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नई दिल्ली: शनि (Shani) की क्रूर दृष्टि जिंदगी को उलट-पुलट कर देती है. शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव से मिले झटकों से उबरने में व्यक्ति को लंबा समय लग जाता है. लिहाजा कुंडली (Kundali) में शनि संबंधी कोई दोष (Shani Dosh) हो तो उसके लिए उपाय जरूर करना चाहिए. इसी तरह राशियों पर लगने वाली शनि की साढ़े साती (Shani Sade Sati) और ढैय्या (Dhaiya) के दौरान भी शनि के नकारात्मक असर को कम करने के लिए समय-समय पर उपाय (Upay) जरूर करते रहना चाहिए. शनि के अशुभ असर को कम करने के लिए ऐसा ही शुभ समय है सावन का महीना (Sawan Month). आज हम जानते हैं कि इस महीने में किन राशि (Zodiac Sign) वालों के लिए शनि के उपाय करना जरूरी है.
इस समय मकर, धनु, कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती और मिथुन, तुला राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है. धर्म और ज्योतिष में कहा गया है कि भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति पर शनि का अशुभ असर नहीं पड़ता है. चूंकि सावन महीना शिव जी की भक्ति के लिए सबसे खास होता है, ऐसे में इस महीने में किए गए उपाय साढ़े साती और ढैय्या वाली राशियों को बहुत लाभ देंगे.
- इन 5 राशियों के जातकों को सावन महीने में रोजाना शिवलिंग पर जल चढ़ाना चाहिए.
- रोजाना भगवान शिव के साथ-साथ देवी पार्वती और उनके पुत्र भगवान गणेश की भी आराधना करें.
- सावन के महीने में शिव चालीसा (Shiva Chalisa) पढ़ने और भगवान शिव की आरती (Shiva Aarti) करने से इन 5 राशि वालों को बहुत लाभ होगा.
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॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान. कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
॥चौपाई॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला. सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके. कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये. मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे. छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी. बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी. करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे. सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ. या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा. तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी. देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ. लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा. सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई. सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी. पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं. सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई. अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला. जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई. नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा. जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी. कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई. कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर. भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी. करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै. भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो. येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो. संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई. संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी. आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं. जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी. क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन. मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं. शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय. सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई. ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी. पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई. निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे. ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा. ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे. शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे. अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी. जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा.
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे.
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे.
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी.
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे.
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी.
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका.
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा.
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा.
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला.
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है.)