Surya Mandir Mystery: देश का इकलौता मंदिर, जहां पश्चिम दिशा में खुलता है प्रवेश द्वार; सूर्य देव को स्वयं आकर देनी पड़ी थी परीक्षा
Advertisement
trendingNow12510529

Surya Mandir Mystery: देश का इकलौता मंदिर, जहां पश्चिम दिशा में खुलता है प्रवेश द्वार; सूर्य देव को स्वयं आकर देनी पड़ी थी परीक्षा

Aurangabad Surya Mandir Mystery: हमारे देश में सभी मंदिरों का प्रवेश द्वार पूर्व की ओर होता है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि एक मंदिर ऐसा भी है, जहां लोगों की एंट्री पश्चिम दिशा से होती है. आखिर इसके पीछे का रहस्य क्या है.

 

Surya Mandir Mystery: देश का इकलौता मंदिर, जहां पश्चिम दिशा में खुलता है प्रवेश द्वार; सूर्य देव को स्वयं आकर देनी पड़ी थी परीक्षा

Bihar Aurangabad Surya Mandir Mystery: सनातन दुनिया की इकलौती ऐसी परंपरा है. जहां प्रकृति को पूजने का प्रावधान है. सनातन में गंगा को मां का दर्जा दिया गया है तो वहीं सूर्यदेव की उपासना का भी विशेष महत्व है. भगवान भास्कर की महिमा से कौन वाकिफ नहीं है. ये बात पूरी दुनिया जानती है कि बिना भगवान सूर्य के धरती पर जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती है. भारत के अलग अलग हिस्सों में कई ऐसे मंदिर हैं, जहां भगवान भास्कर की आराधना की जाती है. आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के रहस्य के बारे में बताने जा रहे हैं. जहां कलियुग में भी सूर्य भगवान का साक्षात् चमत्कार देखने को मिलता है. दरअसल सनातन परंपरा में अधिकतर मंदिरों का प्रवेश द्वार पूर्व की तरफ है लेकिन औरंगाबाद के देवसूर्य मंदिर का द्वार पश्चिम की तरफ खुलता है. इसके पीछे की जो कहानी है, वो और भी रहस्यमयी है. क्यों पश्चिम की तरफ खुलता है इस मंदिर का द्वार. इस रिपोर्ट में जानिए. 

आस्था और प्रकृति का अनोखा संगम

भगवान सूर्य़ किसी के लिए ऊर्जा का स्त्रोत तो किसी के लिए आस्था और प्रकृति के उस रूप का संगम. जिससे पूरी दुनिया में जीवन का संचालन होता है. कहते हैं कि इस धरती पर बिना सूर्य के जीवन की कल्पना नहीं हो सकती. हिंदू धर्म में तो सूर्य की उपासना को लेकर कई मान्यताएं हैं. केवल विज्ञान ही नहीं बल्कि सनातन भी इस बात मानता है कि सूर्य के बिना धरती पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है. 

जितनी अनोखी है सूर्य की ताकत. उतना ही यह रहस्यमयी भी है. भारतवर्ष में कई ऐसे मंदिर हैं, जहां विशेषतौर पर भगवान भास्कर को पूजा जाता है...जिसमें से एक है, बिहार के औरंगाबाद का देवसूर्य मंदिर. इस मंदिर को लेकर भक्तों की आस्था अद्भुत है. यहां को लेकर सनातनियों में अटूट विश्वास है. कहते हैं कि मुगल शासक औरंगजेब पूरे हिंदुस्तान में मंदिरों को तोड़ते हुए बिहार के औरंगाबाद पहुंचा था. 

औरंगजेब मंदिर पर आक्रमण करने ही वाला था कि वहां के पुजारियों ने मंदिर ना तोड़ने के लिए अनुरोध किया. कहते हैं कि पहले तो औरंगजेब किसी भी कीमत पर राजी नहीं हुआ लेकिन बार-बार लोगों के अनुरोध को सुनकर उसने कहा- कि यदि सच में तुम्हारे भगवान हैं और इनमें कोई शक्ति है तो मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में हो जाए. यदि ऐसा हो गया तो मैं मदिर नहीं तोड़ूंगा. और ऐसा ही हुआ. रातों रात भगवान सूर्य के मंदिर की दिशा पूर्व से पश्चिम हो गई. ये कैसे हुआ, ये सब आज भी एक रहस्य बना हुआ है.

वह मंदिर, जहां सूर्य देव ने खुद दी परीक्षा

तब से लेकर आजतक मंदिर के दरवाजे का द्वार पश्चिम दिशा में है. आमतौर पर हिंदू धर्म में जितने भी मंदिर हैं...सभी के द्वार पूर्व की ओर खुलते हैं...लेकिन औरंगाबाद के देवसूर्य मंदिर का द्वार पश्चिम की तरफ खुलता है. इस मंदिर को लेकर जो लोगों की आस्था है...उसका एक बड़ा कारण इस मंदिर के द्वार की दिशा भी है. 

