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Kumbh Shahi Snan Significance 2021: क्या है कुंभ का शाही स्नान? जानिए इसका महत्व और परंपरा

Shahi Snan in Kumbh Mela 2021 Haridwar: कुंभ का शाही स्नान (Kumbh Shahi Snan 2021) बेहद महत्वपूर्ण होता है. इस दौरान खास समय पर अखाड़े के साधु पवित्र नदी के जल में स्नान करते हैं. इनके बाद आम जनता भी डुबकी लगाती है. जानिए, आखिर क्या है कुंभ का शाही स्नान और इसका महत्व (Kumbh Shahi Snan Significance).

आस्था और विश्वास का सबसे बड़ा जमघट

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आस्था और विश्वास का सबसे बड़ा जमघट

कुंभ आस्था और अध्यात्म का विश्व का सबसे बड़ा जमावड़ा है. कुंभ का आयोजन चार में से किस स्थान पर होगा, यह नक्षत्र और राशियां निर्धारित करती हैं. इन चार स्थानों में हरिद्वार में गंगा तट, प्रयागराज में गंगा-यमुना-सरस्वती का संगम तट, नासिक में गोदावरी तट और उज्जैन में शिप्रा नदी का तट है.

यह भी पढ़ें- कुंभ वर्ष का हुआ आगाज, जानिए गंगा स्नान का महत्व और शाही स्नान की तिथियां

11 वर्ष पर ही लग रहा है कुंभ

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11 वर्ष पर ही लग रहा है कुंभ

इस वर्ष 11 मार्च 2021 में शिवरात्रि के अवसर पर कुंभ मेला (Haridwar Kumbh Mela 2021) का पहला शाही स्नान आयोजित किया जाएगा. जानिए क्या है कुंभ का शाही स्नान और इसका महत्व. 

शाही स्नान का महत्व

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शाही स्नान का महत्व

हिंदू धर्म में कुंभ स्नान (Kumbh Shahi Snan 2021) का विशेष धार्मिक महत्व बताया गया है. मान्यता है कि कुंभ स्नान (Kumbh Shahi Snan Significancel) करने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. हिंदू धर्म में पितृ का बहुत महत्व है. कहते हैं कि कुंभ स्नान से पितृ भी शांत होते हैं और अपना आशीर्वाद बनाए रखते हैं. 

कैसे होता है शाही स्नान

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कैसे होता है शाही स्नान

कुंभ का शाही स्नान (Kumbh Shahi Snan 2021) अपने नाम की तरह शाही अंदाज में होता है. इस दौरान साधु-संत अपने अद्भुत रूप में हाथी-घोड़ों की सोने-चांदी की पालकियों पर बैठकर स्नान करने के लिए पहुंचते हैं. इस शाही स्नान के खास मुहूर्त से पहले साधु तट पर इकट्ठा होते हैं और जोर-जोर से नारे लगाते हैं. 

साधुओं का अद्भुत शृंगार

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साधुओं का अद्भुत शृंगार

शाही स्नान (Kumbh Shahi Snan) के मुहूर्त के दिन कुंभ बेहद आकर्षक नजर आता है. इस दिन साधुओं का शृंगार सबसे अलग होता है. शाही स्नान के शुभ मुहूर्त (Kumbh Shahi Snan Date 2021) में करीब 13 अखाड़ों के साधु-संत डुबकी लगाते हैं और पवित्र नदी के तट पर आराधना करते हैं. 

इस बार शाही स्नान मां गंगा के पावन तट पर

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इस बार शाही स्नान मां गंगा के पावन तट पर

इस बार शाही स्नान हरिद्वार में मां गंगा के पावन तट पर होगा. सभी 13 अखाड़ों के साधु-संत मुहूर्त से पहले ही यहां एकत्रित हो जाते हैं. इनके शाही स्नान का क्रम भी पहले से निर्धारित होता है. इनसे पहले कोई भी स्नान के लिए नदी में नहीं उतर सकता है.

साधुओं के बाद डुबकी लगाती है आम जनता

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साधुओं के बाद डुबकी लगाती है आम जनता

ऐसी मान्यता है कि इस मुहूर्त में नदी के अंदर डुबकी (Kumbh Shahi Snan) लगाने से अमरता प्राप्त हो जाती है. साथ ही ये भी मानते हैं कि इस दिन यहां स्नान करने से सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं. गौरतलब है कि यह मुहूर्त सुबह करीब 4 बजे शुरू हो जाता है. इस मुहूर्त में सबसे पहले विभिन्न अखाड़े के साधुओं के स्नान के बाद आम जनता को स्नान करने का अवसर दिया जाता है.

शाही स्नान की परंपरा

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शाही स्नान की परंपरा

शाही स्नान की परंपरा (Kumbh Shahi Snan Ritual) सदियों पुरानी है. ऐसी मान्यता है कि शाही स्नान की परंपरा की शुरुआत 14वीं से 16वीं सदी के बीच हुई थी. उस समय देश में मुगलों का शासन था. उस समय के साधु उनसे उग्र होकर  संघर्ष करने लगे थे. ऐसे में शासकों ने साधुओं के साथ बैठक करके उनके काम और झंडे का बंटवारा किया. उस समय साधु को सम्मान देने के लिए उन्हें पहले स्नान का अवसर दिया जाने लगा था. इस स्नान के दौरान साधुओं का सम्मान राजशाही अंदाज में होता था और इसी वजह से इसे शाही स्नान कहा जाता है.

ईस्ट इंडिया ने तय किया था अखाड़ों का क्रम

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ईस्ट इंडिया ने तय किया था अखाड़ों का क्रम

शाही स्नान (Kumbh Shahi Snan) को लेकर अखाड़ों में संघर्ष होने लगा था. कई बार यह संघर्ष इतना बढ़ जाता था कि नदी का पानी खून से लाल हो जाता था. ये घटनाएं ज्यादातर 13वीं से 18वीं शताब्दी के बीच घटी थीं. इसके बाद भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) का आगमन हुआ था और तभी अखाड़ों का क्रम तय किया गया और आज भी उसी क्रम में शाही स्नान किया जाता है.

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