डियर जिंदगी: पापा की चिट्ठी!
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डियर जिंदगी: पापा की चिट्ठी!

हम बच्‍चों को उतनी आजादी भी नहीं दे रहे जो हमें अपने माता-पिता से विरासत में मिली थी. हमारी अपेक्षा का बोझ उनके कोमल मन को हर दिन कठोर, रूखा बना रहा है!

डियर जिंदगी: पापा की चिट्ठी!

महाराष्‍ट्र के नागपुर से 'डियर जिंदगी' को मिले एक ई-मेल में तनाव से निपटने के बारे में एक परिवार ने अपने दिलचस्‍प अनुभव साझा किए हैं. अनुज दुबे ने लिखा है कि उनके पिता अक्‍सर गांव में ही रहते हैं. वह पत्‍नी, बेटे के साथ नागपुर में रहते हैं. एक निजी कंपनी के लिए काम करते हुए उनका काम ही खत्‍म नहीं होता. इससे उनकी पत्‍नी, बेटा खासे नाराज रहते थे. अनुज की उम्र लगभग चालीस बरस, बेटे की दस बरस है.

इस बीच कई बरस के बाद अनुज के पिता कुछ दिनों के लिए उनके पास नागपुर रहने आए. उन्‍हें अनुज का घर पर भी पूरे समय ऑफिस-ऑफिस में उलझे रहना खटक रहा था. जब पोते ने भी शिकायत की. इसके बाद उन्‍होंने बेटे से बात करके उसे समझाने की कोशिश की. यह कोशिश अधूरी रही, क्‍योंकि बेटे को उनसे बात करने के लिए समय नहीं मिला. वह अपनी जरूरी मीटिंग में इतना उलझा रहा कि पिता के लिए कार, ड्राइवर, टिकट के अलावा कोई इंतजाम नहीं कर सका!

डियर जिंदगी: स्थगित आत्‍महत्‍या की कहानी!

एक चिट्ठी वह बेटे के पास छोड़ गए. जिसके प्रमुख अंश इस प्रकार थे...

*तुम कहते हो, तुम्‍हारे पास समय नहीं. जबकि समय पहले के मुकाबले अधिक है! मेरे बारे में सोचो, मुझे रेलवे टिकट के लिए घंटों लंबी कतार में खड़ा होना होता था. बैंक में पैसा जमा कराने, निकालने के लिए भीड़ से गुजरना होता था. कहीं जाने-आने में कई दिन लगते थे. मेरी नौकरी तुम्‍हारे मुकाबले कम पैसे की थी. लेकिन मैं कभी इतना परेशान, बीमार, नौकरी में उलझा नहीं रहता था.

*तुम बच्‍चे को कहानी नहीं सुनाते. हर चीज के लिए उसे गूगल के पास भेज देते हो. वह तुमसे अधिक टीवी का बेटा हो गया है. उसे कहीं घुमाने नहीं ले जाते. जब कभी ले जाते हो, तो मॉल की नीरस दुनिया में छोड़ देते हो. ताकि तुम शॉपिंग कर सको. तुम उसके लिए बहुत कुछ करते हो, लेकिन उसके साथ नहीं!
 
उसके साथ उसकी खुशियां नहीं बांटते. वह रिश्‍तेदारों, अपने चचेरे-भाई बहनों से दूर होता जा रहा है. उसे तुमने केवल स्‍कूल में डुबो दिया है. उसका मिजाज रूखा, सूखा होता जा रहा है. जबकि तुम्‍हारे पास मेरे मुकाबले अधिक सुविधाएं हैं.

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* मैंने शायद ही कभी तुम्‍हें परीक्षा में सर्वोत्‍तम प्रदर्शन के लिए कहा हो. उसके बाद भी आज तुम्‍हारे पास बेहतर नौकरी है. धन, सुरक्षा, पैसा है. लेकिन उसके बाद भी जितनी आजादी मैंने तुम्‍हें दी, तुम उतनी भी अपने बेटे को नहीं दे पा रहे! किस आशंका में हो. अपने बच्‍चे से प्रेम करो, उसे अपनी अपेक्षा के दबाव तले मत घुटने दो.

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*मेरे बेटे मैं तुमसे और अपने पोते दोनों से स्‍नेह करता हूं. इसलिए चाहता हूं कि तुम मेरे हिस्‍से का प्रेम भी उसे दो. उसे टीवी, रोबोट और स्‍कूल के भरोसे छोड़कर तुम उसे वैसा नहीं बना सकते, जैसा सोच रहे हो.

डियर जिंदगी: आत्‍महत्‍या से कुछ नहीं बदलता!

तुम्‍हें कुछ अधिक करने की जरूरत नहीं, बस खुद को इस तरह बनाओ कि तुम्‍हारे अपने को तुम्‍हारे सपने बाधा न लगें. जहां कुछ चुनने का समय आए तो प्रेम, स्‍नेह और साथ को चुनो. एक दिन ऐसा आएगा, जब तुम अपने बच्‍चे से वही सब मांगोगे जो आज वह तुमसे मांग रहा है. कहीं ऐसा न हो कि उसका जवाब भी तुम्‍हारी तरह रूखा, स्‍नेह, प्रेम से रिक्‍त हो!

तुम्‍हारा पिता.

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मराठी में भी पढ़ें- डिअर जिंदगी : बाबांचं मुलाला पत्र!

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