Janeu kya hai: जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र है, जिसे संस्कृत में “यज्ञोपवीत” कहा जाता है. इसे लोग गले में इस तरह डालते हैं कि बाएं कंधे के ऊपर तथा दाहिनी भुजा के नीचे रहे. इसके तीनों सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं.
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Janeu Sanskar: जनेऊ अथवा यज्ञोपवीत के महत्व के बारे में गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचरित मानस के बालकांड में लिखा है, “भए कुमार जबहिं सब भ्राता, दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता” अर्थात सभी भाई जब किशोरावस्था को प्राप्त हुए तो गुरु, पिता और माता ने उन्हें जनेऊ धारण करने के लिए दिया. यज्ञोपवीत हिंदू समाज के 16 संस्कारों में से एक है. सावन मास की पूर्णिमा को श्रावणी पूर्णिमा भी कहते हैं. यह दिन बहुत ही पवित्र माना जाता है, इसलिए इसी दिन जनेऊ बदलने की परम्परा है. इस बार 30 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा है.
तीन धागे, नौ तार और पांच गांठ
जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र है, जिसे संस्कृत में “यज्ञोपवीत” कहा जाता है. इसे लोग गले में इस तरह डालते हैं कि बाएं कंधे के ऊपर तथा दाहिनी भुजा के नीचे रहे. इसके तीनों सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं. इन्हें सत, रज और तम गुणों के साथ ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी माना जाता है. यह तीन आश्रमों के साथ ही गायत्री मंत्र के तीन चरणों का भी प्रतीक है. इसके तीन धागों में से प्रत्येक में तीन-तीन तार होते हैं. इस तरह इसमें कुल नौ तार होते हैं. मनुष्य के शरीर में भी नौ द्वार होते हैं, एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के द्वार. यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती हैं जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है. यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेंद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक हैं.
नियम
- यज्ञोपवीत को मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करने के बाद ही उसे कान से उतारना चाहिए. इस कर्म के पीछे की मोटी बात यही है कि यज्ञोपवीत कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न होने पाए. इस कर्म के माध्यम से धारण करने वाले को अपने यज्ञोपवीत व्रत की याद भी बनी रहती है.
- यज्ञोपवीत का कोई तार टूट जाए या 6 माह से अधिक समय हो जाए, तो पूर्णिमा के दिन बदल लेना चाहिए. खंडित यज्ञोपवीत को शरीर पर धारण नहीं किया जाता है, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इसके धागे गंदे न होने पाएं, गंदे होने पर भी बदलना चाहिए.
- यज्ञोपवीत शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता है, साफ करने के लिए उसे गले में पहने पहने ही घुमाकर धो लिया जाता है. यदि कभी भूल से उतर जाए तो प्रभु का स्मरण कर प्रायश्चित करना चाहिए.
- कोई भी बालक जब इन नियमों का पालन करने योग्य हो जाए तभी उसका यज्ञोपवीत कराना चाहिए.
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