अगर आप मुझसे उन तीन चीजों का नाम बताने को कहें, जिनकी कमी पिछले दस बरस में सबसे तेजी से महसूस की जा रही है, तो मेरा जवाब होगा; ‘आनंद, उल्‍लास, रोमांच!’. 


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एक ओर हम ऐसे समय में हैं, जहां तकनीक हर दिन नए रूप लेकर आ रही है. हमारे मन में क्‍या चल रहा है. हम कैसा महसूस कर रहे हैं. इससे लेकर हम क्‍या करने वाले हैं, हमें क्‍या करना चाहिए, मशीन सबकुछ बताने की ओर बढ़़ रही है. स्‍मार्टफोन ने हमारे सबसे अच्‍छे तीन दोस्‍त आनंद, उल्‍लास और रोमांच हमसे दूर कर दिए हैं. इससे नींद, संवेदना और सुख सबसे अधिक बेचैन हुए हैं! 


आनंद, उल्‍लास और रोमांच जीवन के मौलिक अंग हैं. इनके बिना जिंदगी का रस सूखना शुरू कर देता है. हम अब इसी ओर बढ़ते जा रहे हैं. अपने आसपास ध्‍यान से देखिए. अपने उन साथियों को जो आपके साथ जिंदगी के सफर पर निकले, स्‍वयं अपने को भी. उसके बाद यह महसूस कीजिए कि कौन कहां अटका है. हमारी जीवन के प्रति सोच, समझ क्‍या थी. उसके बाद हम क्‍या, क्‍यों बनते गए! 


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जिंदगी के मोड़ पर मुड़ते हुए हम जीवन के मौलिक, मूल गुण आनंद, उल्‍लास और रोमांच से दूर होते जा रहे हैं. आइए, समझें कुछ सरल उदाहरण से... 


आनंद, यह जीवन का सबसे सरल तत्‍व है. यह आजीविका के बाद उपस्थित होने वाला सुख है. जो हमारी धमनियों में बहने वाले रक्‍त का संचार दुरुस्‍त करने से लेकर हमें नई ऊर्जा से भरने का काम बखूबी करता है. 


जीवन का आनंद हर किसी के लि अलग-अलग है. विभ‍िन्‍न चीजों से हासिल होता है. किसी के लिए आनंद के मायने हैं, बिना रोक-टोक उसे किताब, अखबार के साथ छोड़ दीजिए. तो किसी के लिए दिन-रात अपने मित्रों का साथ सबसे बड़ा आनंद है. किसी के लिए भजन आनंद है, तो किसी के लिए कुमार गंधर्व, भीमसेन जोशी से बड़ा कोई आनंद नहीं. 


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तकनीक, इंटरनेट ने हमें आनंद सुलभ कराने में मदद जरूर की है, लेकिन स्‍मार्टफोन ने उस आनंद में ही सेंध लगा दी. हम आनंद में सुखी होने की जगह तकनीक में उलझ गए. 


उल्‍लास. मैं हर दिन एक ऐसी जगह का हिस्‍सा होता हूं. जहां पचास से अधिक लोग एक साथ एक जगह काम करते हैं. इनमें से मुश्किल से बीस को हर दिन उल्‍लास से भरा पाता हूं. जबकि सभी लोग लगभग एक जैसी स्थिति में काम करते हैं. कुछ किन्हीं खास लोगों के साथ उल्‍लास साझा करते हैं तो कुछ इसे अपने इतने भीतर तक दबाए रहते हैं कि वही इसका पता भूल जाते हैं. एक जैसा काम बरसों से करते हुए शरीर, दिमाग को उसका अभ्‍यास होता जाता है, लेकिन इसमें नवीनता नहीं होने के कारण उल्‍लास कम होता जाता है. 


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हम खुश होने का अवसर खोजने के फेर में छोटे-छोटे अवसर गंवाते जाते हैं. प्रसन्‍नता के अवसर खोते जाना अपने संचित धन से हर दिन रूपये खर्च करते जाने जैसा है. 


इस तरह खर्च करते रहने से बचत नहीं हो पाती. खुश रहने का अवसर गंवाने से हम उल्‍लास से दूर होते जाते हैं. हर दिन! 


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अंत में रोमांच. नई चुनौती का सामना करना. उन्‍हें स्‍वीकार करना. अपने लिए चुनौती पैदा करना. मेरे लिए रोमांच के यही अर्थ हैं. इससे न कम, न ज्‍यादा. हममें से बहुत से लोग रोमांच को बाहरी अर्थ में ग्रहण करते हैं. मिसाल के लिए ऐसे काम करना जो दूसरे कर पाने की हिम्‍मत न करें. बर्फ के पानी में नहाना. ऊंची जगह से छलांग लगाना. कुछ ऐसा करना जो दूसरे न कर पाएं. लेकिन मेरे लिए रोमांच एकदम निजी और आंतरिक विषय है! 


आनंद, उल्‍लास और रोमांच हमारे घनिष्‍ठ मित्र हैं. जो इंटरनेट, स्‍मार्टफोन और जीवन की भागदौड़ में कुछ रूठे हैं, लेकिन इतने नहीं कि मिल न सकें. हमारी ओर लौट न सकें. बस, ईमानदार कोशिश चाहिए, स्‍वयं को जानने, समझने और बचाने की!


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