घर बैठे कीजिए देवभूमि उत्तराखंड के देव धाम केदारनाथ के दिव्य दर्शन
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घर बैठे कीजिए देवभूमि उत्तराखंड के देव धाम केदारनाथ के दिव्य दर्शन

केदारनाथ को हिन्दुओं के पवित्रतम स्थानों यानी चार धामों में से एक माना जाता है. धार्मिक ग्रंथों में उल्लिखित बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे ऊंचा ज्योतिर्लिंग यहीं पर स्थित है. जानिए हिमालय के ऊंचे शिखरों के बीच बसे केदारनाथ का इतिहास.

उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ मंदिर

नई दिल्ली: केदारनाथ (Kedarnath) को हिन्दुओं के पवित्रतम स्थानों यानी चार धामों में से एक माना जाता है. धार्मिक ग्रंथों में उल्लिखित बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे ऊंचा ज्योतिर्लिंग (Jyotirling) यहीं पर स्थित है. जानिए हिमालय (Himalaya) के ऊंचे शिखरों के बीच बसे केदारनाथ (Kedarnath) का इतिहास.

  1. केदारनाथ को हिन्दुओं के पवित्रतम स्थानों यानी चार धामों में से एक माना जाता है
  2. स्कंद पुराण में केदारनाथ शिवलिंग को सबसे फलदायी बताया गया है
  3. केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है

शिव की महिमा अपरंपार
हिंदू धर्म के पुराणों के अनुसार, शिव धरती के कल्याण हेतु 12 जगहों पर प्रकट हुए थे, जिन्हें 12 ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है. भगवान शिव (Shiva) के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ है और हिंदू धर्म के पवित्र 4 धामों में भी केदारधाम शामिल है. केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड (Uttarakhand) के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. माना जाता है कि पृथ्वी के शिवलोक कहे जाने वाले केदारनाथ के जो दर्शन करता है, वो हमेशा के लिए शिव के हृदय में बस जाता है. पंच केदारों में केदारनाथ, रुद्रनाथ, कलपेश्वर, मध्येश्वर और टुंगनाथ शामिल हैं.

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स्कंद पुराण में विवरण
स्कंद पुराण (Skand Puran) में केदारनाथ शिवलिंग को सबसे फलदायी बताया गया है. यह वो पावन धाम है, जहां युगों-युगों से लोग कर्मफल से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति के लिए आ रहे हैं. स्कंद पुराण में भगवान शंकर माता पार्वती से कहते हैं, 'यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं स्वयं. मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया, तभी से यह स्थान मेरा चिर-परिचित आवास बना है. इसीलिए भूमि का यह खंड स्वर्ग के समान है.'

केदारनाथ में बसते हैं शिव
मान्यता है कि शिव के दर्शन अगर सपने में भी हों तो जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है. केदारनाथ धन्य हैं, जहां शिव को महसूस किया जा सकता है. कहा जाता है कि केदरानाथ के दर्शन साक्षात भगवान शिव के दर्शन करने जैसा है.

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पंच केदार की महिमा
केदारनाथ के साथ शिव के अंग जहां-जहां भी प्रकट हुए, उन्हें पंच केदार कहा गया. मान्यता है कि पंच केदार पर पांडवों ने पूजा की और वे पाप मुक्त हुए. पौराणिक कहानी ये है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव कौरवों की हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने भगवान शिव का आशीर्वाद लेना चाहा, लेकिन शिव कुरुक्षेत्र नरसंहार की वजह से पांडवों से रुष्ट थे. इसलिए वे काशी से गुप्त काशी और गुप्त काशी से केदार में जा बसे. पांडव उनका पीछा करते-करते केदार तक पहुंच गए. भगवान शंकर ने तब तक भैंसे का रूप धारण कर लिया था और वे दूसरे पशुओं में जा मिले. भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैलाए और उस रूप में भी भगवान शिव को पहचान लिया. भगवान शंकर पांडवों की भक्ति और दृढ़ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए थे. उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया था. उसी समय से भगवान शंकर भैंस की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंर्तध्यान हुए तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ था. अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है. शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए थे.

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कब खुलते हैं केदारनाथ के द्वार
दीपावली महापर्व के दूसरे दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं. केदारनाथ मंदिर को खोलने और बंद करने के लिए मुहूर्त निकाला जाता है. फिर छह महीने बाद बाद अक्षय तृतीया के दिन कपाट खुलते हैं. मंदिर में 6 माह तक दीपक जलता रहता है. पुरोहित ससम्मान कपाट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं. वहां शीतऋतु के दौरान ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान की पूजा होती है. 6 महीने बाद मई में केदारनाथ के कपाट फिर से खुलते हैं. महाशिवरात्रि के अवसर पर केदारनाथ मंदिर खोलने की तिथि घोषित की जाती है. 6 महीने तक मंदिर और उसके आस-पास कोई नहीं रहता है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इन 6 महीनों के दौरान दीपक निरंतर जलता रहता है. कपाट खुलने के बाद यह भी आश्चर्य का विषय है कि वहां वैसी ही साफ-सफाई मिलती है, जैसी 6 महीने पहले छोड़कर गए थे.

केदारनाथ में दर्शन का समय
केदारनाथ जी का मंदिर आम दर्शनार्थियों के लिए सुबह 6 बजे खुलता है. दोपहर तीन से पांच बजे तक वहां विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है. शाम 5 बजे मंदिर को दर्शन के लिए दोबारा खोला जाता है. भगवान शिव की पांच मुख वाली प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके 7:30 बजे से 8:30 बजे तक नियमित आरती होती है. रात 8:30 बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर बंद कर दिया जाता है.

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कितना भव्य है केदारनाथ मंदिर!
केदारनाथ मंदिर 6 फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है. मंदिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है. मंदिर के बाहरी प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं. केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने कराया, इसके बारे में कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है लेकिन कहा जाता है कि इस मंदिर को सबसे पहले पांडवों ने बनवाया था. हालांकि वक्त के थपेड़ों की मार के चलते यह मंदिर लुप्त हो गया था. बाद में 8वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने एक नए मंदिर का निर्माण कराया. केदारनाथ मंदिर 85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा है. इसकी दीवारें 12 फुट मोटी हैं और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई हैं. मंदिर को 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर खड़ा किया गया है. यह आश्चर्य ही है कि इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर-तराशकर कैसे मंदिर की शक्ल दी गई होगी. खासतौर पर यह विशालकाय छत खंभों पर कैसे रखी गई होगी! पत्थरों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. यह मजबूती और तकनीक ही मंदिर को नदी के बीच में खड़ा रखने में कामयाब हुई है.

केदारनाथ मंदिर के बारे में शिवपुराण में कहा गया है कि केदारनाथ में जो तीर्थयात्री आते हैं, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है और वे अपने सभी पापों से मुक्त भी हो जाते हैं.

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