Science News: आर्कटिक में पर्माफ्रॉस्ट पिघलने से पानी में जहरीला मरकरी घुल रहा है. यह ऐसा टाइम बम है जो इस पानी भर निर्भर फूड चेन और समुदायों को खासा नुकसान पहुंचा सकता है. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अलास्का की युकोन नदी के पानी में रिसर्च के बाद यह चेतावनी दी है. पानी में घुल रहा पारा हजारों साल से पर्माफ्रॉस्ट में दबा हुआ था. USC डोर्नसाइफ कॉलेज ऑफ लेटर्स, आर्ट्स एंड साइंसेज में पृथ्वी विज्ञान और पर्यावरण अध्ययन के प्रोफेसर जोश वेस्ट ने कहा, 'आर्कटिक में एक विशाल मरकरी बम विस्फोट के लिए तैयार हो सकता है.'
यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया के रिसर्चर्स ने अलास्का की युकोन नदी में तलछट (sediment) के ट्रांसपोर्ट पर स्टडी की. उन्होंने पाया कि जैसे-जैसे नदी राज्य के पश्चिम की ओर बहती है, इसके किनारों पर पर्माफ्रॉस्ट का क्षरण हो रहा है. इस वजह से पानी में मरकरी (पारा) युक्त तलछट शामिल हो रही है.
रिसर्चर्स ने नदी के किनारों और रेत के टीलों के तलछट में पारे का एनालिसिस किया, साथ ही मिट्टी की गहरी परतों का भी. उन्होंने सैटेलाइट डेटा से यह देखा कि युकोन नदी कितनी तेजी से अपना रास्ता बदल रही है, जो नदी के किनारों से कटाव करके रेत के टीलों पर जमा होने वाले पारे से भरे तलछट की मात्रा को प्रभावित करता है. USC डॉर्नसिफ में डॉक्टरेट की उम्मीदवार और स्टडी की को-ऑथर इसाबेल स्मिथ ने कहा, 'नदी बहुत तेजी से पारा युक्त तलछट की बड़ी मात्रा को आगे बढ़ा सकती है.'
जहरीली धातुओं की मौजूदगी से आर्कटिक के पर्यावरण और यहां रहने वाले 50 लाख लोगों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है. हालांकि पीने के पानी के माध्यम से कंटामिनेशन का जोखिम कम है, लेकिन लंबे समय में विनाशकारी प्रभाव हो सकते हैं, खासकर आर्कटिक समुदायों के लिए जो शिकार और मछली पकड़ने पर निर्भर हैं.
समय के साथ-साथ इस धातु (पारा) के जमा होने का असर बढ़ने की उम्मीद है, खासकर मछलियों और मनुष्यों द्वारा खाए जाने वाले जानवरों के जरिए. स्मिथ ने कहा, 'दशकों तक संपर्क में रहने से, खासकर मरकरी के अधिक उत्सर्जन के साथ, पर्यावरण और इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है.'
आर्कटिक को अक्सर जलवायु परिवर्तन की फ्रंटलाइन कहा जाता है. अभी तक की रिसर्च बताती है कि उत्तरी ध्रुव के पिघलने का असर पूरे ग्रह पर होगा. यह क्षेत्र उम्मीद से कहीं ज्यादा गति से पिघल रहा है और उसकी वजह से दिन लंबे हो रहे हैं. हाल की रिसर्च यह भी संकेत देती है कि ग्रीनलैंड में बर्फ की चादर उतनी स्थिर नहीं है जितनी पहले सोची गई थी. इसके पिघलने से 40 करोड़ लोग बाढ़ के जोखिम में आ सकते हैं.
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