जन्मदिन विशेष: PM मोदी के जीवन संघर्ष की वो कहानी जिसे जानना जरूरी है...
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जन्मदिन विशेष: PM मोदी के जीवन संघर्ष की वो कहानी जिसे जानना जरूरी है...

संघर्ष के दौर ने संभवतः नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति की कंटीली-पथरीली सीढ़ियों पर आगे बढ़ना सिखा दिया. लक्ष्य भले ही सत्ता नहीं रहा हो, लेकिन कठिन से कठिन स्थितियों में समाज और राष्ट्र के लिए निरंतर कार्य करने का संकल्प उनके जीवन में देखने को मिलता है.

जन्मदिन विशेष: PM मोदी के जीवन संघर्ष की वो कहानी जिसे जानना जरूरी है...

सत्ता, संपन्नता, शिखर-सफलता से अधिक महत्वपूर्ण है, संघर्ष की क्षमता और जीवन मूल्यों की दृढ़ता. इसलिए नरेंद्र भाई मोदी के प्रधानमंत्री पद और राजनीतिक सफलताओं के विश्लेषण से अधिक जरूरी उनकी संघर्ष यात्रा और हर पड़ाव पर विजय की चर्चा करना मुझे श्रेयस्कर लगता है. राजधानी में संभवतः ऐसे बहुत कम पत्रकार इस समय होंगे, जो 1972 से 1976 के दौरान गुजरात में संवाददाता के रूप में रहकर आए हों. इसलिए मैं वहीं से बात शुरू करना चाहता हूं. हिन्दुस्तान समाचार (न्यूज एजेंसी) के संवाददाता के रूप में मुझे 1973-76 के दौरान कांग्रेस के एक अधिवेशन, फिर चिमन भाई पटेल के विरुद्ध हुए गुजरात छात्र आंदोलन और 1975 में इमरजेंसी रहते हुए लगभग 8 महीने अहमदाबाद में पूर्णकालिक रहकर काम करने का अवसर मिला था.

इमरजेंसी के दौरान नरेंद्र मोदी भूमिगत रूप से संघ-जनसंघ और विरोधी नेताओं के बीच संपर्क तथा सरकार के दमन संबंधी समाचार-विचार की सामग्री गोपनीय रूप से पहुंचाने का साहसिक काम कर रहे थे.

उन दिनों तो उनसे भेंट नहीं हो सकी. लेकिन संयोग से नरेंद्र भाई के अनुज पंकज मोदी भी हिन्दुस्तान समाचार कार्यालय में काम कर रहे थे. उन्हीं दिनों पंकज भाई और ब्यूरो प्रमुख भूपत पारिख से इस परिवार और नरेंद्र भाई के किशोर-युवा काल से संघ तथा समाज सेवा के प्रति गहरी निष्ठा एवं लेखन क्षमता की जानकारियां मिलीं.

