Shubh Muhurat: इस मुहूर्त में किया गया काम शत-प्रतिशत होता है सफल, कभी नहीं मिलती है असफलता
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Shubh Muhurat: इस मुहूर्त में किया गया काम शत-प्रतिशत होता है सफल, कभी नहीं मिलती है असफलता

Abhijeet Muhurat: अभिजीत मुहूर्त में किया गया काम शत-प्रतिशत सफलता प्रदान करता है. इसे चक्र सुदर्शन मुहूर्त भी कहते हैं. यह स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना जाता है. इस अवधि में शुरू किया गया कोई भी कार्य असफल नहीं रहता है.

अभिजीत मुहूर्त

Abhijeet Muhurat Importance: अभिजीत मुहूर्त में किया गया काम शत-प्रतिशत सफलता प्रदान करता है, इसलिए बहुत से लोग कोई शुभ कार्य करने के पहले इस मुहूर्त के आने का इंतजार करते हैं. प्रभु श्री राम का जीवन हम सबके सामने है, जिनका जन्म लाखों वर्ष पूर्व त्रेता युग में हुआ था. अभिजीत मुहूर्त में जन्म लेने वाले श्री राम को जीवन में कभी भी कोई असफलता नहीं मिली. तुलसी बाबा द्वारा लिखित रामचरितमानस के अनुसार “नौमी तिथि मधुमास पुनीता, सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता। मध्य दिवस अति सीत ना घामा, पावन काल लोक बिश्रामा।।” इस चौपाई से स्पष्ट हो जाता है कि उनका जन्म मधु मास अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष में नवमी तिथि को अभिजीत मुहूर्त में हुआ था. 

नारद पुराण के अनुसार इसे चक्र सुदर्शन मुहूर्त भी कहते हैं, जो दोपहर 11.36 बजे से 12.24 बजे तक रहता है. इसकी अवधि 48 मिनट रहती है. यह स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना जाता है. इस अवधि में शुरू किया गया कोई भी कार्य असफल नहीं रहता है. 

भगवान श्री राम की जन्म कुंडली का विश्लेषण करना किसी मानव के लिए तो संभव ही नहीं है, किंतु उनका जन्म रिक्ता तिथि में हुआ था. दरअसल चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी तिथि को रिक्ता तिथि कहते हैं और इन तिथियों में जन्म लेने वाले लोगों को जीवन में बहुत ही संघर्ष करना होता है, किंतु अंत में यश के भागीदार होते हैं. व्यवहारिक भाषा में कहा जाए तो इन तिथियों में जन्मे लोग दूसरों के लिए ही जन्म लेते हैं. 

श्री राम के जन्म के समय की एक और बात गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखी है. “जोग लगन ग्रह बार तिथि, सकल भए अनुकूल। चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल।।” उनके जन्म के समय सभी ग्रह, नक्षत्र अपनी अपनी उच्च और शुभ राशि में चले गए थे, जिससे तिथि तो शुभदायिनी हो गई किंतु गजकेशरी, शशक, रूचक, मालव्य, हंस जैसे महापुरुष योग होते हुए भी श्री राम को जीवन में कष्ट झेलने पड़े. पारलौकिक दृष्टि से वह परब्रह्म हैं, किसी भी तरह सुख और दुख से परे हैं, यह तो उनकी लौकिक जगत की लीला थी, जो मानव को संघर्षों से लड़ने और त्याग की भावना बनाए रखने का संबल देती है. 

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