मन के भीतर चल रही उलझन, हमारी जीवनशैली, सोच-विचार हमारी जिंदगी को इतना बदल सकता है, जो हमारी कल्‍पना से भी परे है. अक्‍सर हम अपनी सोच और सेहत को अलग-अलग तरीके से समझने की कोशिश करते हैं, जबकि दोनों में गहरा, बेहद नजदीकी संबंध है.


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गुड़गांव में एक मल्‍टीनेशनल कंपनी में फाइनेंस मैनेजर के रूप में काम करने वाली कविता वाजपेयी ने लिखा कि उन्‍हें एक दिन सीने में दर्द हुआ. तो वह डॉक्‍टर के पास पहुंचीं, टेस्‍ट के बाद पता चला कि ब्रेस्ट में एक गांठ है. चिंता, परेशानी, पीड़ा का दौर शुरू हो गया.


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संयोग से कुछ दिनों बाद उन्‍हें दिल्‍ली के एक ऐसे बड़े डॉक्‍टर से समय मिल गया, जो मेडिसिन के साथ जीवन के प्रति गहरी समझ रखते थे. उनका चिंतन, मनन केवल दवाइयों पर आधारित नहीं था.


उन्‍होंने कहा था, 'इसमें दवाइयों की भूमिका बहुत कम है. लगभग न के बराबार. तुम्‍हें अपनी लाइफस्‍टाइल (जीवनशैली) को ठीक करने. सही तरीके से सोचने, तनाव नहीं लेने, सही भोजन की जरूरत है.'


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यह किस्‍सा सुनने के बाद से मैं कविता के डॉक्‍टर का प्रसंशक हो गया हूं. एक अच्‍छा डॉक्‍टर कैसे हमारी जिंदगी को सरल, सुखमय बना सकता है. इसका इससे अच्‍छा उदाहरण कम ही मिलेगा. अब जब यह बात लिखी जा रही है, कविता अपने दर्द से काफी हद तक उबर चुकी हैं.


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कविता ने 'डियर जिंदगी' को बताया, 'मैं यह सब इसलिए बता रही हूं, जिससे सब यह सीखें कि जिंदगी में सही 'थॉट प्रोसेस', सोचने-समझने की शक्ति और उस जीवनशैली का महत्‍व क्या है, जिसकी निरंतर चर्चा इस कॉलम में होती रही है.'


कविता ने आगे बताया कि कैसे उनकी बदली जीवनशैली, तनाव से मुक्ति, रिश्‍तों में नई सोच ने उन्‍हें नया जीवन देने में मदद की. हमें कविता की बात पर इसलिए ध्‍यान देने की जरूरत है, क्‍योंकि तनाव, उदासी और डिप्रेशन की बातें 'कहानी घर-घर' की हो गई हैं.


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इसलिए, हमें जीवन में दुख के प्रबंधन पर अपनी समझ विकसित करने की सबसे ज्‍यादा जरूरत है. हम जिस भाव से सुख को ग्रहण करते हैं, वैसे ही दुख को संभालने की क्षमता, आदत बनानी होगी.


हमारे आसपास ऐसे लोगों की संख्‍या तेजी से बढ़ती जा रही है, जो तनाव, उदासी और डिप्रेशन का सामना करने में परेशानी महसूस कर रहे हैं. इसके कारण उनकी मानसिक, शारीरिक सेहत दोनों प्रभावित हो रही है.


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इसलिए बहुत जरूरी है कि हम कविता की बात को ध्‍यान से सुनें, समझें. अपनी जीवनशैली, विचार पद्धति को ठीक करें. अपने संबंधों को स्‍पष्‍ट, पारदर्शी और प्रेम, आत्‍मीयता से भरपूर रखें. इससे सामान्‍य जीवन में होने वाली हर बीमारी से तो नहीं बचा जा सकता, लेकिन हम काफी हद तक स्‍वयं को मानसिक रूप से स्‍वस्‍थ रखने में सफल हो सकते हैं.


हमें मन की टीस को तन तक पहुंचने से पहले रोकना होगा. मन की प्रतिरोधी क्षमता को इतना तैयार करना होगा कि वह हमारे शरीर को ऐसी जगह न ले जाए, जहां से उसे ठीक करना मुश्किल हो जाए. 


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(लेखक ज़ी न्यूज़ के डिजिटल एडिटर हैं)


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