Stambheshwar Temple Mystery: दिन में 2 वक्त जहां शिव के पांव पखारता है सागर! सूर्य देते किरणों की आहुति, क्या आपने देखा है ये अनोखा मंदिर
Advertisement
trendingNow12525034

Stambheshwar Temple Mystery: दिन में 2 वक्त जहां शिव के पांव पखारता है सागर! सूर्य देते किरणों की आहुति, क्या आपने देखा है ये अनोखा मंदिर

Stambheshwar Temple Mystery Gujarat: आपने मंदिर तो बहुत देखे होंगे लेकिन क्या आप एक ऐसे मंदिर के बारे में जानते हैं, जहां विराजमान भगवान के चरण स्वयं सागर पखारते हैं.

Stambheshwar Temple Mystery: दिन में 2 वक्त जहां शिव के पांव पखारता है सागर! सूर्य देते किरणों की आहुति, क्या आपने देखा है ये अनोखा मंदिर

Stambheshwar Temple Mystery in Hindi: भगवान शिव के बारे में कहा जाता है, वो लीलाएं नहीं रचते बल्कि संहार के देवता के रूप में वो लीलाओं का अंत करते हैं. समस्या अगर कोई सामने आए तो उसका समाधान करते हैं. जैसे समुद्र मंथन की कथा में मिलता है. समुद्र मंथन में जब विष का घड़ा बाहर निकला, तो त्राहि मच गई. अगर ये घड़ा धरती पर गिर पड़ा तो पूरी प्रकृति जल जाएगी. तब महादेव ने उस विष को अपने गले में धारण किया. उस विष के असर से उनका गला नीला पड़ गया तो वो नीलकंठ कहलाए. आज की स्पेशल रिपोर्ट में महादेव का एक ऐसे ही रूप के बारे में है, जिसकी चरण वंदना समुद्र भी सुबह शाम करता है. आखिर क्या है समुद्र के बीच महादेव के मंदिर का रहस्य. 

समुद्र रोजाना पखारता है शिव के पांव

समुद्र के बीचों बीच महादेव का ये मंदिर, वैसे तो देखने में ही रोमांचक लगता है. मंदिर के अंदर श्रद्धालुओं का तांता, मंदिर के अंदर शिवलिंग की पूजा और पारंपरिक अराधना. मंदिर के अंदर ये सबकुछ किसी आम शिव मंदिर की तरह होता है. लेकिन इस शिव मंदिर की एक अराधना और भी होती है, जो सुबह शाम खुद समुद्र करता है. 

सुबह और शाम, मंदिर के पास समुद्र की लहरें जब तूफानी होती हैं, तो दृश्य में एक गजब रहस्यलीला दिखती है. जैसे महादेव के अभिषेक के लिए उठती हैं समुद्री लहरें. हर सुबह और शाम लहरों से. भगवान शिव का जलाभिषेक होता है. लहरों के बीच बचता है बस शिखर और अदृश्य हो जाता है शिवलिंग. हजार बरसों से शिव के दिखने और ‘गायब’ होने की यह लीला अब भी जारी है. 

6 घंटे के लिए अदृश्य हो जाते हैं भोले

जैसा कि आपने महंत विद्यानंद जी से सुना, इस मंदिर में एक बार में 6 घंटे के लिए अदृश्य हो जाते हैं भगवान शिव. ये दृश्य यहां हर सुबह बनता है और फिर शाम में भी दोबारा, जब समुद्र में बड़ा ज्वार आता है. 

यानी इस तरह से एक दिन में जहां शिव हर दिन 12 घंटे की जलसमाधि लेते हैं. जब तक प्रकट नहीं होते शिव, तब तक श्रद्धालु हाथ जोड़े खड़े रहते हैं. भगवान शिव की ये समुद्रलीला देखने के लिए हजारों श्रद्धालु हर हर दिन गुजरात के कवि कंबोई गांव में आते हैं. ये गांव भरूच जिले में पड़ता है. 

कहां बना है ये अनोखा मंदिर?

जिला मुख्यालय से करीब 85 किलोमीटर दूर है जंबूसर का ये समुद्रतट जहां बना है भगवान शिव का अनूठा मंदिर-  स्तंभेश्वर महादेव. जी मीडिया की टीम इसी महादेव मंदिर और समुद्र के साथ इसका रहस्यमयी समीकरण समझन के लिए कवि कंबोई गांव पहुंची. यहां पहुंचने के बाद दूर से ही जो नजारा दिखा, वो अपने आप में एक दिव्य रोमांच पैदा करता है. 

