डियर जिंदगी: किससे डरते हैं !
अतीत , करियर, रिश्ते अब तक कैसे भी रहे हों, लेकिन अब भी जो बचा है, वह अनमोल है. बची जिंदगी को सार्थक, खुशनुमा बनाना हमारे बस में है. यह हमसे कोई नहीं छीन सकता!
युवा, बच्चे जिन चीज़ों से सबसे अधिक परेशान दिखते हैं, उनमें अतीत, आगे का डर और हमारी सीमाएं (खुद के बारे में बनाई गई धारणा) प्रमुख हैं. इस बात को बार-बार दोहराने की जरूरत है कि बच्चे को स्कूल में मिलने वाले अंक उसकी सफलता, असफलता का सही पैमाना नहीं हैं. स्कूल के प्रदर्शन को पैमाना बनाने का सबसे खराब परिणाम यह है कि केवल कुछ बच्चे ही होशियार साबित होते हैं. हर साल स्कूल से निकलने वाले बच्चों में अधिकांश बच्चे इस मनोदशा के साथ निकलते हैं कि वह तो पढ़ने में कमजोर थे! ठीक नहीं थे. बहुत अच्छे नहीं थे!
यह किसी एक स्कूल की बात नहीं . हर साल लाखों स्कूलों के बच्चे इस मानसिक स्थिति से गुजरते हैं. स्कूल बच्चे की दुनिया बनाने, उसमें रंग भरने की जगह बच्चे को अपने सपनों में रंगने की कोशिश में लगे रहते हैं! इस प्रक्रिया में कला, संगीत, खेल में रुचि रखने वाले बच्चे निरंतर पिछड़ते रहते हैं.
डियर जिंदगी: दोनों का सही होना!
इन बच्चों के दिमाग में अतीत की ऐसी यादों का बैंक बनता जाता है , जिसके पन्ने शिक्षकों की डांट, धमकाने (बुलिंग), अभिभावकों की अपेक्षा से भरे होते हैं. किंग्स कॉलेज ऑफ लंदन के वैज्ञानिकों ने छह सौ से अधिक लोगों के ब्रेन स्कैन के बाद यह निष्कर्ष दिया है. इसमें कहा गया है कि बच्चों को बात-बात पर डांटने, धमकाने की वजह से उनके दिमाग पर नकारात्मक असर पड़ता है.
धमकाने के कारण बच्चों के दिमाग का जो हिस्सा सबसे अधिक प्रभावित होता है , उसे कॉडेट (Caudate) और पुटामेन (Putamen) कहा जाता है. कॉडेट सीखने की क्षमता को विकसित करते हुए लक्ष्य-केंद्रित प्रक्रियाओं में सहायक होता है, साथ ही याददाश्त को बनाए रखता है. पुटामेन सीखने की क्षमता के साथ शरीर की गतिविधियों का ख्याल रखता है. यह बच्चों के व्यक्तित्व विकास में भी खासा सहायक होता है.
यह शोध स्पष्ट रूप से इस बात की पुष्टि करता है कि जिन बच्चों को डांट, फटकार का सामना जरूरत से अधिक करना होता है, उनके दिमाग में डर गहराई से बैठ जाता है. इसे हम आसान भाषा में अतीत का डर कह सकते हैं. अतीत का डर मन में आशा की कोपलें फूटने नहीं देता. जब भी दिमाग किसी नई राह पर चलने की कोशिश करता है, अतीत का डर उसके पांव खींच लेता है. यह डर जिंदगी में कभी आपको आगे बढ़कर निर्णय नहीं लेने देता!
डियर जिंदगी : बच्चों की गारंटी कौन लेगा!
अतीत के डर के बाद बात करते हैं , आगे के डर की. आगे यानी भविष्य का डर. ऐसे लोग जिन्हें अतीत के डर का अधिक सामना करना पड़ा हो, वह जिंदगी में थोड़ा सा मिलने के बाद, कहीं जम जाने के बाद आगे के बारे में सोचना एकदम बंद कर देते हैं. वह आगे की ओर देखना, सोचना बंद कर देते हैं. उनके ख्वाब में केवल एक ही चीज़ होती है, जैसे भी हो जमे रहें. यही है, यथास्थितिवाद. जो इसके रंग में रंग जाए वह यथास्थितिवादी.
डियर जिंदगी: सुसाइड के भंवर से बचे बच्चे की चिट्ठी!
और अंत में बात सीमा की . हम अपनी शिक्षा, व्यवहार और लोगों की धारणा के आधार पर अपने बारे में राय बनाते जाते हैं. अक्सर यह राय हमारी क्षमता से अधिक लोगों के नजरिए पर इतनी अधिक आधारित हो जाती है कि हम उनके हिसाब से खुद को संचालित करने लगते हैं. ध्यान रहे कि दुनिया हमें कमियों का अहसास कराने के लिए ही बैठी है. अगर हम भी केवल अपनी कमियों पर ही ध्यान देते रहेंगे तो अपनी खूबियों को भूल बैठेंगे.
डियर जिंदगी: साथ रहते हुए ‘अकेले’ की स्वतंत्रता!
यह तो बात हुई खुद को जानने-समझने की. अब आखिर में सबसे जरूरी बात यह कि चाहे बचपन जैसे बीता हो. स्कूल, कॉलेज कैसे भी रहे हों. करियर, निजी संबंध रिश्ते अब तक कैसे भी गुजरे हों, लेकिन अब भी जो बचा है, वह अनमोल है. उसे यादगार बनाना है. बची जिंदगी को सार्थक, खुशनुमा बनाना हमारे बस में है. यह हमसे कोई नहीं छीन सकता!
यह विश्वास जितना अधिक मजबूत होगा, जिंदगी की नाव मुश्किल के समंदर में उतनी सहजता से सफर करेगी!
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