इमरजेंसी पर गुजराती में पुस्तक
प्रारंभिक दौर में वहां इमरजेंसी का दबाव अधिक नहीं दिख रहा था. गुजरात समाचार और संदेश जैसे अखबार ‘सेंसर’ की छाया में निकल रहे थे. यहां तक कि संघ से जुड़ी ‘साधना’ पत्रिका भी छप रही थी. एजेंसी से वैसे भी कोई सरकार विरोधी खबरें नहीं दी जाती थीं. एजेंसियों का विलय ‘समाचार’ नाम से भी 1976 तक जाकर हुआ. इसलिए प्रतिदिन सरकार द्वारा निर्धारित समय पर अहमदाबाद से जाने-आने वाली मिनी बस से नई राजधानी गांधी नगर की यात्रा के दौरान और फिर पत्रकार कक्षों-दफ्तरों में गुजरात की राजनीति, इमरजेंसी, सेंसर, भूमिगत नेताओं की पुष्ट-अपुष्ट सूचनाएं मिलती रहीं. उन्हीं दिनों ‘साधना’ के संपादक विष्णु पंडयाजी से भी उनके दफ्तर में जाकर राजनीति तथा साहित्य पर चर्चा के अवसर मिले. बाद में संपादक-साहित्यकार विष्णु पंडया के अलावा नरेंद्र मोदी ने इमरजेंसी पर गुजराती में पुस्तक भी लिखी. इसलिए यह कहने का अधिकारी हूं कि सुरक्षित जेल (और बड़े नेताओं के लिए कुछ हद तक न्यूनतम सुविधा के साथ भी) की अपेक्षा गुपचुप वेशभूषा बदलकर इमरजेंसी और सरकार के विरुद्ध संघर्ष की गतिविधियां चलाने में नरेंद्र मोदी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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निरंतर कार्य करने का संकल्प
गिरफ्तारी से पहले सोशलिस्ट जार्ज फर्नांडीस भी भेष बदलकर गुजरात पहुंच थे और नरेंद्र भाई से सहायता ली थी. मूलतः कांग्रेसी लेकिन इमरजेंसी विरोधी रवीन्द्र वर्मा जैसे अन्य दलों के नेता भी उनके संपर्क से काम कर रहे थे. संघर्ष के इस दौर ने संभवतः नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति की कंटीली-पथरीली सीढ़ियों पर आगे बढ़ना सिखा दिया.

लक्ष्य भले ही सत्ता नहीं रहा हो, लेकिन कठिन से कठिन स्थितियों में समाज और राष्ट्र के लिए निरंतर कार्य करने का संकल्प उनके जीवन में देखने को मिलता है.

इस संकल्प का सबसे बड़ा प्रमाण है कि भाजपा के पूर्ण बहुमत के साथ दूसरी बार सत्ता में आने के कुछ ही महीनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने बाकायदा संसद की स्वीकृति के साथ, कश्मीर के लिए बनी अस्थायी व्यवस्था की धारा 370 की दीवार ध्वस्त कर लोकतांत्रिक इतिहास का नया अध्याय लिख दिया. सामान्यतः लोगों को गलतफहमी है कि मोदी जी को यह विचार तात्कालिक राजनीतिक-आर्थिक स्थितियों के कारण आया. लेकिन हम जैसे पत्रकारों को याद है कि 1995-96 से ही भारतीय जनता पार्टी के महासचिव के रूप में वह हरियाणा, पंजाब, हिमाचल के साथ जम्मू-कश्मीर में संगठन को सक्रिय करने के लिए पूरे सामर्थ्य के साथ जुट गए थे. हम लोगों से चर्चा के दौरान भी जम्मू-कश्मीर अधिक ​​केंद्रित होता था, क्योंकि भाजपा को वहां राजनीतिक जमीन तैयार करनी थी.

जम्मू-कश्मीर की यात्राएं
संघ में रहते हुए भी वह जम्मू-कश्मीर की यात्राएं करते रहे थे. लेकिन 90 के दशक में आतंकवाद चरम पर था. अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत-यात्रा के दौरान कश्मीर के छत्तीसिंगपुरा में आतंकवादियों ने 36 सिखों की नृशंस हत्या कर दी. प्रदेश प्रभारी के नाते नरेंद्र मोदी तत्काल कश्मीर रवाना हो गए. बिना किसी सुरक्षाकर्मी या पुलिस सहायता के नरेंद्र मोदी सड़क मार्ग से प्रभावित क्षेत्र में पहुंच गए.

तब फारूख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे. जब पता लगा तो उन्होंने फोन कर जानना चाहा कि ‘आप वहां कैसे पहुंच गए. आतंकवादियों द्वारा यहां वहां रास्तों में भी बारूद बिछाए जाने की सूचना है. आपके खतरा मोल लेने से मैं स्वयं मुश्किल में पड़ जाऊंगा.’ 