तट से करीब 1 किलोमीटर समुद्र के अंदर बना शिव मंदिर, जहां पहुंचने के लिए बना है एक प्लेटफॉर्म, लेकिन मंदिर की असली रहस्य छिपा है, इसके गर्भगृह में जहां शिवलिंग के दर्शन दिन में सिर्फ दो बार ही होते हैं.

स्तंभेश्वर मंदिर की क्या है कथा?

महादेव मंदिर को स्तंभेश्वर इसलिए नाम दिया गया, क्योंकि समुद्र के बीच ये 4 स्तंभों के ऊपर बनाया हुआ है. ये बनावट दूर से ही दिखती है. लेकिन मंदिर को लेकर बड़ा रहस्य ये है कि इसे समुद्र के बीचों बीच बनवाया किसने और इसका मकसद क्या था. इसे लेकर कई कथाएं हमारे पुराणों में मिलती है, इसमें से एक है स्कंदपुराण, जिसमें महादेव के इस मंदिर का जिक्र मिलता है. हमारी स्पेशल रिपोर्ट के इस हिस्से में पढ़िए, स्तंभेश्वर महादेव मंदिर की पौराणिक व्याख्या.

भगवान विष्णु का साम्राज्य कहे जाने वाले समुद्र में महादेव का ऐसा प्रताप अपने आप में अतुलनीय है. हजारों साल से ऐसा चमत्कार, जिसके आगे समुद्र शीश नवाता है और सूर्य अपनी किरणों की आहुति देता है. स्तंभेश्वर महादेव मंदिर के पास समुद्र और सूर्य की लीला का ये रेयर वीडियो है. लहरे आती हैं, इनके बीच शिवलिंग अदृश्य होता है और फिर 6 घंटे में 27 फीट तक ऊपर चढा पानी अपने आप समुद्र में वापस चला जाता है.

आज तक नहीं पहुंची शिवलिंग को क्षति

इस अद्भुत दृश्य के साथ ये रहस्य भी कम नहीं कि समुद्र के बीच मंदिर हजारों सालों के होने के बावजूद ना तो इसके गर्भगृह को छति पहुंची है और ना ही शिवलिंग को. इस शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि ये हजारों साल पुराना है. यह शिवलिंग समुद्र में वहीं मिला, जहां स्तंभेश्वर मंदिर बना है. 

आपको ये पूरा विवरण स्तंभेश्वर मंदिर के अहाते में मिल जाएगा. यहां लगी पुरणों की पट्टिकाएं और मंदिर का इतिहास इसे महाभारत काल से भी पहले के दौर का बताती हैं. ये सब देखने के बाद जेहन में सवाल सहज ही आता है कि वडोदरा के समुद्री तट पर ये शिवलिंग स्थापित किसने किया. 

क्या पांडवों ने की स्तंभेश्वर महादेव की स्थापना?

तो इसकी एक कहानी महाभारत काल की सामने आती है. ये पांडवों के अज्ञातवास का दौर था. जिस इलाके में अपना भेष बदलकर जाते पांडव, वहां शिव की अराधना करना नहीं भूलते. मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव जब कवि कंबोई गांव पहुंचे, तो शिव की अराधना यहां के समुद्र तट के एकांत में शुरू की. इसी अराधना के लिए उन्होने 4 फीट ऊंचे शिवलिंग की स्थापना की. 

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर की दूसरी पौराणिक कथा भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि तड़कासुर नाम के एक दैत्य ने भगवान शिव की तपस्या कर अनूठा वरदान हासिल कर लिया था. इसके मुताबिक अगर उसे कोई मार सकेगा तो वो सिर्फ भगवान शिव की संतान, वो भी 6 दिन से कम उम्र का.

कार्तिकेय ने किया तड़कासुर का वध

तड़कासुर को ये वरदान देकर शिव तो अपनी साधना में चले गए, इस दौरान तड़कासुर का आतंक स्वर्गलोक तक पहुंच गया. तब त्राहिमाम करते देवताओं 5 दिन पहले जन्मे शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तड़कासुर का वध किया. लेकिन जब कार्तिकेय को ये एहसास हुआ कि उन्होंने अपने पिता के एक भक्त का वध कर दिया है, तब प्रायश्चित के लिए उन्होंने एक शिवलिंग स्थापित कर पूजा की.

हालांकि इन दो कहानियों के बाद भी स्तंभेश्वर मंदिर का रहस्य पूरी तरह खुलता नहीं, बल्कि समुद्री लहरों के साथ और बढ़ता जाता है. रहस्य ये, कि आखिर पौरणिक कहानियों के आधार पर बीच समुद्र में ये मंदिर बनाया कैसे और किस मकसद से गया होगा. 

