20 सीटों में उपचुनाव होने की स्थिति में अगर आप को हार मिली तो उसकी सत्ता तो नहीं जाएगी लेकिन पार्टी की साख को जरूर धक्का लगेगा.
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आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को 'लाभ के पद' के मामले में अयोग्य करार दिया जा चुका है. उन्हें केजरीवाल सरकार ने संसदीय सचिव नियुक्त किया था. दिल्ली हाईकोर्ट ने 2016 में उनकी नियुक्ति को अवैध करार दिया था. आम आदमी पार्टी ने तब सोचा था मामला यहीं समाप्त हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. चुनाव आयोग ने कार्रवाई को आगे बढ़ाया.
क्या चुनाव आयोग ने जल्दबाजी में यह निर्णय लिया? निर्वाचन सदन की कार्यप्रणाली से परिचित लोग इस तथ्य से सहमत होंगे कि चुनाव आयोग इस तरह से कार्य नहीं करता. अधिकांश निर्णय पूर्ववर्ती घटनाओं तथा संविधान एवं कानून सम्मत कार्यप्रणालियों के अनुसार लिए जाते हैं. चुनाव आयोग की निष्पक्ष व्यवहार के लिए प्रशंसा की जाती है. आयोग निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए राज्य के बड़े से बड़े अधिकारियों पर गाज गिराने में भी नहीं चूकता.
इस मामले की पृष्ठभूमि में जाएं तो पाएंगे कि केजरीवाल सरकार ने मार्च, 2015 में आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना दिया था. इसको लेकर प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी और कांग्रेस ने सवाल उठाए थे. बाद में दिल्ली सरकार ने दिल्ली असेंबली रिमूवल ऑफ डिस्क्वॉलिफिकेशन ऐक्ट-1997 में संशोधन किया था. इस विधेयक का मकसद संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद से छूट दिलाना था, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नामंजूर कर दिया था.
इन 20 विधायकों की सदस्यता जाने पर इतना हो हल्ला क्यों मचाया जा रहा है? क्या इसी तरह का प्रश्न बीजेपी से भी पूछा जा सकता है? क्या यह केंद्र बनाम राज्य की राजनीति है या कुछ और है? ऐसा इसलिए क्योंकि केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल के बीच 'टशन' पिछले तीन-चार वर्ष से जारी है. राज्य और केंद्र के संबंध ही सौहार्दपूर्ण नहीं है. अरविंद केजरीवाल ने 20 विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने के फैसले को 'तुगलगशाही' बताया है. वहीं, आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनकी सलाह नहीं मानी गई.
आम आदमी पार्टी की उम्मीदें अब दिल्ली हाईकोर्ट पर टिकी हुई हैं. पार्टी सुप्रीम कोर्ट भी जा सकती हैं लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट में भी पार्टी हार गई तो दिल्ली में एक बार फिर से इन 20 सीटों पर उपचुनाव होंगे. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगी 'विक्टिम कार्ड' खेलकर सहानुभूति के जरिये वोट लेने का प्रयास कर सकते हैं. हालांकि आम आदमी पार्टी के पास बहुमत है. 20 सीटों में अगर पार्टी को हार भी मिलती है तो उसकी सत्ता तो नहीं जाएगी. हां, पार्टी की साख को जरूर धक्का लगेगा.
पार्टी 'अपनों' के बगावती सुरों से परेशान है. कुमार विश्वास, विधायक कपिल शर्मा और विधायक देवेंद्र सहरावत लगातार पार्टी के लिए सिरदर्द बने हुए हैं. हालांकि, उपचुनाव आम आदमी पार्टी के लिए रेफरेंडम से कम नहीं होगा. अरविंद केजरीवाल सरकार के कामकाज का टेस्ट जरूर होगा. इसलिए ऐसे में 20 विधायकों के अयोग्य करार दिए जाने के बाद मुख्यमंत्री केजरीवाल को क्या नुकसान होगा? बिल्कुल भी नहीं. यह केजरीवाल के लिए विन-विन सिचुएशन होगी.