यही नहीं उन्होंने पार्टी प्रमुख लालकृष्ण आडवाणी जी से शिकायत की ​थी कि, आपका यह सहयोगी बिना बताए किसी भी समय सुरक्षा के बिना घूम रहा है. यह गलत है.

आडवाणी जी ने भी फोन किया. तब भी नरेंद्र भाई ने विनम्रता से उत्तर दिया कि मृतकों के अंतिम संस्कार के बाद ही वापस आऊंगा. असल में सबको उनका जवाब होता था कि ‘अपना कर्तव्य पालन करने के लिए मुझे जीवन-मृत्यु की परवाह नहीं होती.' दुर्गम इलाकों-गांवों में निर्भीक यात्राओं के कारण वह जम्मू-कश्मीर की समस्याओं को समझते हुए उसे भारत के सुखी-संपन्न प्रदेशों की तरह विकसित करने का संकल्प संजोए हुए थे. वैसे भी हिमालय की वादियां युवा काल से उनके दिल दिमाग पर छाई रही हैं. लेह-लद्दाख में जहां लोग ऑक्सीजन की कमी से विचलित हो जाते हैं, नरेंद्र मोदी को कोई समस्या नहीं होती.

उन दिनों लद्दाख के अलावा वह तिब्बत, मानसरोवर और कैलाश पर्वत की यात्रा भी 2001 से पहले कर आए थे. तभी उन्होंने यह सपना भी देखा कि कभी लेह के रास्ते हजारों भारतीय कैलाश मानसरोवर जा सकेंगे.

यह रास्ता सबसे सुगम होगा. उम्मीद की जाए कि लद्दाख और कश्मीर आने वाले वर्षों में स्विजरलैंड से अधिक सुगम, आकर्षक और सुविधा संपन्न हो जाएंगे. अमेरिका, यूरोप ही नहीं चीन के साथ भी संबंध सुधारने के प्रयास संपूर्ण जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को सुखी संपन्न बनाना रहा है. इसलिए लद्दाख को केंद्र शासित बनाने की मांग को पूरी करने के साथ जम्मू-कश्मीर को भी फिलहाल केंद्र शासित रखा और नागरिकों को भी संपूर्ण भारत में लागू सुविधाओं-कानूनों का प्रावधान कर दिया. तभी तो पाकिस्तान के साथ चीन भड़का. लेकिन सेना को पूरी छूट देकर मोदी सरकार ने सुनिश्चित किया कि भारत की एक इंच जमीन पर भी चीन के दानवी पैर न पड़ सकें.

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पीएम मोदी के दिल से जुड़ी है नर्मदा
हिमालय की तरह नर्मदा उनके दिल से जुड़ी हुई है. उनका मुकाबला तो कोई नहीं कर सकता, लेकिन उज्जैन-इंदौर-ओंकारेश्वर की मेरी पृष्ठभूमि के कारण नर्मदा बांध पर 1973-74 से नर्मदा के पानी बंटवारे, राजनीतिक विवाद, नर्मदा के गंगा नदी से प्राचीन होने तथा पौराणिक महत्व के साथ आधुनिक प्रगति में नर्मदा की जल शक्ति के उपयोग पर लिखता रहा. इसलिए भाजपा संगठन और मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी जी से नर्मदा पर बातचीत के अवसर मिले. दो वर्ष पहले शुभि पब्लिकेशंस के संजय आर्य ने चर्चा के दौरान माना कि राजनीतिक विवादों से हटकर नर्मदा के महत्व पर अंग्रेजी में कोई पुस्तक नहीं है. मैंने लिखना स्वीकार किया. इस पर भव्य चित्रों के साथ काफी टेबल बुक बनने की तैयारी हुई. मैंने मोदी जी से पुस्तक के लिए लिखने का संदेश भेजा. फिर पांडुलिपि भिजवाई, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यस्तताओं के बावजूद ध्यान से पढ़कर सुंदर लिखित टिप्पणी भेज दी. प्रकाशित पुस्तक छपने के बाद प्रकाशक के साथ उनसे भेंट हुई तो नर्मदा-हिमालय पर वह बातों में तल्लीन हो गए. निर्धारित समय से अधिक चर्चा होती रही.

