विवाह के मुहूर्त विचार में गुरु और शुक्र, दो ग्रहों का आकाश मंडल में अच्छी स्थिति में होना आवश्यक होता है. देव गुरु ब्रहस्पति 10 दिसंबर की रात्रि 26 बजकर 14 मिनट अर्थात 11 दिसंबर की सुबह 2 बजकर 24 मिनट से परम नीचांश में आ जाएंगे. यानी इस समयावधि के दौरान विवाह वर्जित रहेंगे.
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नई दिल्लीः जो लोग ज्योतिष शास्त्र यानी ज्योतिषीय मुहूर्त का अनुसरण कर विवाह करने में विश्वास रखते हैं, उन्हे घोड़ी या डोली चढ़ने के लिए दिसंबर में सिर्फ 3 दिन ही मिलेंगे. अगर इसमें चूके तो फिर शादी के योग्य युवाओं को अगले साल 2021 की 16 फरवरी यानी वसंत पंचमी तक का लंबा इंतजार करना पड़ेगा. आपको बता दें कि ज्योतिषी पंचाग के मुताबिक दिसंबर में शादी के फेरों के लिए केवल 7, 9 और 10 तारीख को ही शुभ मुहूर्त हैं. दरअसल विवाह के मुहूर्त विचार में गुरु और शुक्र, दो ग्रहों का आकाश मंडल में अच्छी स्थिति में होना आवश्यक होता है. देव गुरु ब्रहस्पति 10 दिसंबर की रात्रि 26 बजकर 14 मिनट अर्थात 11 दिसंबर की सुबह 2 बजकर 24 मिनट से परम नीचांश में आ जाएंगे. यानी इस समयावधि के दौरान विवाह वर्जित रहेंगे.
अप्रैल के आखिरी हफ्ते से शुरू होंगे विवाह के शुभ मुहूर्त
2021 के मध्य तक, पौष मास रहेगा इसमें भी विवाह नहीं किए जाते. फिर 7 जनवरी से 3 फरवरी तक गुरु अस्त रहेगा. उसके बाद, 8 फरवरी से 18 अप्रैल तक शुक्र भी अस्त है. इस कारण माध, फाल्गुन और चैत्र मास विवाह एवं अन्य शुभ कार्यों के लिए त्याज्य रहेंगे. शुक्र ग्रह 18 अप्रैल को उदित तो हो जाएगा परंतु 21 अप्रैल तक बालयत्व दोष में रहेगा. शुद्ध विवाह मुहूर्त 24 अप्रैल से आरंभ होंगे.
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16 फरवरी को हो सकते हैं विवाह
हालांकि 16 फरवरी को विवाह संपन्न हो सकते हैं. 16 फरवरी को वसंत पंचमी आएगी जिसे अबूझ मुहूर्त कहते हैं. इस दिन विवाह किए जा सकते हैं. यदि आप को विवाह करना बहुत आवश्यक है तो किसी रविवार को अभिजीत मुहूर्त जो लगभग दिसंबर व जनवरी में दोपहर 11 बजकर 40 मिनट से लेकर 12 बजकर 24 मिनट तक रहेगा, इस बीच वैवहिक बंधन में बंध सकते हैं. इस अवधि में किया गया कोई भी आवश्यक कार्य सफल होता है. विशेषतः जब रविवार को किया जाए. इसी लिए हमारे कई समुदायों में रविवार को ठीक मध्यान्ह पर फेरे लेने की प्रथा चली आ रही है.
पौष माह में क्यों शुभ नहीं माने जाते विवाह
बता दें कि अधिकांश लोग पौष मास में विवाह करना शुभ नहीं मानते. ऐसा भी हो सकता है कि दिसंबर मध्य से लेकर जनवरी मध्य तक उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ती है. धुंध के कारण आवागमन भी बाधित रहता है और खुले आकाश के नीचे विवाह की कुछ रस्में निभाना, प्रतिकूल मौसम के कारण संभव नहीं होता. लिहाजा 16 दिसंबर की पौष संक्रांति से लेकर 14 जनवरी की मकर संक्राति तक विवाह न किए जाने के निर्णय को ज्योतिष से जोड़ दिया गया हो.