औरंगाबाद के देवसूर्य मंदिर के इस चमत्कार का जवाब विज्ञान के पास भी नहीं है....यहां आने वाले श्रद्धालु मानते हैं कि भगवान सूर्य ने यहां खुद आकर परीक्षा दी थी. वैसे तो सनातन धर्म में भगवान के लिए भक्त समर्पित होते हैं. लेकिन शायद ये पहला ऐसा मंदिर हैं...जहां के भक्तों के लिए भगवान सूर्य ने खुद अपने समर्पण की परीक्षा दी. 

एक तरफ इस मंदिर में भगवान सूर्य की उपासना की जाती है. वहीं औरंगाबाद के इसी मंदिर में देवों के तीनों रूप की पूजा होती है...कहते हैं कि श्राप की वजह से भारतवर्ष में ब्रह्मा को मंदिर में नहीं पूजा जाता है. लेकिन देवसूर्य मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों रूप की विशेष पूजा की जाती है.

डूबते सूर्य को अर्पित इकलौता मंदिर

भगवान भास्तक को समर्पित ये मंदिर प्रकृति के महत्व का संदेश देता है. ये इकलौता ऐसा मंदिर है जो डूबते सूर्य को समर्पित है. मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना त्रेतायुग में हुई. वैसे तो भारत के हर मंदिर की कोई ना कोई विशेषता है. लेकिन औरंगाबाद के देवसूर्य के मंदिर को लेकर लोग मानते हैं कि यहां ना सिर्फ दुखों से छुटकारा मिलता है. बल्कि गंभीर से गंभीर बीमारी से भी राहत मिलती है...साथ ही इस मंदिर की बनावट भी देखते ही बनती है. 

यहां की शिल्पकला भी दूर से दूर से लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करती है. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण खुद भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में किया था...दावा ये भी किया जाता है कि देव सूर्य मंदिर के तालाब से ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्तियां मिलीं थीं, जिन्हें मंदिर में स्थापित करवा दिया गया था, ये मूर्तियां आज भी मंदिर में मौजूद हैं.

पौराणिक कथाओं के मुताबिक सतयुग में इक्ष्वाकु के बेटे राजा ऐल जो कुष्ठ रोग से पीड़ित थे...एक दिन शिकार करने के दौरान उन्हें प्यास लगी तो राजा ऐल ने अपनी प्यास बुझाने के लिए देव के तालाब का जल पीकर उसमें स्नान कर लिया...मान्यता है कि स्नान के बाद उनका कुष्ठ रोग पूरी तरह से ठीक हो गया. राजा खुद भी इससे काफी हैरान हुए. उसी रात राजा को सपने में श्री सूर्य देव के दर्शन हुए कि वो उसी जगह मौजूद हैं जहां उनका कुष्ठ रोग ठीक हुआ है...इसके बाद राजा ने उसी जगह सूर्य मंदिर का निर्माण करवा दिया.

राजा भैववेंद्र ने करवाया जीर्णोद्धार

मंदिर में मौजूद भगवान सूर्य की प्रतिमा जीवंत बताई जाती है...यहां भगवान सूर्य सविता स्वरूप में हैं...देव सूर्यमंदिर की आठों दिशाओं में अलग-अलग स्वरूप में सूर्यमंदिर है...ये सूर्यक्षेत्र माना जाता है...बताया जाता है कि 16वीं शताब्दी में राजा भैववेंद्र ने इस सूर्यमंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. पत्थरों को तराश कर बनाया गया ये मंदिर अपनी अनूठी शिल्प कला के लिए जाना जाता है.

औरंगाबाद का देव सूर्य मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है. ये सूर्य को समर्पित 12 प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है. देव सूर्य मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां सदियों से भक्तों का तांता लगता है. सूर्यदेव भक्तों की मन मांगी मुरादें पूरी करते हैं...यहां मन्नत पूरी होने के बाद श्रद्धालु सूर्य देव को अर्घ्य देन आते हैं.

यहां साल भर देश के अलग-अलग हिस्सों से भक्त पहुंचते हैं...छठ महापर्व के दौरान यहां सबसे ज्यादा भक्तों की भीड़ होती है...इस मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में है. यहां भगवान सूर्य के 12 स्वरूप की पूजा होती है...भारत के कोने-कोने से लोग यहां आकर सूर्यदेव की आराधना करते हैं...कहा जाता है कि छठ में उपासना से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.

करीब सौ फुट ऊंचा मंदिर

ये देश का इकलौता ऐसा सूर्य मंदिर है. जिसका दरवाजा पश्चिम की ओर है...ये मंदिर करीब सौ फीट ऊंचा है. इसके साथ ही ये प्राचीन मंदिर वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है...धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इस अद्भुत मंदिर का निर्माण डेढ़ लाख साल पहले किया गया था..

Trending news