Akshaya Tritiya: धर्म शास्त्रों के अनुसार, अक्षय तृतीया का दिन सौभाग्य और सम्पन्नता का सूचक होता है. दशहरा, धनतेरस, देवोत्थान एकादशी की तरह ही अक्षय तृतीया को अभिजीत, अबूझ या सर्वसिद्धि मुहूर्त भी कहा जाता है. कहा जाता है कि इस दिन किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है.
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Akshaya Tritiya Significance: वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया मनाई जाती है. महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र के रूप में जन्म लेने वाले भगवान परशुराम का जन्म भी इसी दिन होने के कारण इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन किए दान पुण्य, हवन, जप आदि सभी कर्मों का फल अनंत और अक्षय होता है, अर्थात जिसका कभी क्षरण न हो, जो कभी खत्म ही न हो और सदैव अक्षय बना रहे.
धर्म शास्त्रों के अनुसार, यह दिन सौभाग्य और सम्पन्नता का सूचक होता है. दशहरा, धनतेरस, देवोत्थान एकादशी की तरह ही अक्षय तृतीया को अभिजीत, अबूझ या सर्वसिद्धि मुहूर्त भी कहा जाता है. कहा जाता है कि इस दिन किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है, अर्थात किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए मुहूर्त निकालने की आवश्यकता नहीं रहती है. इस दिन किए गए कार्यों में शुभता प्राप्त होती है और भविष्य में उसके शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं.
यही कारण है कि स्थायी प्रकृति के कार्य इस दिन किए जाते हैं. जैसे विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, वस्त्र आभूषण की खरीददारी, जमीन या वाहन को खरीदना आदि. पुराणों के अनुसार, इस दिन पितरों का तर्पण, पिंडदान आदि किसी भी तरह का दान करने पर अक्षय फल प्राप्त होता है. इस दिन गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.
व्रत कथा
महाराजा युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि इस दिन स्नान, जप, तप, होम, स्वाध्याय, पितृ तर्पण तथा दान करने वाला व्यक्ति अक्षय पुण्य फल का भागी होता है. उन्होंने कथा सुनाते हुए कहा कि प्राचीन काल में धर्म के प्रति आस्था रखने वाला धर्मदास नाम का वैश्य था. बड़ा परिवार होने के कारण वह सबकी चिंता करता रहता था. एक बार उसने किसी से इस व्रत के बारे में सुना तो अगली बार अक्षय तृतीया आने पर उसने गंगा स्नान कर देवी देवताओं की पूजा अर्चना की. लड़्डू, पंखा, जल से भरे घड़े, जौ, गेहूं, नमक, सत्तू, दही, चावल, गुड़, सोना और वस्त्र आदि का दान दिया. अगले जन्म में यही वैश्य कुशावती राज्य का धनी और प्रतापी राजा हुआ, किंतु उसकी बुद्धि कभी भी धर्म से विचलित नहीं हुई.