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रविवार को ही क्यों होते हैं सबसे अधिक विवाह
कुछ समुदायों में ऐसे मुहूर्तों को दरकिनार रख कर रविवार को मध्यान्ह में लावां फेरे या पाणिग्रहण संस्कार करा दिया जाता है. इसके पीछे भी ज्योतिषीय कारण पार्श्व में छिपा होता है. हमारे सौर्यमंडल में सूर्य सबसे बड़ा ग्रह है जो पूरी पृथ्वी को उर्जा प्रदान करता है. यह दिन और दिनों की अपेक्षा अधिक शुभ माना गया है. इसके अलावा हर दिन ठीक 12 बजे, अभिजित मुहूर्त चल रहा होता है. भगवान राम का जन्म भी इसी मुहूर्त काल में हुआ था. जैसे इस मुहूर्त के नाम से ही स्पष्ट है कि जिसे जीता न जा सके अर्थात ऐसे समय में हम जो कार्य आरंभ करते हैं, उसमें विजय प्राप्ति होती है, ऐसे में, पाणिग्रहण संस्कार में शुभता रहती है. अंग्रेज भी सन डे, रविवार को सैबथ डे यानी पवित्र दिन मान कर चर्च में शादियां करते हैं.
10 जून 1890 से शुरु हुआ था रविवार का अवकाश
कुछ लोगों को भ्रांति है कि रविवार को अवकाश होता है, इसलिए इस दिन विवाह रखे जाते हैं. हालांकि, ऐसा नहीं है. भारत में ही छावनियों और कई नगरों में रविवार की बजाए, सोमवार को छुट्टी होती है और कई स्थानों पर गुरु या शुक्रवार को. एक दिन आराम करने से लोगों में रचनात्मक उर्जा बढ़ती है. सबसे पहले भारत में रविवार की छुट्टी मुंबई में दी गई थी. केवल इतना ही नहीं रविवार की छुट्टी होने के पीछे एक और कारण है.
हर धर्म का अपना अपना दिन
सभी धर्मों में एक दिन भगवान के नाम का होता है. जैसे की हिंदूओं में सोमवार शिव भगवान का या मंगलवार हनुमान का. ऐसे ही मुस्लिमों में शुक्रवार यानि की जुम्मा होता है. मुस्लिम बहुल्य देशों में शुक्रवार की छुट्टी दी जाती है. इसी तरह ईसाई धर्म में रविवार को ईश्वर का दिन मानते हैं और अंग्रेजों ने भारत में भी उसी परंपरा को बरकरार रखा था. उनके जाने के बाद भी यही चलता रहा और रविवार का दिन छुट्टी का दिन ही बन गया. साल 1890 से पहले ऐसी व्यवस्था नहीं थी. साल 1890 में 10 जून वो दिन था जब रविवार को साप्ताहिक अवकाश के रूप में चुना गया.
ब्रिटिश शासन के दौरान मिल मजदूरों को हफ्ते में सातों दिन काम करना पड़ता था. यूनियन नेता नारायण मेघाजी लोखंडे ने पहले साप्ताहिक अवकाश का प्रस्ताव किया जिसे नामंजूर कर दिया गया. अंग्रेजी हुकूमत से 7 साल की सघन लड़ाई के बाद अंग्रेज रविवार को सभी के लिए साप्ताहिक अवकाश बनाने पर राजी हुए. इससे पहले सिर्फ सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी मिलती थी. दुनिया में इस दिन छुट्टी की शुरुआत इसलिए हुई क्योंकि ये ईसाइयों के लिए गिरिजाघर जाकर प्रार्थना करने का दिन होता है.
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