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नई दिल्ली: मेडिकल साइंस के क्षेत्र में आए दिन नई खोज होती रहती हैं. इसे लेकर दुनियाभर में नई-नई रिसर्च होती रहती हैं. इस कड़ी में IIT कानपुर ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है. बताया जा रहा है कि IIT कानपुर की लैब में ऐसी तकनीक तैयार की गई है, जिससे हड्डियों को दोबारा बनाया जा सकेगा.
अगर किसी का एक्सीडेंट हो जाए या किसी को बोन का कैंसर या फिर बोन लॉस होने की वजह से बोन रिप्लेसमेंट का प्रयोग करने की नौबत आ जाए, तो बोन रिप्लेसमेंट करने से मरीज के शरीर मेंकई तरह के इंटर्नल संक्रमण फैलने का खतरा काफी हद तक रहता है. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. IIT के वैज्ञानिकों ने ऐसी बोन रिजनरेशन टेक्नोलॉजी विकसित की है, जिसकी मदद से जहां भी बोन नहीं है, वहां इसे इंजेक्ट करके खाली स्थान को बोन से भरा जा सकेगा.
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इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अधिक से अधिक मरीज और डॉक्टर्स कर सकें, इसके लिए आईआईटी और ऑर्थो रीजेनिक्स के बीच एक एमओयू साइन हुआ है. इस एमओयू के तहत ऑर्थो रीजेनिक्स इसटेक्नोलॉजी का कमर्शियल उपयोग कर सकेगी.
बात अगर तकनीक की करें तो, शरीर के जिस हिस्से में हड्डी टूट गई है या हट गई है, उस प्रभावित हिस्से में दो केमिकल का पेस्ट बनाकर इंजेक्शन के जरिए शरीर में पहुंचाया जाएगा. इस सिरेमिक बेस्ड मिक्सचर में बायो-एक्टिव मॉलेक्यूल होंगे जो हड्डी के पुनर्विकास में मदद करेंगे. इस तकनीक को बनाने वाले डिपार्टमेंट ऑफ बायो-साइंसेज एंड बायो-इंजीनियरिंग के प्रोफेसर अशोक कुमार का कहना है कि इससे कृत्रिम हड्डी प्राकृतिक जैसी हो जाएगी. भारत की दृष्टि से इसे हेल्थ में क्रांति कहा जा सकता है.
इस प्रोसीजर के बारे में बताते हुए प्रो कुमार ने कहा कि, इसे सीधे इम्प्लांट करने की बजाए इसे इंजेक्ट किया जा सकता है. यह पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल है और इसमें बोन रिजनरेशन के लिए ऑस्टियोइंडक्टिव और ऑस्टियो प्रोमोटेड को शामिल किया गया है. ऑस्टियोइंडक्टिव को हड्डी का इलाज करने का तरीका भी कहते है. वहीं, ऑस्टियो प्रोमोटेड नई हड्डी के विकास के लिए सामग्री का काम करती है.
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इस कॉम्बिनेशन सकफोल्डस का उपयोग बड़े आकार की हड्डी के दोषों को भरने में बिना कनेक्टिविटी और स्ट्रक्चरल अनैलीसीस दोषों, ऑक्सीजन और रक्त परिसंचरण से समझौता किए बिना किया जा सकता है. इसका इस्तेमाल भविष्य में हड्डी के विकल्प के रूप में भी किया जा सकता है. इस तकनीक से मेडिकल क्षेत्र में बड़ा बदलाव आ सकता है.
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