Ramkatha: काकभुशुण्डि ने कौवे के रूप में ही बिताया था सारा जीवन, रामकथा में जानें पूरी कहानी
Advertisement
trendingNow11722867

Ramkatha: काकभुशुण्डि ने कौवे के रूप में ही बिताया था सारा जीवन, रामकथा में जानें पूरी कहानी

Kakbhushundi Story: रामकथा में कौवे के पुनर्जन्म की कहानी के बारे में बताया गया है. रामचरितमानस के पात्रों में से एक पात्र काकभुशुण्डि भी शामिल है. आइए जानते हैं काकभुशुण्डि के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें.

 

फाइल फोटो

Ramayan: धार्मिक शास्त्रों में काकभुशुण्डि पात्र के बारे में बताया गया है. काकभुशुण्डि रामचरितमानस का एक पात्र है. तुलसीदास जी रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में बताया है कि काकभुशुण्डि रामभक्त थे. शास्त्रों में बताया गया है कि काकभुशुण्डि जी का प्रथम जन्म शुद्र के रूप में अयोध्या पुरी में हुआ था. सबसे पहले श्री राम की कथा भगवान शंकर ने मां पार्वती को कथा सुनाई थी. इस कथा को एक कौवे ने सुन लिया था.

शास्त्रों के अनुसार काकभुशुण्डि को पहले जन्म में भगवान शंकर द्वारा सुना कथा पूरी याद थी. उन्होंने ये कथा अपने शिष्य को सुनाई थी और इसी तरह राम कथा का प्रचार प्रसार हुआ था. भगवान शंकर के मुख से निकली श्री राम की ये कथा को अध्यात्म रामायण के नाम से जाना जाता है.

कैसे काकभुशुण्डि शाप से बने थे कौवा

लोमश ऋषि के शाप से काकभुशुण्डि कौवा बन गए थे. शाप के बाद लोमश ऋषि को पश्चाप हुआ और उन्होंने कौवे को शाप से मुक्त करने के लिए राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया. काकभुशुण्डि ने कौवे के रूप में ही अपना सारा जीवन व्यतीत कर दिया. वाल्मिकी से पहले ही काकभुशुण्डि ने सारी कहानी गरुड़ को सुना दी थी.

जानें कौन थे लोमश ऋषि

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार लोमश ऋषि परम तपस्वी थे और बहुत बड़े विद्वान थे. पुराणों में इन्हें अमर माना गया है. महाभारत के अनुसार लोमश ऋषि पाण्डवों के साथ तीर्थयात्रा पर गए थे और सब तीर्थों का वृत्तान्त बताया है. मान्यता है कि लोमश ऋषि ने भगवान शिव से वरदान पाया था कि एक कल्प के बाद मेरा एक रोम गिरे. और जब मेरे शरीर के सारे रोम गिर जाएं तब मेरी मृत्यु हो जाए.

वैदिक साहित्य के बाद जिन कथाओं के बारे में बताया गया, उनमें वाल्मीकी रामायण सर्वोपरि है. बता दें कि वाल्मीकी श्री राम के समकालीन थे. साथ ही वाल्मिकी ने रामायण तब लिखी, जब रावण वध के बाद राम का राज्याभिषेक हुआ था. वाल्मीकी को ये कथा लिखने की प्रेरणा यूं मिली. एक दिन वे वन में ऋषि भारद्वाज के साथ घूम रहे थे. इस दौरान उन्होंने व्याघ को क्रौंच पक्षी को मारे जाने की घटना देखी. तभी उनके मन से एक श्लोक फूट पड़ा.

ऐसा माना जाता है कि वाल्मीकिजी ने राम जी से जुड़ी घटनाओं को अपने जीवनकाल में खुद देखा और सुना था इसलिए रामायण सत्य के काफी निकट है.

vinay patrika tulsidas: इन पदों की स्तुति से प्रसन्न होते हैं बजरंग बली, हर कष्ट होने लगते हैं छूमंतर

Vastu Tips for Broom: झाड़ू के साथ भूलकर भी न करें ये गलतियां, मां लक्ष्मी हो जाएंगी नाराज; छा जाएगी कंगाली
 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

 

Trending news