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Premanand Ji Maharaj On Spirituality: प्रेमानंद जी महाराज ने हाल ही में अपने एक सत्संग के दौरान इस बात पर चर्चा की कि कैसे अध्यात्म को पैसे से नहीं बल्कि कर्म से कमाया जा सकता है. दरअसल इसी सत्संग में एक व्यक्ति ने जब सवाल किया कि जो लोग सोचते हैं कि संतों को कुछ दे देने से अपने दुख मिट जाते हैं, तो क्या ऐसा सही में हो सकता है या ये सिर्फ लोगों के मन का वहम है. प्रेमानंद जी महाराज ने इस प्रश्न का बहुत ही सुंदर जवाब दिया.
साधु महात्मा को देने से नहीं मिटते कोई दुख
प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि कोई साधु महात्मा सिद्ध मिल जाए जो हमारे सारे दुख को मिटा दें, ऐसा कभी नहीं हो सकता है. ये पक्की बात समझ लीजिए इस बात को अपने दिमाग में बैठा लीजिए या फिर कहीं जाकर परीक्षा ले लीजिए.
व्यक्ति का कर्म ही लौटकर देता है फल
प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि हां, ऐसा जरूर हो सकता है कि जैसे आप हमारे पास आए हों और आपने हमसे यह कामना की कि हमारा यह काम बन जाए और आ जो ही यहां से निकले और आपका काम बन गया. यहीं से समझ जाए कि आपका पुण्य यहीं से लागू हो गया है. अब आपका काम बन गया हो यह सोचने लगे कि यह तो बड़ा ही चमत्कारी संत है. हम वहां जो सोच कर गए वहां वही हो गया. बिलकुल यह सच बात है कि इसमें केवल और केवल आपका कर्म है. यहां आपका पुण्य कर्म काम कर रहा है.
गलत होने पर भी आप ही का कर्म लौट कर है मिल रहा
उन्होंने यह भी कहा कि दूसरी तरफ व्यक्ति कहता है कि जिस दिन से संत से मिल कर लौटे हैं तो हमारा घाटा ही घाटा शुरू हो गया है. वह संत से नहीं बल्कि वह आपके पाप कर्म का फल है. इसलिए जो लोग कहते हैं कि संत से मिलने के बाद हमारा पक्का काम बन गया तो ऐसे में क्या आपने अपनी मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है. या फिर काम या क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली है. तो फिर आपका कौन सा काम बन गया!
काम तब बनेगा जब सही राह पर चलेंगे
प्रेमानंद जी ने बताया कि काम तो संतों से तब बनता है, जो उपदेश के अनुसार चलें. जो विकारों पर विजय प्राप्त कर के सचिनांद पर विजय प्राप्त करें. अब भाई अध्यात्म बहुत कम ही लोग सुनते हैं, कम ही लोग उस पर चलने वाले होते हैं.
अध्यात्म पैसे से नहीं बिकता बल्कि कमाया जाता है
प्रेमानंद जी ने यह भी कहा कि हमारी बात कड़वी लगेगी ही पर ये कड़वी दवा ही खाले तो पक्का स्वस्थ्य हो जाओगे. अच्छा ये फ्री मिलती है इसलिए भी स्वस्थ्य नहीं होते हैं लोग. फ्री में मिलता है सुना तो ठीक है वरना उठ कर चल दिए. आज भी समाज अर्थ प्रदान बुद्धि वाला है. इसलिए वास्तविक बात ना सुनने को मिलेगी और ना समझोगे. अगर समझ जाओगे कि अध्यात्म को कभी भी पैसे से नहीं खरीदा जा सकता और अध्यात्म कभी भी पैसे से बिकता भी नहीं है. यदि बिकता भी है तो वह अध्यात्म नहीं है. अगर अध्यात्म पर कोई फीस है तो वह पक्का अध्यात्म नहीं है. अध्यात्म को कभी भी पैसे से जानने की कोशिश ना करें यह मुनासिब ही नहीं है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)