धर्म की रक्षा के लिए हंसते-हंसते गुरु तेगबहादुर ने दी थी कुर्बानी, उन्हीं की याद में मनाया जाता है शहीदी दिवस
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धर्म की रक्षा के लिए हंसते-हंसते गुरु तेगबहादुर ने दी थी कुर्बानी, उन्हीं की याद में मनाया जाता है शहीदी दिवस

हिन्दुस्तान और हिन्दू धर्म की रक्षा करते हुए शहीद हुए गुरु तेगबहादुरजी को प्रेम से कहा जाता है- 'हिन्द की चादर, गुरु तेगबहादुर.'

फाइल फोटो

नई दिल्ली : शनिवार को पूरे दुनिया के सिख समुदाय के लोग सिखों के नौंवे गुरु तेग बहादुर का शहीदी पर्व मना रहे हैं. गुरु तेगबहादुर जी का जन्म पंजाब के अमृतसर में हुआ था. उनके बचपन का नाम त्यागमल था. उनके पिता का नाम गुरु हरगोबिंद सिंह था. वे बाल्यावस्था से ही संत स्वरूप गहन विचारवान, उदार चित्त, बहादुर व निर्भीक स्वभाव के थे.

हिंदू धर्म की हिफाजत की
सिखों के नौवें गुरू गुरू तेग बहादुर भी ऐसे ही साहसी योद्धा थे, जिन्होंने न सिर्फ सिक्खी का परचम ऊंचा किया, बल्कि अपने सर्वोच्च बलिदान से हिंदू धर्म की भी हिफाजत की. उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद इस्लाम धर्म धारण नहीं किया और तमाम जुल्मों का पूरी दृढ़ता से सामना किया.

शहीदी स्थल पर बनाया गया गुरूद्वारा
गुरू तेग बहादुर के धैर्य और संयम से आग बबूला हुए औरंगजेब ने चांदनी चौक पर उनका शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया और वह 24 नवंबर 1675 का दिन था, जब गुरू तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया. उनके अनुयाइयों ने उनके शहीदी स्थल पर एक गुरूद्वारा बनाया, जिसे आज गुरूद्वारा शीश गंज साहब के तौर पर जाना जाता है.

हिन्दुस्तान और हिन्दू धर्म की रक्षा करते हुए शहीद हुए गुरु तेगबहादुरजी को प्रेम से कहा जाता है- 'हिन्द की चादर, गुरु तेगबहादुर.'

(इनपुटःभाषा)

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