गुरुवार को मेहरबान होंगे भगवान श्री हरि, पूजा के बाद बस कर लें ये दो छोटे से काम; घर में होगा सुख-समृद्धि का वास
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गुरुवार को मेहरबान होंगे भगवान श्री हरि, पूजा के बाद बस कर लें ये दो छोटे से काम; घर में होगा सुख-समृद्धि का वास

Brihaspati Chalisa: ज्योतिष शास्त्र में सप्ताह के सातों दिन किसी न किसी देवी देवता को समर्पित हैं. गुरुवार का दिन भगवान विष्णु पूजा-उपासना का दिन है. इस दिन पूजा-पाठ करने से भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है. 

 

guruwar ke upay

Thursday Remedies: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गुरुवार का दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है. इस दिन देवगुरु बृहस्पति भगवान की विधिपूर्वक पूजा करने और कुछ ज्योतिष उपाय करने से श्री हरि की कृपा प्राप्त होती है. ऐसा माना जाता है कि इस दिम भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होने से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. साथ ही, कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत होता है. 

मान्यता है कि अगर कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत होता है, तो जातक को मनचाही नौकरी की प्राप्ति होती है. इतना ही नहीं गुरु के मजबूत होने पर व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सुखमय होता है.  साथ ही, सौभाग्य और संतान की प्राप्ति होती है. अविवाहित लोगों को शीघ्र शादी के योग बन जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र में महिलाओं को गुरुवार के व्रत रखने के सलाह दी जाती है. मान्यता है कि देवगुरु बृहस्पति की कृपा पाना चाहते हैं, तो गुरुवार के दिन पूजा के समय बृहस्पति चालीसा का पाठ और विष्णु जी की आरती जरूर करें.  

श्री बृहस्पति देव चालीसा

दोहा

प्रनवउँ प्रथम गुरु चरण, बुद्धि ज्ञान गुन खान।

श्री गणेश शारद सहित, बसों हृदय में आन॥

अज्ञानी मति मंद मैं, हैं गुरु स्वामी सुजान।

दोषों से मैं भरा हुआ हूँ तुम हो कृपा निधान॥

चौपाई

जय नारायण जय निखिलेशवर। विश्व प्रसिद्ध अखिल तंत्रेश्वर॥

यंत्र-मंत्र विज्ञान के ज्ञाता।भारत भू के प्रेम प्रेनता॥

जब जब होई धरम की हानि। सिद्धाश्रम ने पठए ज्ञानी॥

सच्चिदानंद गुरु के प्यारे। सिद्धाश्रम से आप पधारे॥

उच्चकोटि के ऋषि-मुनि स्वेच्छा। ओय करन धर्म की रक्षा॥

अबकी बार आपकी बारी। त्राहि त्राहि है धरा पुकारी॥

मरुन्धर प्रान्त खरंटिया ग्रामा। मुल्तान चंद पिता कर नामा॥

शेषशायी सपने में आये। माता को दर्शन दिखलाए॥

रुपादेवि मातु अति धार्मिक। जनम भयो शुभ इक्कीस तारीख॥

जन्म दिवस तिथि शुभ साधक की। पूजा करते आराधक की॥

जन्म वृतन्त सुनायए नवीना। मंत्र नारायण नाम करि दीना॥

नाम नारायण भव भय हारी। सिद्ध योगी मानव तन धारी॥

ऋषिवर ब्रह्म तत्व से ऊर्जित। आत्म स्वरूप गुरु गोरवान्वित॥

एक बार संग सखा भवन में। करि स्नान लगे चिन्तन में॥

चिन्तन करत समाधि लागी। सुध-बुध हीन भये अनुरागी॥

पूर्ण करि संसार की रीती। शंकर जैसे बने गृहस्थी॥

अदभुत संगम प्रभु माया का। अवलोकन है विधि छाया का॥

युग-युग से भव बंधन रीती। जंहा नारायण वाही भगवती॥

सांसारिक मन हुए अति ग्लानी। तब हिमगिरी गमन की ठानी॥

अठारह वर्ष हिमालय घूमे। सर्व सिद्धिया गुरु पग चूमें॥

त्याग अटल सिद्धाश्रम आसन। करम भूमि आए नारायण॥

धरा गगन ब्रह्मण में गूंजी। जय गुरुदेव साधना पूंजी॥

सर्व धर्महित शिविर पुरोधा। कर्मक्षेत्र के अतुलित योधा॥

ह्रदय विशाल शास्त्र भण्डारा। भारत का भौतिक उजियारा॥

एक सौ छप्पन ग्रन्थ रचयिता। सीधी साधक विश्व विजेता॥

प्रिय लेखक प्रिय गूढ़ प्रवक्ता। भूत-भविष्य के आप विधाता॥

आयुर्वेद ज्योतिष के सागर। षोडश कला युक्त परमेश्वर॥

रतन पारखी विघन हरंता। सन्यासी अनन्यतम संता॥

अदभुत चमत्कार दिखलाया। पारद का शिवलिंग बनाया॥

वेद पुराण शास्त्र सब गाते। पारेश्वर दुर्लभ कहलाते॥

पूजा कर नित ध्यान लगावे। वो नर सिद्धाश्रम में जावे॥

चारो वेद कंठ में धारे। पूजनीय जन-जन के प्यारे॥

चिन्तन करत मंत्र जब गाएं। विश्वामित्र वशिष्ठ बुलाएं॥

मंत्र नमो नारायण सांचा। ध्यानत भागत भूत-पिशाचा॥

प्रातः कल करहि निखिलायन। मन प्रसन्न नित तेजस्वी तन॥

निर्मल मन से जो भी ध्यावे। रिद्धि सिद्धि सुख-सम्पति पावे॥

पथ करही नित जो चालीसा। शांति प्रदान करहि योगिसा॥

अष्टोत्तर शत पाठ करत जो। सर्व सिद्धिया पावत जन सो॥

श्री गुरु चरण की धारा। सिद्धाश्रम साधक परिवारा॥

जय-जय-जय आनंद के स्वामी। बारम्बार नमामी नमामी॥

विष्णु आरती

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।

भक्त जनों के संकट क्षण में दूर करे॥

जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।

सुख-संपत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।

तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥

तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी।

पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥

तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।

मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।

अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥

तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।

तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥

जगदीश्वर जी की आरती जो कोई नर गावे।

कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)   

 

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