीर में होने वाली मेटाबॉलिज्म की रफ्तार कम नहीं होती है. शायद यही उनकी लंबी उम्र का राज है.
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