Dwijapriya Sankashti Chaturthi: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर मनचाहा फल देंगे गणपति, बस इस तरह करनी होगी पूजा
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Dwijapriya Sankashti Chaturthi: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर मनचाहा फल देंगे गणपति, बस इस तरह करनी होगी पूजा

Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2023: हिंदू धर्म में प्रथम पूज्य भगवान गणेश की महिमा निराली है. वो अपने भक्तों से प्रसन्न होकर उन्हें मनचाहा वरदान देने में देर नहीं लगाता हैं. आज द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी है. धर्माचार्यों के मुताबिक द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर विधि-विधान से गणेश जी की पूजा करने से जातक की हर मनोकामना पूरी होती है.

भगवान गणेश

Dwijapriya Sankashti Chaturthi muhurt puja vidhi: सनातन हिंदू धर्मशास्त्रों के हिसाब से फाल्गुन मास की शुरुआत हो चुकी है. इस अद्भुत महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी (Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2023) मनाई जाती है. मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा करने पर मनचाहा वरदान मिलता है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के 32 स्वरूपों में से छठे स्वरूप की पूजा की जाती है. 

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का मुहूर्त और महत्व

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी को भगवान गणेश की आराधना करने के लिए विशेष दिन माना गया है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी तिथि 9 फरवरी की सुबह 06 बजकर 23 मिनट पर से 10 फरवरी 2023 की सुबह 07 बजकर 58 मिनट तक रहेगी. फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से पुकारा जाता है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर गणपति पूजा से साधकों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. वहीं घर के नकारात्मक प्रभाव दूर होकर सुख-शांति आती है. मान्यता ये भी है कि आज की पूजा से खुश होकर गणेश जी घर में आ रहे सारे संकट और विपदाओं को पल भर में दूर कर देते हैं. 

पूजा विधि, व्रत और तैयारी

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी को स्नान करने के बाद पूजन के स्वच्छ कपड़े धारण करें. घर के पूजा स्थल की रुटीन साफ सफाई के बाद भगवान गणेश को उत्तर दिशा की तरह मुंह करके जल अर्पित करें. आज के सुभ दिन भगवान गणेश को जल अर्पित करने से पहले उसमें तिल डालें. दिनभर व्रत रखें. और शाम को पूरे विधि-विधान के साथ भगवान गणेश की पूजा करें. व्रत के दौरान भगवान गणेश के किसी मंत्र का जाप जरूर करें. जाप पूरा होने के बाद गणेश जी की आरती उतारें, उन्हें भोग में मोदक यानी उनका फेवरेट लड्डू जरूर अर्पित करें और रात में चांद देखकर अर्घ्य दें फिर लड्डू या तिल खाकर अपना व्रत खोलें.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक समय की बात है, एक शहर में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ रहता था. उसके संतान नहीं थी. एक दिन साहूकार की पत्नी पड़ोसन के घर गई, जहां वो संकष्टी चतुर्थी की पूजा कर रही थी. साहूकार की पत्नी ने कथा सुनने के बाद घर आकर अगली चतुर्थी पर पूरे विधि-विधान के साथ पूजन किया. उसके उपवास के भगवान गणेश प्रसन्न हुए और साहूकार दंपत्ति को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. बेटा बड़ा हुआ, तो साहूकार की पत्नी ने गणेश जी से कामना की, कि पुत्र की शादी तय हो जाए, तो वह व्रत रखेगी और प्रसाद चढ़ाएगी, मनवांक्षित फल होने के बाद वो प्रसाद चढ़ाना और व्रत करना भूल गई. जिससे भगवान ने नाराज़ होकर साहूकार के बेटे को शादी के दिन बंधक बनाकर पीपल के पेड़ से बांध दिया. कुछ समय के बाद पीपल के पेड़ के नजदीक से एक अविवाहित कन्या गुजर रही थी, उसने साहूकार के बेटे की आवाज सुनी और अपनी मां को ये बात बतायी. इसकी जानकारी साहूकार की पत्नी को लगी तो उसे अपनी भूल का अहसास हुआ. फिर साहूकारनी ने गणेशजी से क्षमा याचना करते हुए प्रसाद चढ़ाकर उपवास रखा और बेटे के वापस मिलने की प्रार्थना की. उसके पूजन से खुश होकर भगवान गणेश ने उसके बेटे को वापस लौटा दिया. फिर उन्होंने बड़े धूम-धाम से बेटे का विवाह किया. तभी से नगर के श्रद्धालु इस तिथि पर भगवान का व्रत करके उनकी उपासना करने लगे. कथा पूरी होने के बाद दोनों हाथ जोड़कर भगवान गणेश से क्षमा याचना करें कि भगवान पूजा स्वीकार करें और कोई त्रुटि रह गई हो तो हमें क्षमा करें और कृपा बनाए रखें.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

 

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