NASA की ऐतिहासिक कामयाबी! 16 करोड़ किलोमीटर दूर, मंगल पर हेलिकॉप्टर हादसे की कर डाली जांच
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NASA की ऐतिहासिक कामयाबी! 16 करोड़ किलोमीटर दूर, मंगल पर हेलिकॉप्टर हादसे की कर डाली जांच

NASA Ingenuity Mars Helicopter: नासा के इंजीन्यूटी मार्स हेलीकॉप्टर ने फिर से इतिहास रच दिया! 100 मिलियन मील दूर से, NASA ने किसी दूसरे ग्रह पर पहली विमान दुर्घटना की जांच पूरी की है.

NASA की ऐतिहासिक कामयाबी! 16 करोड़ किलोमीटर दूर, मंगल पर हेलिकॉप्टर हादसे की कर डाली जांच

NASA Ingenuity Mars Helicopter Accident: आज से लगभग 11 महीने पहले, 18 जनवरी 2024 को मंगल ग्रह पर नासा का हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया था. वह 'इंजीन्यूटी मार्स हेलीकॉप्टर' की 72वीं उड़ान थी. तीन साल तक मंगल पर रहते हुए, 'इंजीन्यूटी' ने योजना से 30 गुना अधिक दूरी तय की. किसी दूसरे ग्रह पर भेजा गया यह पहला एयरक्राफ्ट था. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने 100 मिलियन मील (लगभग 16 करोड़ किलोमीटर) दूर से हेलीकॉप्टर हादसे की जांच पूरी कर ली है. जांच में पता चला कि 'इंजीन्यूटी' का नेविगेशन सिस्टम उड़ान के दौरान सटीक डेटा नहीं दे पाया, जिसकी वजह से मिशन खत्म हो गया. इस क्रैश रिपोर्ट के नतीजे भविष्य में मंगल पर भेजे जाने वाले हेलीकॉप्टर्स के काम आएंगे. साथ ही साथ, अन्य ग्रहों पर भेजे जाने वाले स्पेसक्राफ्ट को भी इन सीखों से फायदा होगा.

Ingenuity Mars Helicopter को 30 दिन के भीतर मंगल पर पांच उड़ानें भरनी थीं. लेकिन इसने उम्मीदों से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया. यह मंगल पर करीब तीन साल तक काम करता रहा. इस दौरान उसने 72 बार उड़ान भरी और दो घंटे से अधिक समय हवा में बिताया.

Ingenuity Mars Helicopter की आखिरी उड़ान

NASA की ओर से जारी बयान के मुताबिक, 'इंजीन्यूटी' की फ्लाइट 72 असल में एक छोटी सी कूद थी ताकि उसके फ्लाइट सिस्टम का आंकलन किया जा सके और इलाके की तस्वीर ली जा सके. फ्लाइट का डेटा दिखाता है कि इंजीन्यूटी ने करीब 40 फीट (12 मीटर) तक उड़ान भरी और तस्वीरें खींची. फिर 19वें सेकंड पर इसने नीचे उतरना शुरू किया और 32वें सेकंड पर तक यह सतह पर पहुंच चुका था. उसके बाद हेलीकॉप्टर से संपर्क टूट गया.

अगले दिन संचार संपर्क जुड़ा और फ्लाइट के छह दिनों बाद जो तस्वीरें आईं, उनसे पता चला कि इंजीन्यूटी के रोटर ब्लेड्स को खासा नुकसान पहुंचा है.

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क्यों क्रैश हुआ हेलीकॉप्टर, NASA ने बताया

इंजीन्यूटी के फर्स्ट पायलट, NASA की जेट प्रपल्शन लैबोरेटरी के हावर्ड ग्रिप कहते हैं, '100 मिलियन मील दूर से हादसे की जांच करते हुए, आपके पास कोई ब्‍लैक बॉक्स या गवाह नहीं होते. जो डेटा उपलब्ध है, वह कई तरह के हालात की ओर इशारा करता है लेकिन हमारा मानना है कि सतह की बनावट की कमी के कारण नेविगेशन सिस्टम को काम करने के लिए बहुत कम जानकारी मिली.'

हेलीकॉप्टर के विजन नेविगेशन सिस्टम को सतह पर मौजूद फीचर्स को ट्रैक करने के लिए डिजाइन किया गया था. इसके लिए पथरीले लेकिन समतल इलाके पर नीचे की ओर देखने वाले कैमरे का इस्तेमाल होता था. यह सीमित ट्रैकिंग क्षमता इंजीन्यूटी की पहली पांच उड़ानों को पूरा करने के लिए पर्याप्त से अधिक थी, लेकिन फ्लाइट 72 तक हेलीकॉप्टर जेजेरो क्रेटर के एक इलाके में पहुंच चुका था, जहां की ऊबड़-खाबड़ सतह ने इसे अक्षम बना दिया.

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अगले 20 साल तक भेजता रहेगा डेटा

भले ही फ्लाइट 72 ने इंजीन्यूटी को हमेशा के लिए बंद कर दिया हो, लेकिन हेलीकॉप्टर अभी भी मौसम और एवियोनिक्स टेस्टिंग डेटा को लगभग हर हफ्ते पर्सिवियरेंस रोवर को भेजता है. मौसम की जानकारी से मंगल ग्रह के भावी रिसर्चर्स को फायदा हो सकता है. NASA के अनुसार, इंजीन्यूटी अभी कम से कम दो दशक तक डेटा भेजता रहेगा.

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