कर्नाटक में गठबंधन सरकार, 'बंधुआ विधायकों' का विजय जुलूस कब निकलेगा
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कर्नाटक में गठबंधन सरकार, 'बंधुआ विधायकों' का विजय जुलूस कब निकलेगा

रिजॉर्ट में कैद महंगे विधायक और क्षेत्रीय राजनीति के नए दौर में ‘एक देश एक चुनाव’ पर कैसे अमल होगा.

कर्नाटक में गठबंधन सरकार, 'बंधुआ विधायकों' का विजय जुलूस कब निकलेगा

कर्नाटक में 38 सीटों वाली जेडीएस के नेता एचडी कुमारस्वामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद क्षेत्रीय पार्टियों के महासंघ द्वारा बीजेपी को चुनौती देने की कोशिश हो रही है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के अनुसार विधायकों को यदि विजय जुलूस निकालने की भी स्वतंत्रता मिल जाती तो येदियुरप्पा सरकार को बहुमत का संकट नहीं होता. रिजॉर्ट में कैद महंगे विधायक और क्षेत्रीय राजनीति के नए दौर में ‘एक देश एक चुनाव’ पर कैसे अमल होगा.

रिजॉर्ट में कैद विधायकों को विजय जुलूस की भी अनुमति नहीं. देश में सामान्य नागरिकों को संविधान के तहत घूमने-फिरने और अभिव्यक्ति की आजादी है पर कर्नाटक के 100 करोड़िया विधायकों को रिजॉर्ट में नजरबंद करने पर कोई सवाल नहीं हुआ? कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाने को देवगौड़ा दागों की धुलाई बता रहे हैं क्योंकि 2006 में बीजेपी के सहयोग से सरकार बनाने वाले कुमार स्वामी अपने पिता से नाराज होकर विधायकों के साथ ईगलटन रिजॉर्ट में पहुंच गए थे. तेलगूदेशम पार्टी के नेता एनटी रामाराव ने अपने विधायकों के साथ कर्नाटक के देवानाहैली रिजॉर्ट में पनाह लेकर 1984 में रिजॉर्ट संस्कृति की शुरुआत की, जो उसके बाद खूब परवान चढ़ी. गुजरात में अहमद पटेल, कर्नाटक में रामकृष्ण हेगड़े, महाराष्ट्र में विलासराव देशमुख और तमिलनाडु में शशिकला द्वारा रिजॉर्ट की राजनीति पहले भी हो चुकी हैं. जेडीएस के विधायक अपने तीसरे दौर में इस बार कांग्रेसी नेता डीके शिवकुमार के ईगलटन रिजॉर्ट में नजरबंद होकर नीलाम होने से बच गए. जनता के प्रतिनिधि विधायकों को फोन और इंटरनेट से दूर रखकर उनकी मॉनिटरिंग किया जाना, क्या लोकतंत्र और प्राइवेसी के खिलाफ नहीं है? जिन विधायकों पर उनके दल के नेताओं को ही भरोसा नहीं तो फिर ऐसे वोटों से कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री का विश्वासमत कैसे मिल सकता है?

दल-बदल कानून के खौफ से बंधुआ होते विधायक
भारत में जोड़-तोड़ की राजनीति की शुरुवात 1967 में हुई जिसके 18 साल बाद 1985 में दल-बदल कानून को संविधान की दसवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया. इसके बाद 2003 में किए गए संशोधन के अनुसार दल-बदल करने के लिए दो तिहाई सदस्यों की सहमति जरूती है. इसके बावजूद 'ऑपरेशन लोटस' के तहत येदियुरप्पा ने जेडीएस और कांग्रेस के 6 विधायकों से इस्तीफा दिलवाकर बीजेपी की सरकार को 2008 में बहुमत का जुगाड़ करवा दिया था पर इस बार विधायकों की कठोर नजरबंदी से दलबदल का इतिहास नहीं दोहराया जा सका.

