किसी भी घर में जब कभी भी वास्तु पर विचार हो तो मुख्य रूप से तीन चीजों: द्वार, किचन और शयन कक्ष की दिशा पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए. ये तीन चीजें ही मनुष्य को सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं. घर के सही वास्तु से आपका आज और कल बेहतर बनता है.
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नई दिल्ली: भारतीय वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) में दिशाओं का बहुत महत्व है. मकान हो या दुकान या फिर कोई अन्य भवन, गलत दिशा में निर्माण होने पर चीजें बिगड़ने लगती हैं. जिस तरह जीवन में सही दिशा में कार्य करने से ही व्यक्ति के भाग्य का निर्माण होता है, उसी तरह वास्तु के अनुसार सही दिशा में निर्माण आपकी सुख-समृद्धि का कारक बनता है. ऐसे में किसी भी घर में जब कभी भी वास्तु पर विचार हो तो मुख्य रूप से तीन चीजों: द्वार, किचन और शयन कक्ष की दिशा पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए. ये तीन चीजें ही मनुष्य को सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं. आइए जानते हैं वास्तु के अनुसार इन तीन चीजों से जुड़ी मुख्य बातें.
द्वार
1. वास्तु के अनुसार हमें मुख्य द्वार यानी मेन गेट हमेशा पूर्व की दिशा में बनवाना चाहिए. मुख्य द्वार के लिए यह दिशा सबसे उत्तम इसलिए मानी गई है क्योंकि यह प्रगति की दिशा है और इसी दिशा में प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य निकलते हैं. पूर्व दिशा के स्वामी स्वयं इंद्र हैं, जो कि देवताओं के राजा हैं. ऐसे में इस दिशा से हमें काफी ऊर्जा प्राप्त होती है.
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2. यदि पूर्व दिशा में मुख्य द्वार न लगवा सकें तो उत्तर को दूसरी शुभ दिशा माना गया है. उत्तर दिशा में मुख्य द्वार का होना सुख, समृद्धि, संपन्नता और आरोग्यता लाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व स्वयं भगवान कुबेर करते हैं.
3. यदि पूर्व और उत्तर दिशा में मुख्य द्वार न संभव हो तो पश्चिम दिशा, जो कि वरुण की दिशा है, उसमें भी लगवाया जा सकता है. यह दिशा जीवनदायक कही गई है. वहीं दक्षिण दिशा, जो कि पितरों की दिशा मानी जाती है, उसमें द्वार नहीं बनवाना चाहिए. यदि बहुत जरूरी हो तो वास्तु चक्र के अनुसार दक्षिण दिशा से द्वार निकालना चाहिए.
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किचन
वास्तु के अनुसार किचन के लिए दक्षिण-पूर्व अर्थात आग्नेय कोण को सबसे उचित माना गया है. यदि इस दिशा में रसोई न हो तो चूल्हे को हमेशा किचन की इस दिशा में रखने का यत्न करना चाहिए. साथ ही चूल्हे में खाना बनाते वक्त खाना बनाने वाले का मुंह हमेशा पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए.
मास्टर बेडरूम
मुख्य शयन कक्ष की जब हम बात करते हैं तो यह हमेशा उन लोगों के लिए होता है, जिनकी आयु 50 साल से ज्यादा की हो चुकी है. ऐसे लोगों के लिए दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा, जिसे नैऋत्य कोण कहते हैं, सबसे उत्तम मानी गई है. वहीं 30 साल से ज्यादा और 50 साल से कम लोगों के लिए पश्चिम दिशा सबसे उपयुक्त मानी गई है. ध्यान रहे कि 30 से 50 साल के व्यक्ति को दक्षिण-पश्चिम दिशा, जिसे नैऋत्य कोण कहते हैं, वहां पर नहीं सोना चाहिए. इस दिशा में सोने से उसकी प्रगति बाधित हो सकती है.