Chhinnamastika Devi: एक ऐसा मंदिर जहां बिना सिर वाली देवी मां की होती है पूजा, यहां भक्तों की हर मनोकामना होती है पूरी
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Chhinnamastika Devi: एक ऐसा मंदिर जहां बिना सिर वाली देवी मां की होती है पूजा, यहां भक्तों की हर मनोकामना होती है पूरी

आज बात माता के एक ऐसे मंदिर की जहां मां की एक ऐसी मूर्ति स्थापित है जिनका सिर कटा हुआ है और उनका कटा हुआ सिर उन्हीं के हाथ में है. क्या है माता के इस रूप के पीछे की पौराणिक कथा, यहां पढ़ें.

झारखंड का छिन्नमस्तिका मंदिर

नई दिल्ली: चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान शक्ति का स्वरूप देवी दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है (Nine forms of Goddess Durga). इनके बारे में तो हम सभी जानते हैं. लेकिन इन 9 रूपों के अलावा मां दुर्गा की 10 महाविद्याएं (10 Mahavidya) भी हैं जिन्हें सिद्धि देने वाली माना जाता है. गुप्त नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की इन 10 महाविद्याओं की ही पूजा की जाती है. इन्हीं में शामिल हैं मां छिन्नमस्ता (Maa Chhinnamasta). मां छिन्नमस्ता या छिन्नमस्तिका का विश्व प्रसिद्ध मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में है. इस मंदिर की खासियत है यहां की मूर्ति.

  1. झारखंड के रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका देवी का मंदिर
  2. दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ है ये मंदिर
  3. यहां मां के अद्भुत स्वरूप की होती है पूजा, जानें उसकी कथा

रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका का मंदिर

ऐसी मान्यता है कि असम के कामाख्या मंदिर (Kamakhaya Temple) को दुनिया की सबसे बड़ी शक्तिपीठ कहा जाता है और उसके बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका का मंदिर प्रसिद्ध है (Chhinnamastika Temple). इस मंदिर में स्थित की मां की मूर्ति की बात करें तो मां का कटा हुआ सिर उन्हीं के हाथों में है और उनकी गर्दन से रक्त की धारा प्रवाहित हो रही है जो दोनों और खड़ी दो सखियों के मुंह में जा रही है. मां का यह स्वरूप कुछ लोगों को देखने में भयभीत भी कर सकता है.  

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अद्भुत है माता का यह रूप

देवी मां के इस रूप को मनोकामना देवी के रूप में जाना जाता है और पुराणों में भी रजरप्पा के इस मंदिर (Rajrappa temple) का उल्लेख शक्तिपीठ के रूप में मिलता है. वैसे तो यहां साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है लेकिन चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र में यहां भक्तों की संख्या दोगुनी हो जाती है. ऐसी मान्यता है कि यह मंदिर 6 हजार साल से भी ज्यादा पुराना है. 

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क्या है माता के इस रूप की कथा

पौराणिक कथाओं की मानें तो एक बार देवी अपनी सखियों के साथ नदी में स्नान करने गईं. स्नान के बाद उनकी सखियों को तेज भूख और प्यास लगने लगी. उन्होंने देवी से कुछ खाने के लिए कहा. लेकिन इस बात पर देवी ने उन्हें इंतजार करने को कहा. भूख की वजह से उनकी सखियां बेहाल होने लगीं और उनका रंग काला पड़ने लगा. तब देवी ने अपने ही खड्ग से अपना सिर काट कर रक्त की तीन धाराएं निकालीं. उनमें से दो धाराओं से उन्होंने अपनी सखियों की प्यास बुझायी और तीसरी से अपनी. तभी से माता छिन्नमस्ता के नाम से मशहूर हैं. देवी दुष्टों के लिए संहारक और भक्तों के लिए दयालु हैं.

(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है.)

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