Trending Photos
नई दिल्ली: साल 2020 के बाद अब 2021 में भी कोरोना वायरस (Coronavirus) संक्रमण बढ़ता जा रहा है. ये महामारी एक बार फिर अपना विकराल रूप दिखा रही है और इस बार संक्रमित मरीजों की संख्या भी कई गुना ज्यादा है. ऐसे में, लोगों का भरोसा रेमडेसिविर (Remdesivir) पर बढ़ता ही जा रहा है. ऐसा माना जा रहा है कि यह कोविड-19 के इलाज में कारगर साबित हो रही है.
कोरोना के बिगड़ते हालात को देखते हुए भारत सरकार ने भी रेमडेसिविर के निर्यात पर रोक लगा दी है. देश में कई जगहों से इसकी किल्लत की खबरें आ रही हैं. यहां तक कि इस दावे की कालाबाजारी भी शुरू हो गई है. अब ऐसे में सवाल उठता है कि जिस दवाई के लिए इतनी मारामारी हो रही है वो इस महामारी में कितनी असरदार है.
दरअसल, रेमडेसिविर को Gilead Sciences ने इबोला के संक्रमण को कंट्रोल करने के लिए ड्रग के रूप में बनाया था. हालांकि इससे और भी कई तरह के वायरस मर सकते हैं. आपको बता दें कि रेमडेसिविर उस एन्जाइम को ब्लॉक करती है जो कोरोना वायरस की कॉपी बनाने में या उसे बढ़ाने में मदद करता है. इसकी वजह से वायरस शरीर में फैल नहीं पाता है.
ये भी पढ़ें- मार्स मिशन: नासा की कामयाबी के पीछे भारतीय मूल के वैज्ञानिक का दिमाग
अध्ययन के मुताबिक, रेमडेसिविर ने SARS और MERS की एक्टिविटी को भी ब्लॉक किया और इसीलिए ये दवा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को दी गई थी जब वह कोरोना वायरस से संक्रमित थे.
क्लिनिकल ट्रायल की बात करें तो यह दवा इतनी कारगर नहीं है जितना इसके लिए हाहाकार मचा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के Solidarity Trial ने 5,000 लोगों पर स्टडी में ये साफ किया था कि ये कोविड में असरदार नहीं है. इसके बाद WHO ने इस दवा को मरीजों को दिए जाने वाली दवाओं की लिस्ट से बाहर कर दिया था. लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह कुछ दिन के लिए वायरस के रेप्लिकेशन को रोक सकती है.
ये भी पढ़ें- कोरोना मरीजों को ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए नहीं करनी होगी मारामारी, DRDO ने दिया विकल्प
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने कहा है कि लोगों को इसे खरीदने के लिए परेशान नहीं होना चाहिए. इससे मृत्युदर पर कोई असर नहीं पड़ता है. एक्सपर्ट का मानना है कि इसे देकर डॉक्टर अस्पतालों में बेड खाली रखना चाहते हैं ताकि गंभीर मरीजों को भर्ती किया जा सके.
इस दवा की बढ़ती मांग की वजह से इसकी कीमत लगातार बढ़ती जा रही है. इसके अलावा इस दवाई की ब्लैक मार्केटिंग भी सरकार के लिए चुनौती बन गई है. महाराष्ट्र में रेमडेसिविर की कीमत 1,100 से 1,400 रुपये के बीच रखने का फैसला किया गया है. बढ़ती मांग को लेकर कई जगहों पर होर्डिंग की शिकायतें आई हैं और कीमत बढ़ाकर बेचने के आरोप लगे हैं. यहां तक कि लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर 8-10 हजार रुपये में भी इंजेक्शन बेचे जा रहे हैं.
विज्ञान से जुड़ी अन्य खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
LIVE TV