मोदी भारत के ही नहीं, विश्व के चुनिंदा नेताओं में अग्रणी
बहरहाल, असली खुशी हम दोनों के लिए यह रही कि विवादों से हटकर पचास वर्षों से लटका नर्मदा सरदार सरोवर बांध का निर्माण पूरा होने के बाद लाखों किसानों को खेती और गांवों को पीने का पानी भी पहुंच रहा है. मोदी भारत के ही नहीं, विश्व के चुनिंदा नेताओं में अग्रणी समझे जाने लगे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि उन्हें अंतरिक्ष, मंगल, चंद्रयानों की सफलताओं से अधिक गांवों को पानी, बिजली, बेटियों की शिक्षा, गरीब परिवारों के लिए मकान, शौचालय और घरेलू गैस उपलब्ध कराने के अभियानों से अधिक संतोष मिलता है. इसलिए मैं इस धारणा से सहमत नहीं हूं कि गुजरात में हुए औद्योगिक विकास और संपन्नता को ध्यान में रखकर पहले उन्होंने उद्योगपतियों को महत्व दिया और ‘सूट-बूट की सरकार’ के आरोप लगने पर एजेंडा बदलकर गांवों की ओर ध्यान दिया.

आखिरकार, उनका बचपन और 50 वर्ष तक की आयु तो अधिकांश गरीब बस्तियों, गांवों-जंगलों में घूमते हुए बीती है. फिर गरीबों की चिंता क्या किसी राजनीतिक दल और विचारधारा तक सीमित रहती है? 

नरेंद्र मोदी के प्रयासों से दुनिया भारत के साथ खड़ी है
इसमें कोई शक नहीं कि पीएम नरेंद्र मोदी के विचार दर्शन का आधार ज्ञान शक्ति, जन शक्ति, जल शक्ति, ऊर्जा शक्ति, आर्थिक  शक्ति और रक्षा शक्ति है. लगता है दिन-रात उनका ध्यान इसी तरफ रहता है.  इसलिए भारत की ग्राम पंचायतों से लेकर दूर देशों में बैठे प्रवासी भारतीयों को अपने कार्यक्रमों, योजनाओं से जोड़ने में उन्हें सुविधा रहती है.

योग, स्वच्छ भारत, आयुष्मान भारत-स्वस्थ भारत, शिक्षित भारत जैसे अभियान सही अर्थों में भारत को शक्तिशाली और संपन्न बना सकते हैं.  कोरोना महामारी से निपटने में भारत की स्थिति दुनिया के अधिकांश संपन्न विकसित देशों से बेहतर रहने कि बात विश्व समुदाय मान रहा है. विशालतम आबादी के अनुपात में मृत्यु दर सबसे कम और कोरोना से प्रभावित होकर ठीक होने वालों की संख्या सर्वाधिक है. 

आतंकवाद से निपटने के लिए आतंकवादियों के खात्मे के साथ रचनात्मक रास्ता भी सामाजिक-आर्थिक विकास है. तभी तो नरेंद्र मोदी के प्रयासों से दुनिया भारत के साथ खड़ी है और इस्लामिक देश भी पाक से दूर  हो गए हैं. इसलिए राजनीति, विवाद, चुनौतियों से हटकर जननेता के रूप में नरेंद्र मोदी के दृढ़ संकल्पों और सपनों के लिए जन्मदिन पर और अच्छे कार्यों पर उन्हें बधाई और शुभकामनाएं दी जानी चाहिए.

(लेखक पद्मश्री सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार एवं एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष हैं. )

(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं. )

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