Tulsi Ramayan: याज्ञवल्क्य तुरंत समझ गए ऋषि भारद्वाज की चतुराई, इसलिए कर रहे थे ऋषि अज्ञानी बनने का नाटक
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Tulsi Ramayan: याज्ञवल्क्य तुरंत समझ गए ऋषि भारद्वाज की चतुराई, इसलिए कर रहे थे ऋषि अज्ञानी बनने का नाटक

Tulsi Ramayan In Hindi: इस अध्याय में हम जानेंगे कि मुनि याज्ञवल्क्य कैसे ऋषि भारद्वाज की चतुराई समझ गए थे. ऋषि भारद्वाज अज्ञानी बन कर प्रभु श्री राम के बारे में जानने की लालसा पूरी करना चाह रहे थे.  

 

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फाइल फोटो

Tulsi Ramayan: राम के भक्त रामकथा सुनने और अपने प्रभु की गूढ़ बातें जानने का हर जतन करते हैं. परमार्थ पथ के ज्ञाता ऋषि भारद्वाज ने भी यही किया. उन्होंने सब कुछ जानते हुए भी मुनि याज्ञवल्क्य जी से ऐसा प्रश्न जैसे वे कुछ जानते ही न हों. अब मुनि याज्ञवल्क्य भी सब के मन की जानने वाले थे, तुरंत भेद खोल दिया कि मुनि भारद्वाज तो वास्तव में भगवान की लीलाएं सुनना चाहते हैं, उनके मन में कहीं कोई शंका नहीं है. आइए सुनते हैं विनय और प्रेम से भरा दोनों मुनियों का संवाद.

जैसें मिटै मोर भ्रम भारी।

कहहु सो कथा नाथ बिस्तारी।।

जागबलिक बोले मुसुकाई। 

तुम्हहि बिदित रघुपति प्रभुताई।।

मुनि याज्ञवल्क्य जी से मुनि भारद्वाज कहते हैं कि हे नाथ! जिस प्रकार मेरा यह बड़ा भारी भ्रम मिटे वही कथा विस्तार से कहिए. यह सुनते ही याज्ञवल्क्य जी मुस्कुरा उठे और बोले- तुम रघुनाथ जी की महिमा को भलीभांति जानते हो.

रामभगत तुम्ह मन क्रम बानी।

चतुराई तुम्हारि मैं जानी ।।

चाहहु सुनै राम गुन गूढ़ा।।

कीन्हिहु प्रस्न मनहुँ अति मूढ़ा।।

तुम मन, वचन और कर्म से राम के भक्त हो. तुम्हारी चतुराई मैं समझ गया हूं. तुम राम के गुणों की गूढ़ कथा सुनना चाहते हो. इसीलिए तुमने ऐसा प्रश्न किया मानो बड़े ही मूढ़ हो. 

तात सुनहु सादर मनु लाई।

कहहुं राम कै कथा सुहाई।।

महामोहु महिषेसु बिसाला।

रामकथा कालिका कराला।।

हे तात! अब मैं श्री राम जी की सुंदर कथा कहता हूं. तुम आदर के साथ मन लगाकर सुनो. बड़ा भारी अज्ञान विशाल महिषासुर है और श्री राम जी की कथा उसे नष्ट कर देने वाली विकराल काली जी है. 

रामकथा ससि किरन समाना।

संत चकोर करहिं जेहि पाना।।

ऐसेइ संसय कीन्ह भवानी। 

महादेव तब कहा बखानी।।

राम जी की कथा चंद्रमा की उन किरणों के समान है, जिसका चकोर रूपी संत हमेशा पान किया करते हैं. ऐसा ही संदेह माता पार्वती ने किया था. तब महादेव ने विस्तार से उसका उत्तर दिया था.

कहउँ सो मति अनुहारि अब उमा संभु संबाद।

भयउ समय जेहि हेतु जेहि सुनु मुनि मिटिहि बिषाद।।

याज्ञवल्क्य जी कहते हैं- अब मैं अपनी बुद्धि के अनुसार उमा और शंभु का वही संवाद कहता हूं. वह जिस समय और जिस कारण से हुआ. हे मुनि! उसके सुनने से सारा विषाद मिट जाता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

 

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