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Vastu Tips for Drawing Room: घर का स्वागत कक्ष कितना ही सुन्दर, सुसज्जित आकर्षित क्यों न हो पर यदि वह उचित स्थान पर नहीं है तो वह अपनी उपयोगिता में खरा नहीं उतरेगा. बल्कि इसके उलट यह कई अवरोधों एवं असुविधाओं का अहसास देगा. स्वागत कक्ष घर की अहम जगह होती है. वह मेहमान को घर के मालिक के व्यक्तित्व से परिचय कराता है इसलिए इसका सही जगह पर होना बहुत जरूरी है.
स्वागत कक्ष के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि शून्य अंश पूरब यानी पूर्ण पूरब दिशा पर नहीं होना चाहिए. यह स्थान व्यक्तिगत रूप से घर के मालिक के लिए महत्वपूर्ण होता है. यहां के स्वामी इंद्र हैं, जो भू स्वामी को एश्वर्य देता है. ऐसे स्थान पर मेहमानों को नहीं बैठाना चाहिए.
सबसे अच्छा स्वागत कक्ष वायव्य (उत्तर-पश्चिम) और उत्तर दिशा के मध्य में होता है. व्यावहारिक रूप से यह तभी संभव है जब भवन का मुख्य द्वार उत्तर या पश्चिम में हो. पश्चिम दिशा में मुख्य द्वार होने पर स्वागत कक्ष पश्चिम और वायव्य के मध्य बनाया जा सकता है.
स्वागत कक्ष नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) या उसके अगल-बगल नहीं होना चाहिए. यहां का स्वागत कक्ष अपमानकारी और अमंगल का सूचक है. यहां पर बने कक्ष में घर मालिक का अपमान करने और हानि पहुंचाने वाले लोग अधिक आते हैं.
औधोगिक या व्यापारिक प्रतिष्ठानों में स्वागत कक्ष पूरब और ईशान के मध्य या वायव्य और उत्तर के बीच बनाना अति उत्तम है. वास्तु शास्त्र में नैऋत्य कोण में शस्त्रागार बनाने का प्रावधान है. यदि शास्त्र संबंधी या सुरक्षा उपकरणों से संबंधित कारोबार है तो स्वागत कक्ष नैऋत्य कोण में बनाया जा सकता है.
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स्वागत कक्ष का द्वार मुख्य द्वार के ठीक सामने नहीं होना चाहिए. इसके द्वार को मुख्य द्वार से कुछ हट कर बनाना चाहिए. अन्यथा स्वागत कक्ष में भय और अशांति व्याप्त होगी तथा असहजता का एहसास होता है. स्वागत कक्ष के द्वार के ठीक सामने सीढ़ियां भी वास्तु के विपरीत हैं. बड़े भवनों में अक्सर यह दोष दिखता है.
यदि आपका स्वागत कक्ष वायव्य और पश्चिम के बीच में है यानी आधा वायव्य और आधा पश्चिम में हो तो यहां पर कभी मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए. सिर्फ आगंतुकों के आने जाने और बैठने के लिए इस स्थान का प्रयोग किया जा सकता है.
स्वागत कक्ष के निर्माण में कई बार बड़े भवनों में इसे गोल या अर्ध गोलाकार बना दिया जाता जो बिल्कुल गलत है. स्वागत कक्ष की दीवारें समकोण में होनी चाहिए. साथ ही पांच या छह कोने के स्वागत कक्ष अच्छे नहीं होते.
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बहुकोणीय स्वागत कक्ष के दुष्प्रभाव को खुद भी परखा जा सकता है. इसके लिए एक चौकोर समकोण वाले खाली कमरे को बंद करके जोर से चिल्लाएं और अपनी प्रतिध्वनि सुनें यह बहुत धीमी होगी. किंतु आपकी जैसी आवाज है वैसी ही प्रतिध्वनि सुनाई देगी. इसका अर्थ यह है कि ऊर्जा का वाइब्रेशन ठीक है. वहीं आप गोल, अर्धगोल, षटकोणीय कक्ष को खाली करके बंद कमरे में चिल्लाएं तो आपको अपनी आवाज काफी तेज सुनाई देगी. आपको यह भी आभास होगा कि चिल्लाने वाला मैं था और प्रतिध्वनि किसी और की है. इसका अर्थ है कि वहां ऊर्जा का क्षेत्र उचित नहीं है.
आज कल विदेशी डिजाइनों के जो भवन बन रहे हैं उनके स्वागत कक्ष भूमि के तल के नीचे यानी कि बेसमेंट में बनाए जा रहे हैं. जो गलत है और समस्याओं को पैदा करने वाला है. आने वाले का पैर भूमि के नीचे जाता है जो एक तरफ यह आपके मन को दूषित करता है तो दूसरी तरफ भवन का भार संतुलन यानी वेट बैलेंस भी बिगाड़ता है.