खंभात की खाड़ी में बना है मंदिर

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर के पौराणिक दस्तावेज तो इसे द्वापर युग का बताते हैं. मगर आधुनिक इतिहास को देखें, तो इसकी खोज 19वीं शताब्दी में, यानी आज से करीब ढ़ेढ़ सौ साल पहले हुई थी. तब मंदिर रेत के नीचे दबा हुआ मिला था. अरब सागर के जिस तटीय इलाके में ये मंदिर स्थित है, वो इलाका खंभात की खाड़ी का क्षेत्र है. 

इस क्षेत्र के बारे में एक मान्यता ये है कि यहां सिंधु घाटी सभ्यता से भी प्राचीन सभ्यता के अवशेष है. हालांकि इसकी डेटिंग को लेकर पुरातत्व विशेषज्ञों में एक राय नहीं है, लेकिन स्तंभेश्वर मंदिर की पौराणिकता को लेकर कोई दो राय नहीं है.

डेढ़ सौ साल पहले खोजा गया मंदिर

एक तरफ द्वापर युग की जलमग्न द्वारकानगरी, दूसरी तरफ भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग और बीच स्तंभेश्वर महादेव का रहस्यमयी शिवलिंग. वडोदरा के जिस तटीय क्षेत्र में है स्तंभेश्वर मंदिर, वो लोकेशन ही इसे दिव्य, और दैवीय रहस्य से भरता है. 

मौजूदा दस्तावेजों के मुताबिक इस मंदिर को डेढ़ सौ साल पहले खोजा गया, लेकिन इसका निर्माण 7वीं शताब्दी में बताया जाता है. मंदिर का शिवलिंग चावड़ी संतों को समुद्र के बीच मिला था. चावड़ी संतों ने 4 फीट के शिवलिंग को स्थापित कर मंदिर बनवाया. 8वीं शताब्दी में मंदिर का पुनर्निर्माण शंकराचार्य ने कराया. 

गुजरात के प्राचीन मंदिरों में शुमार

स्तंभेश्वर मंदिर से शंकराचार्य के जुड़ने के बाद ये धीरे धीरे इसकी ख्याति आम लोगों तक पहुंचने लगी. क्योंकि यहां से कुछ ही दूरी पर सोमनाथ का भी प्रसिद्ध मंदिर है. इस मंदिर के पास त्रिलोचनगढ़ का किला है, जिसका निर्माण सोमनाथ के ज्योतिर्लिंग की सुरक्षा के लिए कराया गया था.

इस तरह ये भगवान शिव का अनूठा मगर दुर्गम मंदिर गुजरात के प्राचीन मंदिरों में शामिल हुआ. रही बात यहां लहरों के चमत्कार की, तो ऐसा समुद्र में उठने वाले ज्वार की वजह से होता है. 

ज्वार भाटा के समय के मुताबिक स्तंभेश्वर मंदिर में शिवलिंग के दर्शन का समय तय होता है. इसकी पूरी सूचना मंदिर परिसर में पहले ही दे दी जाती है. दिन के हिसाब से जिस दिन ज्वार का उठना होता है, उसके 6 घंटे बाद मंदिर में शिवलिंग की पूजा की अनुमति दी जाती है.

मंदिर में रोजाना भर जाती है एक फुट तक रेत

एक बार ज्वार आने के बाद गर्भ गृह में करीब 1 फीट तक समुद्री रेत भर जाती है. जिसे साफ करने में एक से डेढ़ घंटे का समय और हजारों लीटर साफ पानी लगता है. ये प्रक्रिया स्तंभेश्वर मंदिर में दो बार करनी पड़ती है, क्योंकि खंबात के समुद्री तट पर ऊंची लहरों वाला ज्वार दो बार आता है. ये लहरे आमवस्या और पूर्णिमा के इर्द-गिर्द और भी ऊंची होती है.

यानी स्तंभेश्वर मंदिर में लहरों की पूरी प्रक्रिया प्राकृतिक होती है. लेकिन एक रहस्य अब भी रह जाता है, इतनी मुश्किल जगह पर ये शिवलिंग स्थापित कैसे किया गया और लहरों के पूरे अनुमान के साथ ये मंदिर किस तकनीक से तैयार किया गया कि सैकड़ों साल से लहरों को झेलता हुआ ये शिवलिंग आज भी साक्षात और साबूत है.

Trending news