Human Brain Thinking Speed: हम कितनी तेजी से सोचते हैं? वैज्ञानिकों ने इंसान के दिमाग की सोचने की स्पीड का पता लगाया है. एक नई स्टडी के अनुसार, यह आपकी उम्मीद से कही ज्यादा धीमी है.
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Human Thoughts Limit: एक नई स्टडी के अनुसार, इंसान का दिमाग जितना तेज सोचता है, वह उतना तेज नहीं है जितना हमें लगता है. इंसान का 'परिफेरल नर्वस सिस्टम, जो मस्तिष्क और शरीर के बीच जानकारी पहुंचाता है, पर्यावरण से हर सेकंड में एक अरब बिट्स से अधिक जानकारी ले सकता है. यह एक तेज इंटरनेट कनेक्शन जितना तेज है. लेकिन दिमाग इस जानकारी को सिर्फ '10 बिट्स प्रति सेकंड' की दर से प्रोसेस करता है. यह अंतर बताता है कि हमारे मस्तिष्क में जानकारी फिल्टर करने और प्रोसेस करने का तरीका कितना अनोखा है. यह संख्या हमारे रोजमर्रा के अनुभवों से बहुत छोटी लगती है.
Neuron जर्नल में छपी स्टडी में रिसर्चर्स ने लिखा, 'जब हमारा होम वाई-फाई 100 मेगाबिट्स प्रति सेकंड से धीमा हो जाता है, तो हमें चिंता होती है क्योंकि यह हमारी नेटफ्लिक्स देखने की सुविधा में बाधा डाल सकता है. वहीं, हमारा मस्तिष्क इस डेटा स्ट्रीम से केवल 10 बिट्स प्रति सेकंड ही प्रोसेस करता है.'
बड़े-बड़े तुर्रम खां का भी तेज नहीं दिमाग!
स्टडी के लेखक जियेयू झेंग और मार्कस मिस्टेर (कैलटेक से) ने यह स्पीड पता करने के लिए कैलकुलेट किया कि किसी काम को करने में कितने बिट्स की जरूरत होती है. जैसे रूबिक क्यूब सुलझाना या ताश के पत्तों की व्यवस्था याद रखना. उन्होंने इसे उस समय से विभाजित किया जो उस काम को करने में लगा. यहां तक कि मेमोरी एक्सपर्ट्स, जो ऐसे काम सेकंड्स में कर लेते हैं, भी लगभग '10 बिट्स प्रति सेकंड' की दर से जानकारी प्रोसेस कर पाए.
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'सिर्फ 10 बिट्स पर सेकंड की स्पीड'
यह रिसर्च यह सवाल उठाती है कि इंसान का दिमाग इतनी अधिक जानकारी को कैसे और क्यों फिल्टर करता है. एक अकेला न्यूरॉन 10 बिट्स प्रति सेकंड की दर से जानकारी ट्रांसमिट कर सकता है. झेंग ने कहा, 'एक न्यूरॉन उतना ही अच्छा प्रदर्शन कर सकता है जितना एक बंदर. एक 'हां' या 'ना' का निर्णय देने के लिए सिर्फ एक न्यूरॉन ही काफी है. तो फिर हम अरबों न्यूरॉन्स का इस्तेमाल क्यों करते हैं, जबकि हमारा आउटपुट सिर्फ 10 बिट्स प्रति सेकंड है?'
एक समय पर दिमाग में एक विचार
स्टडी में यह भी बताया गया कि इंसान एक समय पर कई विचारों को क्यों नहीं संभाल सकता, जैसे किसी पार्टी में कई बातचीतों को एक साथ सुनना. रिसर्चर्स के अनुसार, इसका कारण हमारी विकासवादी (evolutionary) इतिहास में है. प्रारंभिक जानवरों के नर्वस सिस्टम का मकसद केवल भोजन की तरफ बढ़ना या खतरे से दूर जाना था. इन्हें केवल एक समय पर एक फैसला लेना पड़ता था. आज भी मस्तिष्क की अधिकतर सोच इसी 'रास्ते' पर चलती है जिससे एक समय पर केवल एक ही जानकारी प्रोसेस हो पाती है.
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झेंग ने यह भी सवाल उठाया, 'आंतरिक मस्तिष्क यह कैसे तय करता है कि कौन-से 10 बिट्स पर ध्यान देना है?' यह स्टडी इस दिशा में गहराई से रिसर्च की मांग करती है.