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Tulsidas Jayanti 2022 Date: विश्व को रामचरित मानस के रूप में अनुपम, अद्भुत ग्रंथ देने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म पवित्र चित्रकूट के राजापुर गांव में आत्माराम दुबे और हुलसी के घर पर संवत 1554 की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन हुआ था यह तिथि इस बार 4 अगस्त को है. यूं तो उन्होंने अपने जीवन में अनेकों पुस्तकों की रचना की किंतु भगवान श्री राम के जन्म से राज्याभिषेक तक की घटनाओं को दोहा, चौपाई और छंद के माध्यम से महाकाव्य के रूप में लिख कर आम जनमानस को एक श्रेष्ठ पुत्र, पितृभक्त, मातृभक्त, भाईयों के प्रति प्रेम, पत्नी के प्रति समर्पित, दुष्टों के संहारक, मर्यादा के पर्याय राजा, आदर्श पति बनने की सीख दी है. आइए तुलसीदास जी की की जयंती पर जानते हैं उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं के बारे में.
अनहोनी की आशंका में मां ने दासी को सौंप दिया
जन्म के बाद सामान्य रूप से कोई भी बच्चा रोता है और न रोने पर लोग चिंता करने लगते हैं किंतु तुलसीदास रोए नहीं थे, उनके मुख से राम का नाम निकला. जन्म के साथ ही उनके 32 दांत और भारी भरकम डील डौल था. मां के गर्भ में वह 12 माह रहे थे. इन परिस्थितियों में किसी अमंगल की आशंका में माता हुलसी ने जन्म तीन दिन बाद ही अपनी दासी चुनिया के साथ उन्हें उसकी ससुराल भेज दिया और दूसरे दिन वे स्वयं ही इस संसार से चल बसीं. पांच वर्ष की अवस्था में दासी चुनिया ने भी संसार छोड़ दिया. अब तो बालक अनाथ हो गया और द्वार द्वार भटकने लगा. उसकी इस दशा को देख कर माता पार्वती उन्हें रोज खाना खिलाने आती थीं.
गुरु का पढ़ाया पाठ एक बार में ही कर लेते थे याद
स्वामी नरहर्यानन्द जी ने उनका नाम रामबोला रखा और अयोध्या में संवत 1561 में माघ शुक्ल पंचमी के दिन यज्ञोपवीत कराया. बिना सिखाए ही रामबोला ने गायत्री मंत्र का उच्चारण किया तो सब लोग चकित रह गए. रामबोला गुरुमुख से सुनी हुई बात एक बार में याद कर लेते थे. सोरों में स्वामी नरहरि जी ने उन्हें राम चरित सुनाया. काशी में शेष सनातन जी के सानिध्य में रह कर तुलसीदास ने 15 वर्षों तक वेद वेदांग का अध्ययन किया. लोकवासना जाग्रत होने पर वह गुरु की आज्ञा से जन्मभूमि राजापुर लौट आए. यहीं पर उनका विवाह एक सुंदर स्त्री से हो गया.
एक बार उनकी पत्नी अपने भाई के साथ मायके चली गईं तो तुलसीदास भी पीछे से वहां पहुंच गए. पीछे-पीछे अपने पति को आता देख उन्होंने तुलसीदास को बहुत धिक्कारा और भला बुरा कहा, उन्होंने कहा कि हाड़ मांस से इस शरीर में तुम्हारी जितनी आसक्ति है, उससे आधी भी यदि भगवान में होती तो तुम्हारा बेड़ा पार हो गया होता. पत्नी के शब्द बाण की तरह तुलसीदास को चुभ गए, बस वे बिना एक क्षण भी रुके लौट पड़े.
मानस का प्रारंभ रामनवमी और पूर्णता राम विवाह के दिन
भगवान शंकर और पार्वती जी ने उन्हें दर्शन देकर आदेश दिया कि तुम अयोध्या पहुंच कर हिंदी में काव्य रचना करो, मेरे आशीर्वाद से तुम्हारी कविता सर्वव्यापी होगी. बस तुलसीदास जी काशी से अयोध्या आ गए और संवत 1631 में रामनवमी के दिन राम चरित मानस की रचना शुरू की. दो वर्ष सात माह और 26 दिनों में ग्रंथ की समाप्ति 1633 में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष में राम विवाह के दिन हुई जब से सातो कांड लिख सके.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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