Lord Krishna: भगवान श्री कृष्ण ने अपने ही भक्त अर्जुन से क्यों किया था घनघोर युद्ध, पढ़ें रोचक कहानी
Advertisement
trendingNow12111882

Lord Krishna: भगवान श्री कृष्ण ने अपने ही भक्त अर्जुन से क्यों किया था घनघोर युद्ध, पढ़ें रोचक कहानी

Lord Krishna and Lord Arjuna Battle: एक बार महर्षि गालव सुबह सूर्य को अर्घ्य देने के लिए अंजलि में जल लिए थे. तभी आकाश मार्ग में जाते हुए चित्रसेन गंधर्व का थूक गिरा जिससे मुनि क्रोधित हो गए और भगवान श्री कृष्ण से अपराधी को दंड देने का आग्रह किया. पढ़ें पूरी कहानी...

Lord Krishna: भगवान श्री कृष्ण ने अपने ही भक्त अर्जुन से क्यों किया था घनघोर युद्ध, पढ़ें रोचक कहानी

Lord Krishna: एक बार महर्षि गालव सुबह सूर्य को अर्घ्य देने के लिए अंजलि में जल लिए थे. तभी आकाश मार्ग में जाते हुए चित्रसेन गंधर्व का थूक गिरा जिससे मुनि क्रोधित हो गए और भगवान श्री कृष्ण से अपराधी को दंड देने का आग्रह किया. बस उन्होंने महर्षि और माता देवकी के चरणों की शपथ लेते हुए 24 घंटे में उसका वध करने की प्रतिज्ञा कर ली. 

 

नारद जी ने सुना पूरा प्रसंग
महर्षि वहां से चले तभी देवर्षि नारद वहां पहुंचे और श्री कृष्ण को देख बोले प्रभु आज आपके चेहरे पर चिंता दिख रही है. इस पर श्याम सुंदर ने गालव ऋषि के साथ हुए प्रसंग और अपनी प्रतिज्ञा सुनाई. नारद जी वहां से सीधे चित्रसेन के पास पहुंचे और बताया कि उसका अंत आ गया है क्योंकि  श्रीकृष्ण ने तुम्हें मार डालने की प्रतिज्ञा कर ली है. इतना सुनते ही गंधर्व घबरा कर सभी लोकों में शरण के लिए गया किंतु किसी ने भी सहारा नहीं दिया. इस पर गंधर्व नारद जी के पास पहुंचा और उन्हीं से इस संकट का समाधान पूछा. 

 

अर्जुन ने दी शरण
नारद जी उसे अपने साथ यमुना तट पर ले गए और एक स्थान दिखाकर कहा, "आज, आधी रात को महिला के आने पर जोर जोर से रोने लगना, जब तक वह तुम्हारे कष्ट निवारण की प्रतिज्ञा न करे, तुम उसे कारण न बताना. इसके बाद पहुंच गए अर्जुन के महल और सुभद्रा को बुला कर कहा, आज आधी रात को यमुना में नहाने तथा दीन की रक्षा करने से अक्षय पुण्य मिलता है. सुभद्रा स्नान करने पहुंचीं तो किसी के रोने की आवाज सुनाई पड़ी. बस उसके पास पहुंच कारण पूछा. बार बार पूछने के बाद भी न बताने पर सुभद्रा ने चित्रसेन के कष्ट निवारण की प्रतिज्ञा की तो उसने पूरी बात बताई. वह अपने साथ चित्रसेन को महल ले गयी और अर्जुन को पूरी बात बतायी.

चित्रसेन अर्जुन का मित्र भी था, इधर नारद मुनि फिर से श्री कृष्ण के पास पहुंचे और बताया कि अर्जुन ने चित्रसेन को शरण दी है इसलिए सोच समझ कर युद्ध करें. श्री कृष्ण बोले, आप एक बार अर्जुन को मेरी ओर से समझा दें. देवर्षि फिर से इंद्रप्रस्थ में अर्जुन के पास पहुंचे और समझाया. इस पर अर्जुन ने कहा कि मैं श्री कृष्ण की शरण में ही हूं फिर भी मैने चित्रसेन की रक्षा की प्रतिज्ञा कर ली है इसलिए उसे हर हाल में बचाऊंगा. 

 

हुआ घमासान युद्ध
इतना सुनते ही नारद जी ने श्री कृष्ण को पूरी बात बताई. युद्ध की तैयारी हो गयी और दोनों की सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ लेकिन कोई न जीत सका. अंत में श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र छोड़ा तो अर्जुन ने पाशुपतास्त्र छोड़ भगवान शंकर का स्मरण किया तो उन्होंने दोनों शस्त्रों को मनाया और भगवान श्रीकृष्ण से कहा, " प्रभो ! आप तो भक्तवत्सल हैं, भक्तों के आगे अपनी प्रतिज्ञा को भुलाना आपका सहज स्वभाव है, अब युद्ध की लीला को यहीं विराम दीजिए. प्रभु ने युद्ध से विरत हो अर्जुन को गले लगा कर चित्रसेन को अभय कर दिया. 

 

ऐसे हुआ युद्ध खत्म
यह सब देख महर्षि गालव को अच्छा नहीं लगा और बोल उठे, "लो मैं अपनी शक्ति से कृष्ण, अर्जुन, सुभद्रा समेत चित्रसेन को जला डालता हूं" उन्होंने अपने हाथ में जल लेने के लिए कमंडलु झुकाया तभी सुभद्रा ने मन ही मन कहा कि "यदि मैं सच्ची कृष्ण भक्त और अर्जुन के प्रति पतिव्रत्य हूं तो जल ऋषि के हाथ से पृथ्वी पर न गिरे" ऐसा ही हुआ जिससे महर्षि बहुत लज्जित हुए और प्रभु को नमस्कार कर अपने स्थान को लौट गए. अन्य लोग भी अपने-अपने स्थान को चल दिए. 

 

Trending news