Pran Pratishtha: क्यों जरूरी होती हैं प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा? घर में इसलिए नहीं रखी जाती प्रस्तर मूर्ति
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Pran Pratishtha: क्यों जरूरी होती हैं प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा? घर में इसलिए नहीं रखी जाती प्रस्तर मूर्ति

Pran Pratishtha: अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का इंतजार हर कोई बहुत ही बेसब्री से कर रहा है. ऐसे में हर किसी के मन में ये प्रश्न जरूर आ रहा होगा कि आखिर प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा क्यों जरूरी है. जानें. 

 

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Pran Pratishtha Significance: आयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का दिन बस समझो आ ही गया. ऐसे में देश के साथ दुनियाभर के लोगों में इसका उत्साह देखने को मिल रहा है. 22 जनवरी 2024 सोमवार को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन किया जाएगा. इसकी शुरुआत 15 जनवरी से ही अनुष्ठान शुरू हो चुके हैं. वहीं, इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेद कई जानी-मानी हस्तियां शामिल होने वाली हैं. राम मंदिर में की जाने वाली प्राण प्रतिष्ठा को लेकर लोगों के मन में सवान जरूर आ रहा होगा कि आखिर प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जाती है और  इसका क्या महत्व है. 

धार्मिक अनुष्ठान है प्राण प्रतिष्ठा

हिंदू धर्म शास्त्रों में प्राण प्रतिष्ठा को धार्मिक अनुष्ठान बताया गया है. मान्यता है कि जब भी किसी मंदिर का निर्माण होता है, और वहां पर देवी-देवताओं की मूर्तियों की स्थापना की जाती है तो पहले उनमें प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. बता दें कि प्राण का अर्थ होती है जीवन. इसलिए प्राण प्रतिष्ठा का मतलब हुआ प्रतिमा में देव-देवताओं के आने का आह्वान करना. ताकि वे पूजनीय योग्य बन सके. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार प्राण प्रतिष्ठा के पहले तक प्रतिमाओं को पूजा नहीं जा सकता. वे इस योग्य नहीं मानी जाती. प्राण प्रतिष्ठा से पहले तक प्रतिमा निर्जीव रहती हैं. विधिविधान से प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है, उसके बाद ऐसा माना जाता है कि उनमें देवी-देवताओं का वास है और वे पूजनीय बन जाती हैं.  

जानें प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया

बता दें कि प्राण प्रतिष्ठा के लिए प्रतिमाओं को पहले सम्मान के साथ मंदिर लाया जाता है. जहां प्रतिमा की स्थापना होनी है, वहां द्वार पर प्रतिमा का स्वागत किया जाता है. इसके बाद प्रतिमा पर सुगंधित चीजों का लेप लगाया जाता है. उन्हें दूध से नहलाया जाता है. इसके बाद प्रतिमा को मंदिर के गर्भ गृह के अंदर रखा जाता है और प्राण प्रतिष्ठा की विशेष रूप से पूजन प्रक्रिया शुरू की जाती है. 

बता दें कि प्रतिमा का मुख पूर्व दिशा की ओर रखा जाता है. इसके बाद देवता को आमंत्रित करने की प्रक्रिया शुरू होती हैं और मंत्रपाठ किया जाता है. इस दौरान सबसे पहले प्रतिमा की आंखों से पर्दा हटाया जाता है. इसके बाद प्रक्रिया पूरी होने के बाद फिर मंदिर में उन देवता की पूजा अर्चना होती है.   

घर में क्यों नहीं रखते पत्थर की प्रतिमा

धार्मिक विद्वानों का मत है कि घर में पत्थर की प्रतिमा विराजित नहीं करनी चाहिए. कहते हैं कि इन प्रतिमाओं को रखने पर रोज उसकी उचित प्रकार से पूजा और अनुष्ठान किए जाना जरूरी होता है. ऐसे में विधि-विधान से प्राण प्रतिष्ठा के साथ देवी-देवताओं की उचित पूजा पाठ न किए जाने पर ये आसपास रहने वालों को भारी हानि पहुंचा सकता है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)  

 

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