क्षेत्रीय पार्टियां और गठबंधन की राजनीति
संविधान सभा में एनवी गाडगिल और केएम मुंशी ने गठबंधन सरकारों को लोकतंत्र के लिए खतरनाक कहा था, परंतु अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 में अमेरिका में दिए गए भाषण में गठबंधन सरकारों को लोकतंत्र के लिए सुखद बताया. कांग्रेस और जेडीएस ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा इसीलिए उनके द्वारा सरकार बनाने को अनीतिपूर्ण गठबंधन कहा जा रहा है. इस पैमाने को यदि स्वीकार किया जाए तो फिर बिहार में जेडीयू और कश्मीर में पीडीपी के साथ बीजेपी की गठबंधन सरकार को कैसे नीतिपूर्ण ठहराया जा सकता है? विधि आयोग द्वारा 1999 में दी गई रिपोर्ट और पंछी आयोग की अनुशंसाओं के अनुसार यदि गठबंधन को कानूनी मान्यता दे दी जाए तो फिर गठबंधन टूटने पर विधायकों की अयोग्यता क्यों नहीं होनी चाहिए?

'लोकतंत्र बचाओ' आंदोलन क्यों हुआ फुस्स  
कर्नाटक में राज्यपाल द्वारा शुरुआत में येदियुरप्पा की सरकार बनाने के बाद कई राज्यों में सरकार बनाने की मांग को लेकर कांग्रेस में 'लोकतंत्र बचाओ' आंदोलन शुरू कर दिया था. बिहार में तेजस्वी यादव ने जेडीयू बीजेपी सरकार की बर्खास्तगी की मांग करते हुए आरजेडी की सरकार बनाने की मांग भी कर डाली. जबकि कांग्रेस ने गोवा, मणिपुर और मेघालय में सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करते हुए सरकार बनाने का हास्यास्पद दावा किया. संविधान के अनुसार जिन राज्यों में सरकारों ने विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध कर दिया, उन्हें अविश्वास प्रस्ताव के तहत ही हटाया जा सकता है. कानून सम्मत प्रक्रिया के पालन करने की बजाए कांग्रेस पार्टी द्वारा कई साल बाद सरकार बनाने की मांग बचकानी ही थी, जिस वजह से लोकतंत्र बचाओ आंदोलन फुस्स हो गया.

एक देश एक चुनाव को क्षेत्रीय दलों की चुनौती
बीजेपी द्वारा दिए जा रहे आंकड़ों को अगर सच माना जाए तो प्रदेशों में सरकार के पैमाने पर कांग्रेस अब कई क्षेत्रीय दलों से पीछे है. कर्नाटक में नई सरकार के गठन में कई मुख्यमंत्रियों की भागीदारी से बीजेपी के खिलाफ क्षेत्रीय दलों के ध्रुवीकरण की शुरुआत हो चुकी है. चुनाव आयोग और विधि आयोग ने एक देश एक चुनाव को लेकर गंभीर चर्चा शुरू की है जिससे देश में विकास का माहौल बनकर राजनीतिक स्थायित्व आ सके. इसके लिए जन-प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन तथा काफी संख्या में ईवीएम मशीनों की आवश्यकता पड़ेगी. राज्य सरकारें यदि सहमति से विधानसभा भंग न करें तो संविधान में संशोधन की आवश्यकता हो सकती है. राज्यसभा में बीजेपी के पास संविधान संशोधन के आवश्यक बहुमत नहीं है. कर्नाटक में विधायकों को विजय जुलूस निकालने की अनुमति भले ही न मिली हो तो परंतु सरकार बनाने के बाद विधायकों को कैसे नजरबंद रखा जा सकेगा? कर्नाटक में विधायकों की मानक कीमत 100 करोड़ हो गई है और नई सरकार में अपेक्षाएं पूरी न होने पर यदि कोई भी दल-बदल हुआ तो क्या राष्ट्रीय आम-चुनावों में नए सिरे से कर्नाटक में जनादेश का फैसला होगा?

(लेखक सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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