Janmashtami 2020: इन मंत्रों से करें भगवान श्री कृष्ण की पूजा, पूरी होगी मनोकामना
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Janmashtami 2020: इन मंत्रों से करें भगवान श्री कृष्ण की पूजा, पूरी होगी मनोकामना

जन्माष्टमी के दिन उपवास, पूजन और नवमी के पारण से व्रत की पूर्ति होती है. व्रत रखने वाले भक्तों को उपवास के पहले दिन लघु भोजन करना चाहिए और रात में जितेन्द्रिय रहें.

भगवान श्री कृष्ण.

नई दिल्ली: भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को जन्माष्टमी (Janmashtami 2020) के तौर पर मनाया जाता है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि में हुआ था. इसीलिए भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र का संयोग हो तो वो और भी भाग्यशाली माना जाता है. जन्माष्टमी आज 11 अगस्त और 12 अगस्त दोनों दिन मनाई जाएगी. हालांकि 12 अगस्त 2020 को किए जाने वाले व्रत और संयोग की मान्यता अधिक है.

जन्माष्टमी पूजा का फल
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है. इस दिन भक्त व्रत और पूजा-पाठ करते हैं. ऐसी मान्यता है कि ये त्यौहार मनाकर हर मनोकामना पूरी की जा सकती है. कमजोर चंद्रमा वाले लोग इस दिन विशेष पूजा करके लाभ की प्राप्त कर सकते हैं. इस खास दिन श्रीकृष्ण की पूजा करने से दीर्घायु, सुख-समृद्धि और संतान की प्राप्ति भी हो सकती है. कहा जाता है कि इस दिन व्रत करने से कई व्रतों का फल मिल जाता है. श्री कृष्ण जन्माष्टमी को सभी व्रतों का राजा यानी कि ‘व्रतराज’ भी कहा जाता है. इस दिन बाल गोपाल को झूला झुलाने से भी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.

जन्माष्टमी पूजा विधि
जन्माष्टमी के दिन उपवास, पूजन और नवमी के पारण से व्रत की पूर्ति होती है. व्रत रखने वाले भक्तों को उपवास के पहले दिन लघु भोजन करना चाहिए. रात में जितेन्द्रिय रहें और उपवास के दिन सुबह स्नान आदि नित्य कर्म करके सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मा आदि को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर दिशा की ओर चेहरा करके बैठें. इसके बाद हाथ में जल, फल, कुश, फूल और गंध लेकर 'ममाखिलपापप्रशमनपूर्वकसर्वाभीष्टसिद्धये श्रीकृष्णजन्माष्टमीव्रतमहं करिष्ये' बोलते हुए संकल्प करें.

मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान करके देवकी जी के लिए 'सूतिका गृह' का स्थान नियत करें. उसे स्वच्छ और सुशोभित करके उसमें सूतिका के उपयोगी सारी सामग्री क्रम से रखें. सामर्थ्य हो तो भजन-कीर्तन का भी आयोजन करें. प्रसूति गृह के सुखद विभाग में सुंदर और सुकोमल बिछौने के लिए सुदृढ़ मंच पर अक्षतादि मंडल बनवा कर उस पर शुभ कलश स्थापित करें. उस पर ही सोना, चांदी, तांबा, पीतल, मणि, वृक्ष, मिट्टी की मूर्ति या चित्र रूप (फोटो) स्थापित करें. मूर्ति में श्री कृष्ण को स्तनपान करवाती हुई देवकी जी हों और लक्ष्मी जी उनके चरण स्पर्श करते हुए हों, ऐसा भाव प्रकट रहे तो सबसे अच्छा है.

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बाद में नीचे दिए गए मंत्र से देवकी मां को अर्घ्य दें:
प्रणमे देवजननीं त्वया जातस्तु वामन:। वसुदेवात् तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नम:।। सपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं मे गृहाणेमं नमोSस्तु ते।'

फिर श्री कृष्ण को इस मंत्र के साथ पुष्पांजलि अर्पित करें:
'धर्माय धर्मेश्वराय धर्मपतये धर्मसम्भवाय गोविन्दाय नमो नम:।'

पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद नवजात श्रीकृष्ण के जातकर्म, नालच्छेदन, षष्ठीपूजन और नामकरण आदि करके 'सोमाय सोमेश्वराय सोमपतये सोमसंभवाय सोमाय नमो नम:।' मंत्र से चंद्रमा का पूजन करें. फिर शंख में जल, फल, कुश, कुसुम और गंध डालकर दोनों घुटने जमीन टिकाएं और इस मंत्र से चंद्रमा को अर्घ्य दें.
'क्षीरोदार्णवसंभूत अत्रिनेत्रसमुद्भव। गृहाणार्घ्यं शशांकेमं रोहिण्या सहितो मम।।
ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषां पते। नमस्ते रोहिणीकान्त अर्घ्यं मे प्रतिगृह्यताम्।।'

चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद रात्रि के शेष भाग को स्त्रोत-पाठ आदि करते हुए व्यतीत करें. उसके बाद अगले दिन सुबह पुन: स्नान करके जिस तिथि या नक्षत्रादि के योग में व्रत किया हो, उसका अंत होने पर पारणा करें. यदि अभीष्ट तिथि या नक्षत्र के खत्म होने में देरी हो तो पानी पीकर पारणा की पूर्ति करें.

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