Kaal bhairav: काल भैरव सदा धर्मसाधकों, शांत तथा सामाजिक मर्यादाओं का पालन करने वाले प्राणियों की काल से रक्षा करते हैं. उनकी शरण में जाने से मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है. इस बार 5 दिसंबर को होगी भैरव अष्टमी. चलिए जानते हैं काल भैरव के जन्म की कथा.
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Kaal bhairav story in hindi: मार्गशीर्ष मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव जयंती मनाई जाती है. पुराणों के अनुसार भैरव भगवान शिव का ही एक रूप है, भैरव का वाहन कुत्ता है. भैरीव का अर्थ भयानक और पोषक दोनों ही होता है, इनसे काल भी डरा हुआ रहता है इसी कारण इन्हें काल भैरव भी कहा जाता है. अष्टमी होने के कारण कुछ क्षेत्रों में कालाष्टमी भी कहा जाता है. काल भैरव सदा धर्मसाधकों, शांत तथा सामाजिक मर्यादाओं का पालन करने वाले प्राणियों की काल से रक्षा करते हैं. उनकी शरण में जाने से मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है. इस बार 5 दिसंबर को होगी भैरव अष्टमी.
इस तरह किया जाता है पूजन
व्रतों में इस व्रत को उत्तम माना गया है. इस व्रत को करने से बड़ा फल प्राप्त होता है. इस दिन व्रत का संकल्प करने के बाद दिन में काल भैरव और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए. निकट के भैरव मंदिर और शिव मंदिर में शंख,घंटा, घड़ियाल आदि बजाते हुए भजन कीर्तन और जाप करना चाहिए. रविवार और मंगलवार के दिन अष्टमी होने पर महत्व बहुत अधिक हो जाता है. काल भैरव के वाहन कुत्ते को दूध, दही मिठाई आदि खिलाना चाहिए.
भैरव जयंती की कथा
एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में सृष्टि के परम तत्व का विवाद छिड़ गया दोनों अपने को परम तत्व कह रहे थे तो निर्णय का अधिकार महर्षियों को सौंपा गया. उन्होंने वेद शास्त्रों और आपसी विमर्श के बाद निर्णय दिया कि परम तत्व तो कोई अव्यक्त सत्ता है. दोनों में उसका अंश विद्यमान है. भगवान विष्णु ने तो इस बात को मान लिया किंतु ब्रह्मा जी इसके लिए तैयार नहीं हुए और अपने को सर्वोपरि घोषित करते हुए सृष्टि का नियंता कहने लगे.
यह एक तरह से परम तत्व की अवज्ञा और अपमान था. यह बात भगवान शंकर को भी नहीं स्वीकार हुई और उन्होंने तत्काल भैरव का रूप धारण कर ब्रह्मा जी के गर्व को चूर चूर कर दिया. उस दिन मार्गशीर्ष मास की कृष्ण अष्टमी थी. बस तभी से इस दिन भैरव जयंती मनाई जाने लगी.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)